Panch Naari Ke Satitv Ki Kahaani: रोज ले इन 5 महिलाओँ के नाम, दूर होंगे सारे कष्ट, मिलेगा सम्मान...

Panch Naari Ke Satitv Ki Kahaani : हिन्दू धर्म में कई देवी देवताओ के पूजा का विधान है। सभी लोग अपनी अपनी सहूलियत के अनुसार अलग अलग देवी देवताओं का पूजन करते है। इनके अलावा भी हिन्दू धर्म ने अलग अलग समय पर अवतारों ने जन्म लिया जिन्होंने अपने आदर्श आचरण से उच्च स्थान समाज में बनाया और लोगों के बीच पूजनीय बने। ऐसी ही 5 पौराणिक महिलाओं के बारे में जिन्होंने अपने पतिव्रता धर्म से एक नया आदर्श स्थापित किया। इन्हें पञ्च सती के नाम से जाना जाता है।
अहिल्या: माता अहिल्या गौतम ऋषि की पत्नी थी। इंद्र के धोखे के कारन इनको गौतम ऋषि से शिला होने का श्राप मिला था जिन्हें भगवान राम ने त्रेता युग में अपने पांव से छूकर श्राप मुक्त किया। देवी अहिल्या की कथा का वर्णन वाल्मीकि रामायण के बालकांड में मिलता है। अहिल्या अत्यंत ही सुंदर, सुशील और पतिव्रता नारी थीं। उनका विवाह ऋषि गौतम से हुआ था। दोनों ही वन में रहकर तपस्या और ध्यान करते थे। शास्त्रों के अनुसार शचिपति इन्द्र ने गौतम की पत्नी अहिल्या के साथ उस वक्त छल से सहवास किया था, जब गौतम ऋषि प्रात: काल स्नान करने के लिए आश्रम से बाहर गए थे।
लेकिन जब गौतम मुनि को अनुभव हुआ कि अभी रात्रि शेष है और सुबह होने में समय है, तब वे वापस आश्रम की तरफ लौट चले। मुनि जब आश्रम के पास पहुंचे तब इन्द्र उनके आश्रम से बाहर निकल रहा थे। इन्होंने इन्द्र को पहचान लिया। इन्द्र द्वारा किए गए इस कुकृत्य को जानकर मुनि क्रोधित हो उठे और इन्द्र तथा देवी अहिल्या को शाप दे दिया। देवी अहिल्या द्वारा बार-बार क्षमा-याचना करने और यह कहने पर कि 'इसमें मेरा कोई दोष नहीं है', पर गौतम मुनि ने कहा कि तुम शिला बनकर यहां निवास करोगी। त्रेतायुग में जब भगवान विष्णु राम के रूप में अवतार लेंगे, तब उनके चरण रज से तुम्हारा उद्धार होगा।
मंदोदरी : लंकाधिपति रावण की पत्नी मंदोदरी भी इन पांच सतियों में स्थान रखती हैं। रावण को इन्होंने श्रीराम से युद्ध न करने और सीता को छोड़ देने के लिए बहुत समझाया। रावण की मृत्यु के पश्चात मंदोदरी के भीषण रुदन का जिक्र भी है। मंदोदरी को चिर कुमारी के नाम से भी जाना जाता है। मंदोदरी राक्षसराज मयासुर की पुत्री थीं। रावण की पत्नी मंदोदरी की मां हेमा एक अप्सरा थी। अप्सरा की पुत्री होने की वजह से मंदोदरी बेहद खूबसूरत थी, साथ ही वह आधी दानव भी थी। भगवान शिव के वरदान के कारण ही मंदोदरी का विवाह रावण से हुआ था। मंदोदरी ने भगवान शंकर से वरदान मांगा था कि उनका पति धरती पर सबसे विद्वान ओर शक्तिशाली हो। मंदोदरी से रावण को जो पुत्र मिले उनके नाम हैं- मेघनाद, महोदर, प्रहस्त, विरुपाक्ष भीकम वीर।
तारा: तारा का प्राकट्य समुद्र मंथन के समय हुआ था। कालांतर में यह वानरराज बाली की पत्नी बनी। सुग्रीव से मित्रता करने को लेकर बाली को देवी तारा ने बहुत समझाया था। तारा एक अप्सरा थी जो समुद्र मंथन के दौरान निकली थी। बाली और सुषेण दोनों ही इसे अपनी पत्नी बनाना चाहते थे। उस वक्त निर्णय हुआ कि जो तारा के वामांग में खड़ा है वह उसका पति और जो दाहिने हाथ की ओर खड़ा है वह उसका पिता होगा। इस तरह बाली का विवाह तारा से हो गया।
बाली के वध के बाद उसकी पत्नी तारा को बहुत दुख हुआ। तारा एक अप्सरा थी। बाली को को छल से मारा गया। यह जानकर उनकी पत्नी तारा ने श्रीराम को कोसा और उन्हें एक श्राप दिया। श्राप के अनुसार भगवान राम अपनी पत्नी सीता को पाने के बाद जल्द ही खो देंगे। उसने यह भी कहा कि अगले जन्म में उनकी मृत्यु उसी के पति (बाली) द्वारा हो जाएगी। अगले जन्म में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया था और उनके इस अवतार का अंत एक शिकारी भील जरा (जो कि बाली का ही दूसरा जन्म था) द्वारा किया गया था।
कुंती: कुंती का जन्म नाम पृथा था लेकिन महाराज कुन्तिभोज ने इन्हें गोद ले लिया था जिसके कारण इनका नाम कुंती हो गया। देवी कुंती कृष्ण के पिता वासुदेव की बहन थी।अपना पतिव्रत धर्म निभाते हुए इन्होंने अपने पति महाराज पाण्डु की दूसरी पत्नी को भी स्वीकार किया। यदुवंशी राजा शूरसेन की पृथा नामक कन्या और वसुदेव नामक एक पुत्र था। पृथा नामक कन्या को राजा शूरसेन ने अपनी बुआ के संतानहीन लड़के कुंतीभोज को गोद दे दिया। कुंतीभोज ने इस कन्या का नाम कुंती रखा। इस तरह पृथा अर्थात कुंती अपने असली माता पिता से दूर रही। जैसे दशरथ ने अपनी पुत्री शांता को अंगदेश के राजा रोमपद को गोद दे किया था।
कुंती अपने महल में आए महात्माओं की सेवा करती थी। एक बार वहां ऋषि दुर्वासा भी पधारे। कुंती की सेवा से प्रसन्न होकर दुर्वासा ने कहा, 'पुत्री! मैं तुम्हारी सेवा से अत्यंत प्रसन्न हुआ हूं अतः तुझे एक ऐसा मंत्र देता हूं जिसके प्रयोग से तू जिस देवता का स्मरण करेगी वह तत्काल तेरे समक्ष प्रकट होकर तेरी मनोकामना पूर्ण करेगा।' इस तरह कुंती को एक अद्भुत मंत्र मिल गया। कुंती का विवाह हस्तिनापुर के राजा पांडु से हुआ था। कर्ण सहित कुंती के युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम नामक तीन और पुत्र थे। नकुल और सहदेव पांडु की दूसरी पत्नी माद्री के पुत्र थे।
द्रोपदी: द्रोपदी का जन्म यज्ञसेनी के रूप में हुआ था। महारज द्रुपद ने एक मनोकामना पूर्ती यज्ञ किया था जिसमे द्रोपदी का जन्म हुआ। द्रोपती पांचों पांडवों की अकेली पत्नी थी लेकिन अपन पतिव्रता धर्म नहीं छोड़ा। इसी कारण जब चीरहरण हो रहा था तो स्वयम भगवान कृष्ण ने आकर उनकी लाज बचाई थी।
