Maa Shailputri Worship First Day Navratri: चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के इस रूप की पूजा करें, जानिए इनकी महिमा
Maa Shailputri Worship First Day Navratri : चैत्र नवरात्रि का आज पहला दिन है। 22 मार्च कलश स्थापना के साथ मां दुर्गा के पहले रूप शैलपुत्री की उपासना की जाती है। मां की पूजा-उपासना बहुत ही विधि-विधान से की जाती है। इसके पीछे का तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है। इस बार कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 06:29 से सुबह 07:39 तक रहेगा। वैसे कलश स्थापना का दूसरा शुभ मुहूर्त भी है। इस दिन चाहे कलश में जौ बोकर मां का आह्वान करें या नौ दिन के व्रत का संकल्प लेकर ज्योति कलश की स्थापना करें।
चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा
इसके साथ ही इस नवरात्रि में एक विशेष संयोग भी बनता दिख रहा है । इस बार नवरात्रि पर मकर राशि में शनि देव, मंगल के साथ रहेंगे, जो पराक्रम में वृद्धि करेंगे। रवि पुष्य नक्षत्र के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग नवरात्रि को स्वयं सिद्ध बनाएंगे। शनिवार से नवरात्रि का प्रारंभ शनिदेव का स्वयं की राशि मकर में मंगल के साथ रहना निश्चित ही सिद्धि कारक है। इससे कार्य में सफलता, मनोकामना की पूर्ति, साधना में सिद्धि मिलेगी। चैत्र नवरात्रि के दौरान कुंभ राशि में गुरु, शुक्र के साथ रहेगा। मीन में सूर्य, बुध के साथ, मेष में चंद्रमा, वृषभ में राहु, वृश्चिक में केतु विराजमान रहेंगे।
'या देवी सर्वभुतेषू विद्यारूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।'
वैदिक मंत्रोच्चार के साथ ही शारदीय नवरात्र की शुरुआत होती है। इस दिन कलश स्थापना और मां के प्रथम शैलपुत्री के पूजन के साथ नवरात्र शुरू हो जाता है।।
नवरात्रि के पावन पर्व के मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि-विधान से की जाती है। इन रूपों के पीछे तात्विक अवधारणाओं का ज्ञान धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है। पहले दिन शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है।
चैत्र नवरात्रि के पहले दिन ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
अर्थात- देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। ये नवदुर्गा में प्रथम दुर्गा है। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए।
कैसे हुआ मां के शैल रूप का जन्म
मां शैलपुत्री का जन्म हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म हुआ था। इनका वाहन वृषभ होने से देवी को वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता हैं। इनको सती के नाम से भी जाना जाता हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है। एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया, केवल भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है।
सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव और दक्ष के अपमानजनक वचन से सती को क्लेश पहुंचा।
वे अपने पति का ये अपमान न सह सकीं और योगाग्नि में खुद को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस कर दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।
पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्तियां अनंत है।