Begin typing your search above and press return to search.

Mahakal Bhasma Aarti Live Today : कड़ाके की ठंड और जय महाकाल की गूंज से निहाल हुआ उज्जैन नगरी, ब्रह्म मुहूर्त में भस्म रमाने निकले भोलेनाथ, लाइव दर्शन यहां

उज्जैन के विश्वप्रसिद्ध बाबा महाकालेश्वर मंदिर में आज तड़के सुबह भस्म आरती के साथ दिन की दिव्य शुरुआत हुई।

Mahakal Bhasma Aarti Live Today : कड़ाके की ठंड और जय महाकाल की गूंज से निहाल हुआ उज्जैन नगरी, ब्रह्म मुहूर्त में भस्म रमाने निकले भोलेनाथ, लाइव दर्शन यहां
X

Mahakal Bhasma Aarti Live Today : कड़ाके की ठंड और जय महाकाल की गूंज से निहाल हुआ उज्जैन नगरी, ब्रह्म मुहूर्त में भस्म रमाने निकले भोलेनाथ, लाइव दर्शन यहां

By UMA

Mahakal Bhasma Aarti Live Today : उज्जैन | उज्जैन के विश्वप्रसिद्ध बाबा महाकालेश्वर मंदिर में आज तड़के सुबह भस्म आरती के साथ दिन की दिव्य शुरुआत हुई। कड़ाके की ठंड के बावजूद, ब्रह्म मुहूर्त में हजारों श्रद्धालुओं ने जय महाकाल के उद्घोष के साथ मंदिर परिसर को गुंजायमान कर दिया। सबसे पहले बाबा महाकाल का पवित्र जल और पंचामृत (दूध, दही, घी, शक्कर और शहद) से अभिषेक किया गया, जिसके बाद कपूर और चंदन के लेपन से भगवान का मनमोहक श्रृंगार हुआ। महानिर्वाणी अखाड़े के साधुओं द्वारा की गई भस्म आरती के दौरान पूरा गर्भगृह भक्ति के चरम पर नजर आया।

Mahakal Bhasma Aarti Live Today : आरती के दौरान भगवान महाकाल को सूखे मेवों और विशेष आभूषणों से सजाया गया, जो भक्तों के लिए एक अलौकिक दृश्य था। मंदिर प्रशासन की ओर से श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए सुरक्षा और दर्शन के पुख्ता इंतजाम किए गए थे, ताकि सभी भक्त सुगमता से चलित भस्म आरती का लाभ ले सकें। आरती के समापन के बाद भक्तों ने कतारबद्ध होकर बाबा के दर्शन किए और सुख-समृद्धि की कामना की। महाकाल लोक के दर्शन और अलसुबह की इस दिव्य आभा ने उज्जैन नगरी को पूरी तरह शिवमय बना दिया है।

शिव महिमा: अनंत और कल्याणकारी स्वरूप

हिंदू धर्म में भगवान शिव 'देवों के देव महादेव' हैं। वे पंचदेवों में प्रधान और सृष्टि के संहारक माने जाते हैं, लेकिन उनका 'संहार' विनाश नहीं, बल्कि पुनरुद्धार का प्रतीक है। शिव महिमा अपरंपार है; वे त्याग, वैराग्य, और करुणा की प्रतिमूर्ति हैं। जहाँ अन्य देवताओं को राजसी ठाठ-बाट में दिखाया जाता है, वहीं महादेव भस्म लपेटे, गले में सर्प धारण किए और मृगछाल पहने श्मशान में निवास करते हैं। यह स्वरूप सिखाता है कि सत्य केवल आत्मा है और भौतिक शरीर नश्वर है।

शिव की महिमा उनके 'नीलकंठ' स्वरूप में भी झलकती है, जब उन्होंने सृष्टि को बचाने के लिए विषपान किया। वे न केवल देवताओं के, बल्कि असुरों, भूतों और समस्त जीव-जगत के आराध्य हैं। शिव 'सत्यम शिवम सुंदरम' के साक्षात स्वरूप हैं। उनकी पूजा अत्यंत सरल है—एक लोटा जल और बेलपत्र चढ़ाने मात्र से वे प्रसन्न होकर 'आशुतोष' कहलाते हैं। वे योग के प्रथम गुरु (आदिगुरु) हैं, जिन्होंने संसार को ध्यान और अंतर्मन की शांति का मार्ग दिखाया।

महाकालेश्वर मंदिर का गौरवशाली इतिहास

उज्जैन (अवंतिका) स्थित महाकालेश्वर मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसका विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। तंत्र शास्त्र में दक्षिणमुखी होना विशेष फलदायी माना जाता है।

प्राचीनता और धार्मिक मान्यता

पुराणों के अनुसार, उज्जैन नगरी को 'आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्। भूलोके च महाकालो लिंगत्रय नमोस्तुते॥' कहा गया है, यानी पाताल में हाटकेश्वर, आकाश में तारक लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही पूज्य हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, जब दूषण नामक राक्षस ने अवंतिका के ब्राह्मणों पर अत्याचार किया, तब भगवान शिव पृथ्वी फाड़कर प्रकट हुए और उसका वध किया। भक्तों के अनुरोध पर वे वहीं 'महाकाल' के रूप में प्रतिष्ठित हो गए।

ऐतिहासिक कालक्रम और आक्रमण

इतिहासकारों के अनुसार, इस मंदिर की नींव अत्यंत प्राचीन है।

प्राचीन काल: गुप्त वंश और विक्रमादित्य के काल में यह मंदिर अपनी भव्यता के चरम पर था। कालिदास के 'मेघदूत' में भी महाकाल मंदिर के सांध्यकालीन आरती का वर्णन मिलता है।

मध्यकाल और विध्वंस: सन 1234-35 में सुल्तान इल्तुतमिश ने उज्जैन पर आक्रमण कर मंदिर को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया था और ज्योतिर्लिंग को पास के कोटि तीर्थ कुंड में फिंकवा दिया था। लगभग 500 वर्षों तक मंदिर की स्थिति दयनीय रही।

मराठा काल (पुनरुद्धार): 18वीं शताब्दी में मराठा साम्राज्य के विस्तार के साथ मंदिर का भाग्य बदला। सन 1734 में पेशवा बाजीराव प्रथम के सेनापति राणेजी सिंधिया ने वर्तमान मंदिर का निर्माण कराया। सिंधिया राजवंश ने ही मंदिर की व्यवस्था और पूजा पद्धति को पुनः स्थापित किया।

आधुनिक स्वरूप: महाकाल लोक

आज का मंदिर तीन खंडों में विभाजित है। सबसे नीचे महाकालेश्वर (मुख्य लिंग), बीच में ओंकारेश्वर और सबसे ऊपर नागचंद्रेश्वर का मंदिर है, जो केवल नागपंचमी के दिन खुलता है। हाल ही में भारत सरकार द्वारा निर्मित 'श्री महाकाल लोक' कॉरिडोर ने इस मंदिर को आधुनिक भारत के सबसे भव्य धार्मिक स्थलों में बदल दिया है, जहाँ शिव कथाओं को मूर्तियों और भित्ति चित्रों के माध्यम से जीवंत किया गया है।

महाकाल मंदिर की 'भस्म आरती' पूरी दुनिया में अद्वितीय है, जिसमें श्मशान की भस्म (अब प्रतीकात्मक कंडे की भस्म) से भगवान का अभिषेक होता है, जो जीवन और मृत्यु के चक्र का बोध कराती है।

Next Story