Mahakal Bhasm Aarti Live Today : ब्रह्म मुहूर्त की पहली किरण के साथ बाबा महाकाल का दिव्य अभिषेक, अवंतिकापुरी में गूंजा हर-हर महादेव, भस्म आरती में दिखा भोलेनाथ का अलौकिक स्वरूप
Mahakal Bhasm Aarti Live Today : उज्जैन की पावन नगरी में आज की सुबह एक नई आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ शुरू हुई।

Mahakal Bhasm Aarti Live Today : ब्रह्म मुहूर्त की पहली किरण के साथ बाबा महाकाल का दिव्य अभिषेक, अवंतिकापुरी में गूंजा 'हर-हर महादेव', भस्म आरती में दिखा भोलेनाथ का अलौकिक स्वरूप
Mahakal Bhasm Aarti Live Today : उज्जैन (मध्य प्रदेश) : उज्जैन की पावन नगरी में आज की सुबह एक नई आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ शुरू हुई। विश्व के एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग भगवान श्री महाकालेश्वर के दरबार में आज भोर में आयोजित भस्म आरती में आस्था का अनूठा संगम देखने को मिला। जब पूरा शहर नींद के आगोश में था, तब 'महाकाल लोक' और मंदिर परिसर शिवभक्तों के जयकारों से गूंज रहा था।
Mahakal Bhasm Aarti Live Today : ब्रह्म मुहूर्त में पट अभिषेक
आज सुबह नियम अनुसार मंदिर के पट खुलने के बाद सबसे पहले भगवान महाकाल का जल और पंचामृत से अभिषेक किया गया। पुजारियों द्वारा मंत्रोच्चार के बीच बाबा को दूध, दही, घी, शक्कर और शहद से स्नान कराया गया। इसके पश्चात भगवान का शुद्ध जल से जलाभिषेक हुआ। इस प्रक्रिया के दौरान मंदिर के गर्भगृह में एक अलग ही शांति और दिव्यता का अनुभव हो रहा था, जिसे देख श्रद्धालु भक्ति में लीन नजर आए।
भांग और सूखे मेवों से दिव्य श्रृंगार
जलाभिषेक के बाद भगवान महाकाल का विशेष श्रृंगार किया गया। आज बाबा को चंदन, भांग और सूखे मेवों से अलंकृत किया गया। श्रृंगार की कला इतनी अद्भुत थी कि बाबा महाकाल का मुखारविंद साक्षात शिवत्व का बोध करा रहा था। मस्तक पर त्रिपुंड और आभूषणों से सजे बाबा के इस रूप को देखने के लिए श्रद्धालुओं की कतारें नंदी हॉल से लेकर गणेश मंडपम तक लगी रहीं। श्रृंगार के बाद बाबा को नए वस्त्र धारण कराए गए।
भस्म अर्पण: जीवन और मृत्यु का दर्शन
आरती का सबसे मुख्य आकर्षण भस्म अर्पण रहा। महानिर्वाणी अखाड़े के साधुओं द्वारा परंपरा के अनुसार बाबा महाकाल को ताजी भस्म अर्पित की गई। जैसे ही भस्म की वर्षा बाबा के ज्योतिर्लिंग पर हुई, पूरा वातावरण 'हर-हर महादेव' के उद्घोष से गूंज उठा। मान्यता है कि भस्म आरती सृष्टि के सृजन और विनाश के चक्र को दर्शाती है, और जो भक्त इस आरती का गवाह बनता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता।
श्रद्धालुओं का उत्साह और प्रशासनिक व्यवस्था
आज की आरती में देश के कोने-कोने से आए भक्तों का हुजूम उमड़ा। मंदिर प्रशासन ने श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए थे। 'चल चलायमान' व्यवस्था के माध्यम से हजारों भक्तों ने बाबा के दर्शन किए। आरती के अंत में जब महानिराजन (बड़ी आरती) हुई, तो ढोल-नगाड़ों और शंख की ध्वनि ने पूरे वातावरण को अलौकिक बना दिया। भक्तों का मानना है कि महाकाल की एक झलक ही जीवन की सारी बाधाओं को दूर करने के लिए पर्याप्त है।
भारत की पावन धरती पर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों का विशेष स्थान है, लेकिन इनमें श्री महाकालेश्वर का महत्व सबसे विशिष्ट माना जाता है। शिव पुराण के अनुसार, महाकाल न केवल मृत्यु के देवता हैं, बल्कि वे काल (समय) के भी अधिपति हैं।
भोलेनाथ की पूजा का आध्यात्मिक महत्व
भगवान शिव को 'भोलेनाथ' इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे अत्यंत सरल स्वभाव के हैं और मात्र एक लोटा जल अर्पित करने से भी प्रसन्न हो जाते हैं। उनकी पूजा के पीछे गहरे जीवन दर्शन छिपे हैं:
जीवन और मृत्यु से मुक्ति: शिव पूजा का सबसे बड़ा महत्व मृत्यु के भय से मुक्ति पाना है। महामृत्युंजय मंत्र और शिव उपासना व्यक्ति को अकाल मृत्यु से बचाती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है।
समता का संदेश: शिव जी के गले में सांप, हाथ में त्रिशूल और मस्तक पर चंद्रमा है। यह विरोधाभासों के बीच संतुलन का प्रतीक है। उनकी पूजा हमें सिखाती है कि जीवन में सुख-दुख और विष-अमृत को समान भाव से कैसे स्वीकार करें।
भस्म का दर्शन: शिव अपने शरीर पर भस्म रमाते हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि यह शरीर नश्वर है और अंत में सब कुछ राख में मिल जाना है। यह पूजा हमें अहंकार का त्याग करना सिखाती है।
मन की शांति: शिव को 'आशुतोष' कहा जाता है। सोमवार का व्रत और सावन के महीने में उनकी विशेष पूजा करने से मानसिक तनाव दूर होता है और साधक को शांति की प्राप्ति होती है।
श्री महाकालेश्वर मंदिर का गौरवशाली इतिहास
उज्जैन (प्राचीन नाम अवंतिका) का यह मंदिर सदियों से भारत की आस्था का केंद्र रहा है। इसके इतिहास को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:
प्राचीनता और पौराणिक कथा: पौराणिक कथाओं के अनुसार, दूषण नामक राक्षस से भक्तों की रक्षा करने के लिए भगवान शिव स्वयं धरती फाड़कर प्रकट हुए थे। राक्षस का वध करने के बाद भक्तों के अनुरोध पर वे यहीं ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए। चूंकि उन्होंने काल (राक्षस और मृत्यु) का अंत किया, इसलिए वे 'महाकाल' कहलाए।
दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग: महाकालेश्वर दुनिया के एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग हैं। तंत्र शास्त्र में दक्षिण दिशा का स्वामी 'यम' (मृत्यु के देवता) को माना गया है, इसलिए महाकाल की पूजा तंत्र साधना और अकाल मृत्यु निवारण के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।
मंदिर का पुनर्निर्माण: ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो मूल मंदिर अत्यंत प्राचीन था। 13वीं शताब्दी (1234-35 ई.) में इल्तुतमिश के आक्रमण के दौरान मंदिर को भारी क्षति पहुँचाई गई थी। इसके बाद लंबे समय तक यहाँ पूजा बाधित रही।
मराठा काल और आधुनिक स्वरूप: वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार 18वीं शताब्दी में मराठा पेशवाओं के समय हुआ। राणोजी सिंधिया के सेनापति रामचंद्र बाबा शेणवी ने इस भव्य मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। आज जो हम तीन मंजिला विशाल मंदिर देखते हैं, वह मराठा स्थापत्य कला का सुंदर उदाहरण है।
तीन मंजिला संरचना: मंदिर के सबसे निचले तल पर महाकालेश्वर, बीच के तल पर ओंकारेश्वर और सबसे ऊपरी तल पर नागचंद्रेश्वर विराजमान हैं। नागचंद्रेश्वर के दर्शन वर्ष में केवल एक बार नागपंचमी के दिन ही होते हैं।
महाकाल की नगरी उज्जैन को 'नाभि प्रदेश' माना जाता है, जहाँ से पूरे ब्रह्मांड प्राचीन इतिहास हो या भोलेनाथ की भक्ति का सरल मार्ग, महाकाल के दर्शन मात्र से भक्त के भीतर एक नई चेतना का संचार होता है। यही कारण है कि सदियों से राजा हो या रंक, सभी महाकाल के दर पर शीश झुकाने खिंचे चले आते हैं।
