Begin typing your search above and press return to search.

March 27: World Theater Day: छत्तीसगढ़ में रामगढ़ की पहाड़ियों में है विश्व का प्राचीनतम सीताबेंगरा नाट्यशाला, सीताजी इस गुफा में निवास की थीं...

March 27: World Theater Day: छत्तीसगढ़ में रामगढ़ की पहाड़ियों में है विश्व का प्राचीनतम सीताबेंगरा नाट्यशाला, सीताजी इस गुफा में निवास की थीं...
X
By NPG News

शंकर पाण्डेय

March 27: World Theater Day: अरस्तू ने कहा था-"मानव की प्रवृत्ति है कि वह अपनी क्रियाओं को पुनः विविध रूपों में देखना चाहता है" इसीलिए नाटकों व इस तरह की समस्त विधाओं का विकास हुआ और कला नित नए आयाम को प्राप्त होती गयी...


हमारे छत्तीसगढ़ में भी विश्व की प्राचीन नाट्यशाला है जो सीताबेंगरा के नाम से रामगढ़ की पहाड़ियों में अवस्थित है। रामगढ़ सरगुजा जिले में उदयपुर के समीप पड़ता है। मान्यता है कि इस गुफा में वनवास के दौरान सीताजी का निवास था। सरगुजिया में बेंगरा का अर्थ कमरा होता है।

सीताबेंगरा की यह नाट्यशाला ईसा पूर्व 3री शताब्दी की है जो पत्थरों को काटकर बनाई गई है। इसकी दीवारें सीधी तथा द्वार गोलाकार है। इस द्वार की ऊँचाई 6 फीट है। इसका प्रांगण 45 फीट लम्बा व 15 फीट चौड़ा है। गुफा में प्रवेश करने हेतु दोनों तरफ सीढियां बनी हुई हैं और दर्शकदीर्घा पत्थरों को काटकर गैलरीनुमा सीढ़ीदार बनाई गई है। इसमें 50-60 दर्शकों के बैठने की व्यवस्था है। सामने मंच है। नाट्यशाला को प्रतिध्वनि रहित करने के लिए दीवारों पर गवाक्ष हैं। गुफा के प्रवेशद्वार पर मध्यकालीन नागरी में लिखा है -


"आदिपयन्ति हृदयं सभाव्वगरू कवयो ये रातयं दुले वसन्ति ....... कुद्स्पीतं एव अलगेति "

पूरा परिदृश्य रोमन रंगभूमि की याद दिलाता है। यह राष्ट्रीय स्तर के मंचीय कार्यक्रमों का प्राचीनतम प्रमाण है। आज भी आषाढ़ के प्रथम दिवस पर यहाँ नाटक व अन्य कार्यक्रम होते हैं। रामगढ़ की पहाड़ियां इसलिए भी चर्चित हैं क्योंकि माना जाता है कि कालिदास ने अपने निर्वासन काल में 'मेघदूतम' की रचना यहीं पर की थी।


कालिदास युगीन नाट्यशाला और शिलालेख, मेघदूतम् के प्राकृतिक चित्र, वाल्मीकी रामायण के संकेत तथा मेघदूत की आधार कथा के रूप में वर्णित तुम्वुरू वृतांत और श्री राम की वनपथ रेखा रामगढ़ को माना जा रहा है। मान्यता यह है कि भगवान राम ने अपने वनवास का कुछ समय रामगढ़ में व्यतीत किया था। रामगढ़ पर्वत के निचले शिखर पर "सीताबेंगरा" और "जोगीमारा" की अद्वितीय कलात्मक गुफाएँ हैं। भगवान राम के वनवास के दौरान सीताजी ने जिस गुफा में आश्रय लिया था वह "सीताबेंगरा" के नाम से प्रसिद्ध हुई। यही गुफाएँ रंगशाला (कहा जाता है कि यह दुनिया का पहला रंगमंच है) के रूप में कला-प्रेमियों के लिए तीर्थ स्थल है। यह गुफा 44.5 फुट लंबी ओर 15 फुट चौड़ी है। 1960 ई. में पूना से प्रकाशित "ए फ्रेश लाइट आन मेघदूत" द्वारा सिद्ध किया गया है कि रामगढ़ (सरगुजा) ही श्री राम की वनवास स्थली एवं मेघदूत की प्रेरणा स्थली है।


सीताबेंगरा के बगल में ही एक दूसरी गुफा है, जिसे जोगीमारा गुफा कहते हैं। इस गुफा की लम्बाई 15 फीट, चौड़ाई 12 फीट एवं ऊंचाई 9 फीट हैं। इसकी भीतरी दीवारे बहुत चिकनी वज्रलेप से प्लास्टर की हुई हैं। गुफा की छत पर आकर्षक रंगबिरंगे चित्र बने हुए हैं। इन चित्रों में तोरण, पत्र-पुष्प, पशु-पक्षी, नर-देव-दानव, योद्धा तथा हाथी आदि के चित्र हैं। इस गुफा में चारों ओर चित्रकारी के मध्य में पांच युवतियों के चित्र हैं, जो बैठी हुई हैं। इस गुफा में ब्रह्मी लिपी में कुछ पंक्तियां उत्कीर्ण हैं।

Next Story