Lakshmaneshwar Mahadev : इस शिवलिंग में है एक लाख छिद्र, एक छिद्र पातालपुरी का पथ...लक्ष चावल चढ़ाने की परंपरा
Lakshmaneshwar Mahadev : लखनेश्वर का अर्थ लाखों छिद्र वाला ईश्वर और लक्ष्मणेश्वर का अर्थ होता है- लक्ष्मण का ईश्वर. यहां के शिवलिंग की खासियत यह भी है कि शिवलिंग के लाखों छिद्र के अंदर कुंड बने हैं, जिसमें गंगा, जमुना और सरस्वती नदी का पवित्र जल है. इसलिए यहां पानी कभी कम नहीं होता. ऐसा माना जाता है कि महादेव की इस मंदिर में पूजा करने से लाखों शिवलिंग की पूजा का फल मिलता है और साथ ही छय रोग से भी मुक्ति मिलती है.
Lakshmaneshwar Mahadev : छत्तीसगढ़ की काशी कहे जाने वाले जांजगीर चांपा जिले के खरौद नगर में स्थित लक्ष्मणेश्वर मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ जुटी हुई है. मान्यता है कि मंदिर के गर्भगृह में श्रीराम के अनुज लक्ष्मण के द्वारा स्थापित लक्ष्यलिंग स्थित है। इसे लखेश्वर महादेव भी कहा जाता है क्योंकि इसमें एक लाख लिंग है। इनमें से एक छिद्र पातालपुरी का पथ है। जब भी जल इस शिवलिंग में डाला जाता है, वह सब छिद्रों में समा जाता है.
इसके साथ ही, यहां एक छिद्र अक्षय कुण्ड भी है जिसमें जल हमेशा भरा रहता है, और इसी कारण इसे लखेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है. लक्ष्मणेश्वर मंदिर का लक्षलिंग जमीन से करीब 30 फीट ऊपर है और इसे स्वयंभू भी माना जाता है, जो कि इस स्थान को और भी विशेष बनाता है.
लक्ष्मणेश्वर महादेव में चढ़ते है लक्ष चावल
सावन माह में खरौद के लक्ष्मणेश्वर महादेव में एक लाख छिद्र होने के कारण लाख चावल चढ़ाने का विशेष महत्व है. लोग मनोकामना पूरी करने के लिए चावल के एक लाख दाने, कपड़े की थैली में भरकर चढ़ाते हैं. इस चावल को लाख चाउर या लक्ष चावल भी कहा जाता है.
लक्ष्मण ने की थी स्थापना
लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग स्थित है, जिसके बारे में मान्यता है कि इसकी स्थापना लक्ष्मण जी ने की थी, इसलिए इसे लक्ष्मणेश्वर महादेव कहते हैं. इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र होने के कारण इसे लक्षलिंग के नाम से भी जाना जाता है. सावन के महीने में शिवजी की पूजा और अभिषेक करना बेहद शुभ माना जाता है और इस महीने में अभिषेक करना अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक फलदायी माना जाता है. यही वजह है कि इस महीने में बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन गंगा से जल लाकर शिवजी का अभिषेक करते हैं. लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर, जो की शिवरीनारायण से 3 किलोमीटर, जांजगीर जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर और छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 120 किलोमीटर दूर खरौद नगर में स्थित है. कहते है की भगवान राम ने यहां पर खर और दूषण का वध किया था और इसलिए इस जगह का नाम खरौद पड़ा. खरौद नगर में प्राचीन कालीन अनेक मंदिरों की उपस्थिति के कारण इसे छत्तीसगढ़ की काशी भी कहा जाता है.