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Lingeshwari Mata temple Open : साल भर का इंतजार हुआ ख़त्म, माँ की आराधना कर नख से खीरा काटकर खाया दम्पत्तियों ने और माँगा संतान सुख, जानें माँ के रहस्य और उत्पत्ति

Lingeshwari Mata temple : आज सूर्योदय से पहले मंदिर के द्वार खोले गए और सूर्यास्त से पहले ही बंद भी कर दिए जायेंगे.

Lingeshwari Mata temple Open : साल भर का इंतजार हुआ ख़त्म, माँ की आराधना कर नख से खीरा काटकर खाया दम्पत्तियों ने और माँगा संतान सुख, जानें माँ के रहस्य और उत्पत्ति
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By Meenu Tiwari

Lingeshwari Mata temple Open : छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में आज आखिर साल भर के इंतजार के बाद लिंगेश्वरी माता के पट खुल ही गए. यहाँ संतान प्राप्ति की चाह में श्रद्धालुओं का आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा. देशभर से श्रद्धालु यहां केवल संतान प्राप्ति की कामना लेकर पहुंचे. श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने यहाँ मंदिर परिसर और आसपास के क्षेत्र में पुलिस बल की तैनाती की है.

सूत्रों के अनुसार आज सूर्योदय से पहले मंदिर के द्वार खोले गए और सूर्यास्त से पहले ही बंद भी कर दिए जायेंगे. अगले एक वर्ष बाद ही श्रद्धालुओं को यहां दर्शन का अवसर मिलेगा. मंदिर में दर्शन के लिए दूर-दराज से आए भक्त एक दिन पूर्व से ही लाइन में लग गए थे. कई किलोमीटर लंबी कतारों में श्रद्धालु अपने साथ भोजन और आवश्यक सामग्री लेकर पहुंचे.


जैसा की हमने आपको पूर्व में भी बताया था की यहाँ मान्यता है कि माता लिंगेश्वरी के दरबार में माथा टेकने और यहां प्रसाद स्वरूप दिए जाने वाले खीरे का सेवन करने से संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होती है. परंपरा के अनुसार दंपत्ति को खीरा प्रसाद के रूप में दिया जाता है. पति और पत्नी इसे नाखून से दो बराबर हिस्सों में बांटकर ग्रहण करते हैं.


गुफा को बंद करते समय द्वार पर रेत बिछाई जाती है


लिंगेश्वरी माता की गुफा को बंद करते समय द्वार पर रेत बिछाई जाती है. अगले साल जब गुफा खोली जाती है तो उस रेत पर बने पदचिह्नों को देखकर पुजारी भविष्यवाणी करते हैं. कमल के निशान समृद्धि का संकेत माने जाते हैं, जबकि बाघ या बिल्ली के निशान विपत्ति और भय का प्रतीक माने जाते हैं. इसी परंपरा के आधार पर पूरे क्षेत्र का वार्षिक कैलेंडर तय होता है.




खरगोश गायब लिंग प्रकट हुआ


कहा जाता है कि बहुत समय पहले एक शिकारी खरगोश का पीछा करते-करते इसी गुफा तक पहुंचा. खरगोश वहां अचानक गायब हो गया और उसी जगह पत्थर के रूप में लिंग प्रकट हुआ. बाद में माता ने स्वप्न में आदेश दिया कि साल में केवल एक दिन मेरी पूजा की जाएगी. तभी से इस परंपरा की शुरुआत हुई और आज तक यह मान्यता कायम है.


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