Maa Kaalratri: मां कालरात्रि का स्वरूप है अत्यंत विकराल, डर से कांपते हैं पापी, जानें माता के मंत्र, भोग, स्वरूप और पूजा विधि
शारदीय नवरात्रि का आज सातवां दिन है। आज विधि-विधान से मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना की जा रही है। मां कालरात्रि या मां काली से दुश्मन थर्र-थर्र कांपते हैं। वे पापियों के संहार के लिए कालरात्रि स्वरूप में आती हैं। मां का रूप अत्यंत विकराल और पापियों को भयभीत करने वाला है।
Sharadiya Navratri 2024: शारदीय नवरात्रि का आज सातवां दिन है। आज विधि-विधान से मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना की जा रही है। मां कालरात्रि या मां काली से दुश्मन थर्र-थर्र कांपते हैं। वे पापियों के संहार के लिए कालरात्रि स्वरूप में आती हैं। मां का रूप अत्यंत विकराल और पापियों को भयभीत करने वाला है।
मां दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि की पूजा-अर्चना से साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता है। उनकी पूजा से सभी पाप और विघ्नों का नाश हो जाता है।
मां कालरात्रि का स्वरूप
मां कालरात्रि का शरीर एकदम काला है। वे दुष्टों के संहार के लिए प्रवृत्त दिखाई देती हैं। वे क्रोध में भरी हुई हैं। उनके सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। माता के त्रिनेत्र हैं। मां की नाक से श्वास-प्रश्वास के समय अग्नि की भीषण ज्वालाएं निकलती हैं। इनका वाहन गर्दभ यानि गधा है। ये ऊपर उठे हुए दाहिनी हाथ की वरमुद्रा से श्रद्धालुओं को वर देती हैं।
मां का स्वरूप अपने भक्तों को शुभ फल देने वाला
दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। मां के बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में खड्ग यानि कटार है। मां कालरात्रि का स्वरूप केवल दुष्टों और पापियों के लिए भयानक है, अपने भक्तों और अच्छे जनों के लिए उनका ये रूप शुभ फल देने वाला है। इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहते हैं। मां कालरात्रि की पूजा करने वालों को शत्रु भय या जीव-जंतुओं से भय नहीं होता।
मां कालरात्रि का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेश संस्थिता।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मां कालरात्रि की पूजा विधि
- सबसे पहले सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
- माता कालरात्रि की पूजा के लिए चौकी सजाएं।
- मां को सिंदूर का टीका लगाएं।
- मां कालरात्रि की मूर्ति या तस्वीर पर चुनरी चढ़ाएं।
- उनके सामने दीपक जलाएं।
- उन्हें रात की रानी या फिर अड़हुल का फूल चढ़ाएं।
- मां कालरात्रि को गुड़ या गुड़ से बनी चीजों का भोग लगाएं।
- मां को मालपुए का भोग लगाएं, इससे उनकी प्रसन्नता प्राप्त होगी।
- इसके बाद दुर्गा सप्तशती का विधि-विधान से पाठ करें।
- दुर्गा चालीसा का भी पाठ करें।
- मां की आरती के बाद क्षमा प्रार्थना करें।
- आरती के बाद प्रसाद का वितरण करें।
मां कालरात्रि की कथा जरूर पढ़ें
एक समय तीनों लोकों में शुंभ-निशुंभ दैत्य और रक्तबीज राक्षस ने हाहाकार मचा रखा था। इससे सभी देवता त्राहिमाम कर उठे। इन दुष्ट दानवों से आक्रांत देवता शिवजी के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना की। भगवान शिव ने माता पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। शिवजी की बात मानकर माता पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। इसके बाद मां ने चंड-मुंड का वध किया और मां चंडी कहलाईं।
मां ने किया रक्तबीज का संहार
जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज पर विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों से प्रहार किए, तो उसके शरीर से निकले रक्त से और लाखों रक्तबीज दैत्य उत्पन्न हो गए। मां जितने रक्तबीजों को मारतीं, उसका रक्त जमीन पर गिरते ही एक नया रक्तबीज बन जाता। ये देख मां दुर्गा ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद मां दुर्गा ने माता कालरात्रि से कहा कि दैत्य रक्तबीज के रक्त और उससे पैदा होने वाले दैत्यों को अपनी मुख से खाती जाओ।
मां कालरात्रि ने रक्तबीज का सारा रक्त पी लिया और उससे पैदा सारे दैत्य भी खा डाले
मां कालरात्रि ने रक्तबीज को शश्त्रों से मारने पर जितने भी रक्त के कण गिरते उन सभी को अपने मुख में ले लिया और उससे पैदा होने वाले दैत्यों को भी अपने दांतों से चबा-चबाकर खाने लगीं। माता की बाकी शक्तियों ने भी सभी दैत्यों का वध कर दिया। रक्त रहित हो जाने पर रक्तबीज की शक्ति क्षीण हो गई, तब उसका वध माता ने कर दिया।