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Navratri 2025 : पहला दिन माँ शैलपुत्री को समर्पित, सिर्फ यहाँ विराजी हैं माँ शैलपुत्री, जानिए माँ की कथा और उनकी महिमा

maa shailputri : मां शैलपुत्री की आराधना करने से सांसारिक सुख और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। वाराणसी सिटी स्टेशन से करीब चार किलोमीटर दूर माता शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर स्थित है।

Navratri 2025 : पहला दिन माँ शैलपुत्री को समर्पित, सिर्फ यहाँ विराजी हैं माँ शैलपुत्री, जानिए माँ की कथा और उनकी महिमा
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By Meenu Tiwari

maa shailputri : माँ आदिशक्ति माँ की उपासना का पावन पर्व शारदीय नवरात्रि आज से शुरू हो गया है. नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां दुर्गा की साधना भक्तों को शक्ति और आत्मबल प्रदान करती हैं।


मां शैलपुत्री की आराधना करने से सांसारिक सुख और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और साधक उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ता है।


सिर्फ एक जगह विराजी है माँ शैलपुत्री



काशी जहां भगवान शिव विराजमान हैं, वहां आदिशक्ति का भी वास माना जाता है। यही कारण है कि वाराणसी सिटी स्टेशन से करीब चार किलोमीटर दूर माता शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर स्थित है। मान्यता है कि नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री खुद अपने भक्तों को दर्शन देती हैं। इसी आस्था के चलते हर साल शारदीय नवरात्रि की शुरुआत पर मंदिर में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है।


धर्म की नगरी काशी में मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री का सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है मां शैलपुत्री को समर्पित यह मंदिर वाराणसी सिटी रेलवे स्टेशन से 10 से 15 मिनट की दूरी पर वरुणा नदी के पास स्थित है धार्मिक मान्यता है कि इस मंदिर में स्वयं मां शैलपुत्री विराजमान है जो नवरात्र के प्रथम दिन भक्तों को दर्शन देती है यह मंदिर कब स्थापित हुआ इसकी कोई जानकारी नहीं है हालांकि यहां के सेवादारों का दावा है कि पूरी दुनिया में ऐसा मंदिर कहीं नहीं है क्योंकि यहां शैलपुत्री खुद विराजमान हुई थी।

ऐसा रखा गया था शैलपुत्री माता का नाम


​मान्यता है कि माता पार्वती ने हिमवान की पुत्री के रूप में जन्म लिया था इसलिए उनका नाम मां शैलपुत्री रखा गया। माता एक बार महादेव की किसी बात से नाराज होकर कैलाश छोड़कर काशी आ गई लेकिन भोलेनाथ देवी को नाराज कैसे रहने देते ऐसे में वह खुद उन्हें मनाने के लिए वाराणसी आए उस समय माता ने शिव जी को बताया कि यह स्थान उन्हें बहुत पसंद आया अब वह यहीं रहना चाहती हैं यह कहकर इसी मंदिर के स्थान पर विराजमान हो गई तब से यह मंदिर प्राचीन बना हुआ है।


बनारस के शैलपुत्री मंदिर कैसे पहुंचे




वाराणसी में माता शैलपुत्री मंदिर तक पहुंचना बहुत आसान है। शहर में दो प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं। वाराणसी जंक्शन (कैंट रेलवे स्टेशन) से मंदिर की दूरी लगभग 10 से 15 मिनट की है। वहीं मंडुआडीह रेलवे स्टेशन से मंदिर करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित है। दोनों ही स्टेशनों से आप ऑटो, टैक्सी या स्थानीय बस की सुविधा लेकर आसानी से मंदिर पहुंच सकते हैं।

इसके अलावा वाराणसी सड़क मार्ग से भी अच्छे से जुड़ा हुआ है, इसलिए देश के किसी भी हिस्से से यहां आना आसान है। शहर के अंदर ऑटो-रिक्शा, साइकिल-रिक्शा और टैक्सियों की उपलब्धता हर समय रहती है, जिससे भक्तजन बिना किसी परेशानी के मंदिर दर्शन कर सकते हैं।


मां शैलपुत्री की पौराणिक कथा


माता शैलपुत्री को पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना गया है। पूर्व जन्म में वे राजा दक्ष की कन्या सती थीं, जिन्होंने भगवान शिव से विवाह किया था। दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में शिव का अपमान देख सती ने आत्मदाह कर लिया। इसके बाद भगवान शिव ने क्रोधित होकर यज्ञ ध्वस्त कर दिया और सती के शरीर को लेकर विचरण करने लगे। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर के 51 अंग विभक्त किए, जो शक्तिपीठ कहलाए। इसके उपरांत सती ने हिमालय के घर जन्म लेकर शैलपुत्री के रूप में अवतार लिया।

मां शैलपुत्री की आराधना का मंत्र

पूजन के दौरान इस मंत्र का जाप करने से मां शैलपुत्री की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नमः।’

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