Mahakal Aarti Live Today : उज्जैन से महाकाल आरती लाइव : घर बैठे करें बाबा भोलेनाथ का दर्शन।
आज शनिवार, 13 दिसंबर 2025 की सुबह, बाबा महाकाल की मंगलकारी भस्म आरती में एक अविस्मरणीय और अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार हुआ।

Mahakal Aarti Live Today : उज्जैन से महाकाल आरती लाइव : घर बैठे करें बाबा भोलेनाथ का दर्शन।
Mahakal Aarti Live Today : उज्जैन : धर्मनगरी उज्जैन में आज शनिवार, 13 दिसंबर 2025 की सुबह, बाबा महाकाल की मंगलकारी भस्म आरती में एक अविस्मरणीय और अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार हुआ। अल सुबह 4 बजे, जब मंदिर के कपाट खुले, तो ठंड के बावजूद सैंकड़ों भक्तों की उपस्थिति ने पूरे गर्भगृह को भक्तिमय बना दिया।
Mahakal Aarti Live Today : आज की आरती का विशेष आकर्षण: फूलों की अनूठी सजावट इस सप्ताह के अंतिम दिन, महाकालेश्वर को विशेष रूप से सफेद और पीले कमल के फूलों से सजाया गया। यह सज्जा न केवल नेत्रों को सुकून दे रही थी, बल्कि ठंड के इस मौसम में भी एक दिव्य और शांत वातावरण का निर्माण कर रही थी। बाबा महाकाल का शृंगार सूखे मेवों और आभूषणों के साथ इस तरह किया गया था, मानो वह भक्तों को साक्षात् दर्शन दे रहे हों।
Mahakal Aarti Live Today : भक्तों ने बताया आज की आरती में एक अलग ही शांति और सकारात्मकता थी। ऐसा लगा जैसे बाबा महाकाल ने स्वयं आकर हमें आशीर्वाद दिया हो।
महाकाल की भस्म रस्म: परंपरा और आध्यात्म का संगम
पुरोहितों ने मंत्रोच्चार के बीच जैसे ही बाबा महाकाल को भस्म अर्पित की, आरती की लौ और घंटियों की गूंज ने एक अभूतपूर्व नाद उत्पन्न किया। भस्म रस्म का यह क्षण मंदिर परिसर में मौजूद हर व्यक्ति के लिए मोक्ष और आत्मिक शुद्धि का अनुभव लेकर आया।
मंदिर प्रबंधन ने की विशेष अपील: भीषण ठंड को देखते हुए, मंदिर प्रशासन ने सभी भक्तों से पर्याप्त गर्म कपड़े पहनकर आने की अपील की है, ताकि बाबा महाकाल के दर्शन सुगमता और भक्तिभाव के साथ किए जा सकें।
मंदिर का इतिहास
उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास अत्यंत प्राचीन है और इसे स्वयंभू (स्वयं प्रकट) माना जाता है। हिंदू धर्मग्रंथों, विशेषकर स्कंद पुराण, में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है, जो इसकी हजारों वर्षों की प्राचीनता को प्रमाणित करता है। यह मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है, जिससे इसका तांत्रिक और धार्मिक महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। हालांकि, इसकी प्राचीन भव्यता पर 13वीं शताब्दी में गहरा आघात लगा। 1235 ईस्वी में, दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने उज्जैन पर आक्रमण किया और मंदिर को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया, साथ ही शिवलिंग को भी खंडित करने का प्रयास किया। इस विनाश के बाद, मंदिर सदियों तक खंडहर के रूप में वीरान पड़ा रहा।
मराठा पुनरुद्धार और वर्तमान स्वरूप
मंदिर के इतिहास में दूसरा महत्वपूर्ण चरण 18वीं शताब्दी में मराठा शासन के दौरान आया। लगभग 550 वर्षों के अंतराल के बाद, मराठा सेनापति राणोजीराव शिंदे ने 1736 ईस्वी में इस पवित्र स्थल के पुनर्निर्माण का कार्य शुरू करवाया। मंदिर का जो भव्य और विशाल स्वरूप आज हम देखते हैं—जिसमें शिखर, गर्भगृह और बाहरी परिसर शामिल हैं—वह मुख्य रूप से इसी मराठा काल की स्थापत्य कला को दर्शाता है। पुनर्निर्माण के बाद से, मंदिर निरंतर लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है, और यह शहर की धार्मिक व सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। वर्तमान में, मंदिर की व्यवस्था और दैनिक अनुष्ठान (जैसे भस्म आरती) प्राचीन परंपराओं के अनुसार ही संचालित होते हैं।
