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Korwa tribals Raksha Bandhan : यहाँ राखी कलाई में नहीं बल्कि खेतों में खूंटा में बांधी जाती है... एक सप्ताह तक कोरवा आदिवासी मनाते हैं "रक्षाबंधन का पर्व"

Korwa tribals Raksha Bandhan : प्रदेश की अतिसंरक्षित पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोग करीब एक सप्ताह तक राखी का पर्व मनाते हैं, जो भाई-बहन के रिश्ते से नहीं बल्कि खेती की पुरातन परंपरा से जुड़ा हुआ है।

Korwa tribals Raksha Bandhan : यहाँ राखी कलाई में नहीं बल्कि खेतों में खूंटा में बांधी जाती है... एक सप्ताह तक कोरवा आदिवासी मनाते हैं रक्षाबंधन का पर्व
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By Meenu

Korwa tribals Raksha Bandhan : छत्तीसगढ़ के एक आदिवासी अंचल में रक्षाबंधन का पर्व अनूठे तरीके से मनाया जाता है. बताते चले की छत्तीसगढ़ के सरगुजा क्षेत्र के आदिवासी रक्षाबंधन का पर्व एक सप्ताह से ज्यादा वक्त तक मनाते हैं। यहां इस त्योहार को भाई-बहन के पर्व के रूप में नहीं मनाया जाता, यहां रहने वाले कोरवा आदिवासियों के लिए इस पर्व का अलग महत्त्व होता है।

प्रदेश की अतिसंरक्षित पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोग करीब एक सप्ताह तक राखी का पर्व मनाते हैं, जो भाई-बहन के रिश्ते से नहीं बल्कि खेती की पुरातन परंपरा से जुड़ा हुआ है। इस परंपरा के अनुसार राखी कलाई में नहीं बांधी जाती, बल्कि खेतों में राखी खूंटा स्थापित किया जाता है।

कुलदेवता की पूजा के बाद पूरे सम्मान के साथ जनजातीय परिवार के लोग तेंदू की लकड़ी, शतावर और भेलवां पत्ते की पूजा कर उसे राखी बांधते हैं। इसके बाद इस राखी खूंटा को अपने खेतों में स्थापित कर उन्नत फसल की कामना करते हैं।


बुरी नजरों से बचाता है राखी खूंटा

तीन पौधों के तने और पत्तों से बने विशेष खूंटे को स्थापित करने के पूरे विधान के दौरान ग्रामीण ढोल, नगाड़े और मांदर की थाप के साथ नृत्य करते हैं। वे नाचते-गाते हुए खूंटे को अपने खेतों में लाते हैं और स्थापित करते हैं। इस मौके पर गाए जाने वाले गीत भी खास तरह के होते हैं। इस त्योहार के बारे में ग्रामीणों का कहना है कि यह खूंटा अच्छी फसल को बुरी नजरों से बचाता है। राखी खूंटा के लिए जंगल से तेंदू की लकड़ी, करंगी कांटा (आयुर्वेद में जिसे शतावर कहा जाता है) और भेलवा की पत्ती को जंगल से लाने के लिए भी अलग से विधान है, जिसमें पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है।



जनजातीय राखी का वैज्ञानिक महत्व

वनवासियों के इस रक्षाबंधन का जितना पारंपरिक महत्व है उतना ही वैज्ञानिक भी। आयुर्वेद के जानकारों का कहना है कि जिन पौधों का प्रयोग इस पूजा में किया जाता है उसका आयुर्वेद में विशेष महत्व है। आयुर्वेद के जानकार के अनुसार शतावर को आयुर्वेद में बल एवं पुष्टिवर्धक के रूप में जाना जाता है। आध्यात्म से जुड़े लोग भी इन पौधों को आसुरी शक्तियों का शत्रु मानते हैं। जानकार बताते हैं कि इन्हीं वैज्ञानिक तथ्यों को लेकर पूर्वजों ने इस प्रथा की शुरूआत की होगी। अन्य पौधे भी प्राकृतिक कीटनाशक होते हैं जिसके आस-पास होने से फसल की रक्षा अपने आप हो जाती है। इतना ही नहीं, खेतों के बीच में खूंटा स्थापित किए जाने से रात में जंगली जानवर उसे इंसान समझकर डर के मारे खेत में नहीं जाते।

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