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लिंगेश्वरी मंदिर, कोंडागांव, बस्तर: शिव के स्त्री स्वरूप का आशीर्वाद पाने रेंग कर घुसते हैं भक्त इस गुफा मंदिर के भीतर

लिंगेश्वरी मंदिर, कोंडागांव, बस्तर: शिव के स्त्री स्वरूप का आशीर्वाद पाने रेंग कर घुसते हैं भक्त इस गुफा मंदिर के भीतर
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By NPG News

NPG डेस्क बस्तर की एक गुप्त गुफा ऐसी है जिसमें भगवान शिव के स्त्री रूप की पूजा की जाती है।माता लिंगेश्वरी देवी का यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन के लिए खुलता है। संतानहीन जोड़े संतान की आस में यहां पहुंचते हैं।कोंडागांव जिले के फरसगांव से लगभग 8 किलोमीटर दूर बड़े डोंगर के रास्ते पर आलोर गांव स्थित इस गुफा का मुख इतना छोटा है कि बैठकर या रेंगकर भीतर जाना होता है। लेकिन भक्तों की श्रृद्धा उन्हें दूर - दूर से यहां खींच लाती है। मंदिर से जुड़ी और भी ऐसी परंपराएं हैं जो रोचक भी हैं और निराली भी। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में।

बस्तर संभाग के कोंडागांव जिले के फरसगांव ब्लाक के उत्तर पश्चिम में ग्राम आलोर स्थित है। इस गांव से लगभग 2 किलोमीटर दूर एक पहाड़ है।इस पहाड़ी के ऊपर एक फैली हुई चट्टान है। चट्टान के ऊपर एक विशाल पत्थर है। बाहर से अन्य पत्थरों की तरह सामान्य दिखने वाला यह पत्थर अंदर से स्तूप नुमा है, मानो कोई तराशा हुआ उल्टा कटोरा हो।

इस मंदिर में एक छोटी सी सुरंग है जो इस गुफा का प्रवेश द्वार है। प्रवेश द्वार इतना छोटा है कि बैठकर या लेटकर ही यहां प्रवेश किया जा सकता है।अंदर लगभग 25 से 30 लोग ही ठीक से बैठ सकते हैं।गुफा के अंदर चट्टान के बीचों-बीच प्राकृतिक शिवलिंग है जिसकी लंबाई लगभग 2 से ढाई फीट है।

साल में सिर्फ एक दिन खुलता है मंदिर

इस मंदिर की खास बात यह है कि यह मंदिर साल में एक बार खुलता है और उस दिन माता के दर्शन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है। इसी दिन यहां विशाल मेला भी भरता है। पीढ़ियों से चली आ रही विशेष परंपरा और लोक मान्यता के कारण भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की नवमीं तिथि के पश्चात आने वाले बुधवार को एक ही दिन शिवलिंग की पूजा होती है। इसे शिव और शक्ति का समन्वित नाम दिया गया है लिंगेश्वरी देवी।

संतान की आस में आते हैं दंपत्ति

नियत तिथि पर पट खुलने से पहले ही यहां हर वर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। बताया जाता है कि यहां ज्यादातर नि:संतान दंपत्ति संतान की मनोकामना के साथ आते हैं। नियमानुसार ये दंपत्ति खीरा लिंगेश्वरी माता को चढ़ाते हैं। पुजारी वही चढ़ाया हुआ खीरा उन्हें प्रसाद के रुप में देते हैं। खीरे को नाखून से फाड़कर शिवलिंग के समक्ष ही कड़वे भाग समेत खाकर गुफा से बाहर निकलना होता है।मन्नत पूरी होने पर अगले वर्ष श्रद्धालु क्षमतानुसार चढ़ावा चढ़ाने भी आते हैं।

पद-चिन्ह देख भविष्य का अनुमान लगाते हैं पुजारी

परंपरानुसार एक दिन की पूजा होने के बाद मंदिर को बंद कर दिया जाता है।स्थानीय लोगों का कहना है कि पूजा के बाद मंदिर की सतह पर रेत बिछाकर उसे पत्थर टिकाकर बंद कर दिया जाता है। इसके अगले साल इस रेत पर जो ‍चिन्ह मिलते हैं उससे देखकर पुजारी अगले साल के भविष्य का अनुमान लगाते हैं।

यदि कमल का निशान हो तो धन संपदा में बढ़ोत्तरी , हाथी के पांव के निशान हों तो उन्नति, घोड़े के खुर के निशान हों तो युद्घ, बाघ के पैर के निशान हों तो आतंक, बिल्ली के पैर के निशान हों तो भय तथा मुर्गियों के पैर के निशान होने पर अकाल होने के संकेत माने जाते है।यही अनोखी मान्यताएं और पीढ़ियों का अगाध विश्वास श्रृद्धालुओं को लिंगेश्वरी मंदिर के द्वार पर ले कर आता है।

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