क्या है भगवान शिव की उत्पत्ति का रहस्य, जानें सांसारिक होते हुए भी क्यों श्मशान में रहते हैं देवाधिदेव महादेव?
भगवान शिव देवताओं और असुरों दोनों के लिए पूज्य रहे। वो एक ऐसे भगवान हैं, जिनके प्रति हर कोई श्रद्धा रखता है। मान्यता है कि वे केवल श्रद्धा भाव से ही प्रसन्न हो जाते हैं। सावन का महीना शुरू होने वाला है, जो भगवान भोलेनाथ का प्रिय महीना है। आज हम जानेंगे भगवान शिव की उत्पत्ति के रहस्य के बारे में, साथ ही जानेंगे कि पारिवारिक होते हुए भी वे श्मशान में क्यों रहते हैं?
रायपुर, एनपीजी डेस्क। इस साल यानी 2024 में सावन का महीना 22 जुलाई से शुरू होकर 19 अगस्त तक चलेगा। इस महीने में अद्भुत संयोग बन रहा है। महीने की शुरुआत भी सोमवार से हो रही है, वहीं सावन का आखिरी दिन 19 अगस्त भी सोमवार है। इस बार महीने में 5 सोमवार पड़ रहे हैं।
सावन का महीना भगवान भोलेनाथ का प्रिय महीना है। आज हम जानेंगे भगवान शिव की उत्पत्ति के रहस्य के बारे में, साथ ही जानेंगे कि पारिवारिक होते हुए भी वे श्मशान में क्यों रहते हैं?
भगवान शिव का न तो आदि है और न अंत
भगवान शिव को स्वयंभू कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि वे अजन्मा हैं। उनका जन्म किसी भी मानव शरीर से नहीं हुआ है। उनका न तो आदि है और न अंत। वे सृष्टि से पहले भी थे और सृष्टि के खत्म के बाद भी रहेंगे। भोलेनाथ को अजन्मा और अविनाशी कहा जाता है। त्रिदेवों में भगवान शिव का स्थान महत्वपूर्ण है। भगवान ब्रह्मा सृजनकर्ता, भगवान विष्णु पालनकर्ता और भगवान शिव विनाशक की भूमिका निभाते हैं। त्रिदेव मिलकर प्रकृति के नियम का संकेत देते हैं कि जो उत्पन्न हुआ है, उसका विनाश भी होना तय है।
भगवान शिव को कहा जाता है आदिदेव भी
कई पुराणों के मुताबिक, भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु शिव से उत्पन्न हुए हैं। हालांकि विष्णु पुराण में भगवान शिव के बारे में कहा गया है कि शिव भगवान विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न हुए। वहीं शिव के 11 अवतार हैं, उनके उत्पन्न और प्रकट होने की भी अलग-अलग कथाएं हैं। भगवान शिव को आदिदेव भी कहा जाता है, जिसका अर्थ सबसे पहला है।
भगवान शिव को लेकर ये कथा है प्रचलित
हालांकि भगवान शिव को लेकर एक और कहानी बहुत प्रचलित है। दरअसल एक बार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच बहस हुई। दोनों खुद को सर्वश्रेष्ठ बता रहे थे, तभी एक रहस्यमयी खंभा दिखाई दिया। खंभे का ओर-छोर दिखाई नहीं पड़ रहा था। भगवान ब्रह्मा और विष्णु को एक आवाज सुनाई दी और उन्हें एक-दूसरे से मुकाबला करने की चुनौती दी गई। उन्हें खंभे का पहला और आखिरी छोर ढूंढने के लिए कहा गया। भगवान ब्रह्मा ने तुरंत एक पक्षी का रूप धारण किया और खंभे के ऊपरी हिस्से की खोज करने निकल पड़े।
शिव हैं अनंत
दूसरी तरफ भगवान विष्णु ने वराह का रूप धारण किया और खंभे के आखिरी छोर को ढूंढने निकल पड़े। दोनों ने बहुत प्रयास किए, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। जब उन्होंने हार मान ली, तो उन्हें भगवान शिव नजर आए। तब उन्हें अहसास हुआ कि ब्रह्मांड का संचालन एक सर्वोच्च शक्ति कर रही है, जो भगवान शिव ही हैं। इस कथा में खंभे द्वारा बताया गया है कि शिव अनंत हैं।
शिव और विष्णु पुराण में अलग-अलग कथा प्रचलित
शिव पुराण के अनुसार, एक बार जब भगवान शिव अपने टखने पर अमृत मल रहे थे, तब उससे भगवान विष्णु पैदा हुए, जबकि विष्णु पुराण के अनुसार शिव भगवान विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न हुए बताए गए हैं। संहारक कहे जाने वाले भगवान शिव ने समुद्र मंथन के बाद देवों की रक्षा करने के लिए विष पी लिया था, जिससे उनका कंठ नीला हो गए और वे नीलकंठ कहलाए। मान्यता है कि अगर भगवान शिव अपने भक्तों पर प्रसन्न हो जाएं, तो सारी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं।
भगवान शिव जल्दी हो जाते हैं भक्तों पर प्रसन्न
माना जाता है कि भगवान शिव बहुत भोले हैं और उन्हें प्रसन्न करना बहुत आसान है। वे केवल भक्तिभाव से भी प्रसन्न हो जाते हैं। जो भी व्यक्ति श्रद्धा से उन्हें याद करता है, वो उससे भी प्रसन्न हो जाते हैं। प्राचीन काल में देवताओं के साथ-साथ दानव भी भगवान शिव की पूजा करते थे और कई तरह के वरदान प्राप्त कर लेते थे।
श्मशान में रहते हैं देवाधिदेव महादेव
भगवान शिव पारिवारिक और गृहस्थ होने के बाद भी श्मशान में रहते हैं। वे श्मशान के देवता हैं, लेकिन अधिकतर लोगों के मन में ये सवाल आता है कि भगवान भोलेनाथ गृहस्थ होते हुए भी श्मशान में निवास क्यों करते हैं? वहीं उनकी वेशभूषा भी अन्य गृहस्थ देवताओं से बिल्कुल अलग है। उनके माथे पर चंद्रमा, गंगा नदी और गले में सर्प का हार है। वे मृग छाल पहनते हैं और शरीर पर भस्म लगाते हैं। शिवजी के परिवार में माता पार्वती, भगवान गणेश, कार्तिकेय जी और नंदी शामिल हैं।
शिव देते हैं संसार को ये संदेश
दरअसल, पूरा संसार ही मोहमाया का प्रतीक है। संसार के लोग मोह माया में फंसे हुए हैं। वहीं श्मशान वैराग्य का प्रतीक है। दरअसल जो आया है उसका आखिरी सत्य श्मशान ही है। चाहे आप धनवान हों या गरीब, शक्तिशाली हों या निरीह, राजा हों या रंक, सभी की गति एक न एक दिन यही होनी है। भगवान शिव के श्मशान में रहने के पीछे हर प्राणी के जीवन प्रबंधन का सूत्र छिपा है।
मन और आत्मा से धारण करें वैराग्य
भगवान शिव संदेश देते हैं कि हर व्यक्ति को संसार में रहते हुए अपने हर कर्तव्य को पूरी निष्ठा के साथ निभाना चाहिए, लेकिन इसके लिए मोह-माया में बंधे रहना जरूरी नहीं है। जीवन में सबकुछ करते हुए भी मन और आत्मा से वैराग्य को धारण करना चाहिए। ये संसार नश्वर है, इसलिए जीवन में मौजूद हर चीज भी एक दिन नष्ट हो जाएगी। इसलिए संसार में रहते हुए भी किसी से अधिक मोह नहीं रखना चाहिए, हालांकि अपने कर्तव्य निभाने चाहिए। अच्छी और खराब परिस्थितियों में भी व्यक्ति को समभाव रहना चाहिए, क्योंकि इनमें से कुछ भी हमेशा नहीं रहेगा।
संहार के देवता हैं शिव
शिवजी को संहार का देवता माना गया है। मान्यताओं के अनुसार, ये सृष्टि बनती और बिगड़ती रहती है। भगवान ब्रह्मा सृष्टि की रचना करते हैं, भगवान विष्णु सृष्टि का पालन करते हैं और भगवान शिव कलियुग का अंत होने पर सृष्टि का संहार करते हैं। श्मशान में जीवन का अंत होता है, इसीलिए शिवजी का निवास ऐसी जगह पर है, जहां मानव शरीर और उससे जुड़े सभी रिश्ते, हर मोह और सभी तरह के बंधन खत्म हो जाते हैं। जीवों की मृत्यु के बाद आत्मा शिव में ही समा जाती है, इसलिए शिव श्मशान में वास करते हैं और श्मशान के देव कहलाते हैं।
चिता की भस्म लगाने के पीछे वजह
भगवान शिव को मृत्यु का स्वामी माना गया है। शरीर नश्वर है और एक दिन जलकर भस्म में बदल जाएगा। जीवन के इसी पड़ाव का भगवान शिव सम्मान करते हैं। इस सम्मान को वो अपने शरीर पर भस्म लगाकर प्रकट करते हैं। इससे हमें ये संदेश भी मिलता है कि हमें शारीरिक सुंदरता पर घमंड नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये एक दिन खत्म हो जाएगा।