Maa Katyayini : आज माँ कात्यायिनी का दिन, महिषासुरमर्दिनी ही कात्यायिनी का रूप... भारत में माँ के कई मंदिर, एक तो 52 शक्तिपीठ में शामिल
Maa Katyayani : महिषासुर का वध कर देवताओं को आतंक से मुक्त कराया. इसलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है.

Maa Katyayani : आज शारदीय नवरात्र का छठवां दिन है. आज माँ कात्यायिनी का दिन है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर मां भगवती ने उनकी पुत्री रूप में जन्म लिया और महिषासुर का वध कर देवताओं को आतंक से मुक्त कराया. इसलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है.
मां कात्यायनी शक्ति पीठ उत्तर प्रदेश के मथुरा के वृंदावन में स्थित है, जो कि एक बहुत ही प्राचीन सिद्ध पीठ माना गया है. भारत में मां कात्यायनी के कई प्रसिद्ध मंदिर स्थित हैं, तो चलिए फिर इन मंदिरों के बारे में आपको बताते हैं.
छतरपुर मंदिर - अक्षरधाम मंदिर के बाद दिल्ली का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर
स्थान :- यह मंदिर दिल्ली के दक्षिण-पश्चिमी बाहरी इलाके, छतरपुर में स्थित है.
यह 70 एकड़ के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है और अक्षरधाम मंदिर के बाद दिल्ली का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है. यहां देवी कात्यायनी के अलावा भगवान शिव, विष्णु, हनुमान और अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं. इस मंदिर का निर्माण 1974 में संत बाबा नागपाल द्वारा स्थापित किया गया था.
कात्यायनी शक्तिपीठ - 52 शक्तिपीठों में से एक
स्थान :- यह मंदिर मथुरा के पास वृंदावन में स्थित है.
यह भारत के 52 शक्तिपीठों में से एक है. पौराणिक कथा के अनुसार, यह वह स्थान है जहां माता सती के बाल (केश) उनके पिता दक्ष के यज्ञकुंड में गिरे थे. यह श्वेत संगमरमर से निर्मित है और वास्तुकला की दृष्टि से अद्वितीय है.
कात्यायनी मंदिर - यह मंदिर साल 1595 में बादशाह अकबर के समय से जुड़ा
स्थान :- यह मंदिर खगड़िया जिले में कोसी नदी के तट पर स्थित है.
मां कात्यायनी का यह मंदिर बागमती नदी किनारे धमारा घाट स्टेशन से कुछ दूरी पर अवस्थित प्रसिद्ध शक्ति पीठ मां कात्यायनी स्थान में दूर-दूर से श्रद्धालु आते-आते हैं। शारदीय नवरात्र में तो देश भर से साधक आते हैं और साधना करते हैं। प्रत्येक सोमवार व शुक्रवार को वैरागन के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है।
वर्ष 1595 में बादशाह अकबर ने मुरार शाही को चौथम तहसील प्रदान किया था। उन्हीं के वंशज राजा मंगल सिंंह व सैकड़ों पशुओं (गाय व भैंस) के मालिक सिरपत जी महाराज ने मिलकर मां कात्यायनी मंदिर की स्थापना की थी। सिरपत जी महाराज की राजा मंगल सिंह से मित्रता थी। एक किंवदंती के अनुसार उन्होंने राजा को बताया कि गाय व भैंस चरने के दौरान एक निश्चित स्थान पर आकर अपने दूध का स्त्राव करती है। राजा ने उक्त स्थल की खुदाई कराया, तो मां का हाथ मिला। दोनों मित्र ने मिलकर मां की हाथ की स्थापना कर पूजा-अर्चना शुरू की। तबसे लेकर आज तक पूजा-अर्चना जारी है। उक्त स्थान पर मंदिर का निर्माण भी कराया। बाद में रोहियार पंचायत वासियों के सहयोग से भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया।
4. कोल्हापुर (महाराष्ट्र)
स्थान :- यह मंदिर महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है.
यह देवी कात्यायनी को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है, जहां भक्त आशीर्वाद लेने और विस्तृत अनुष्ठानों को देखने के लिए आते हैं.
मां कात्यायनी की पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वनमीकथ नामक महर्षि के पुत्र कात्य से कात्य गोत्र की उत्पत्ति हुई. इसी गोत्र में आगे चलकर महर्षि कात्यायन का जन्म हुआ. उनकी कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने मां भगवती को पुत्री के रूप में प्राप्त करने की इच्छा से कठोर तपस्या की. उनकी भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर मां भगवती प्रकट हुईं और वचन दिया कि वे उनके घर पुत्री रूप में अवतरित होंगी. इसी बीच तीनों लोकों पर महिषासुर नामक दैत्य ने अत्याचार बढ़ा दिए. उसके आतंक से परेशान देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु और महादेव से सहायता मांगी. तब त्रिदेव के तेज से प्रकट होकर मां ने महर्षि कात्यायन के घर जन्म लिया. पुत्री के रूप में अवतरित होने के कारण वे कात्यायनी नाम से प्रसिद्ध हुईं.
कहते हैं कि महर्षि कात्यायन ने सबसे पहले तीन दिनों तक उनकी पूजा की. इसके बाद देवी ने संसार को महिषासुर, शुंभ-निशुंभ और अन्य राक्षसों के अत्याचारों से मुक्त कराया. इस प्रकार मां कात्यायनी को महिषासुरमर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है.
