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Jyotirlinga Darshan 5 (Kedarnath Jyotirlinga) : जब पांडवों से छिपने के लिए शिव जी ने लिया था बैल का रूप... और कहलाये केदारनाथ, इनके बिना अधूरे है केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, जाने इनकी महिमा-रहस्य, यात्रा और सावधानी

Kedarnath Jyotirlinga : भगवान बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में केदारनाथ में पूजे जाते हैं। अंतर्ध्‍यान होते समय भगवान के धड़ से ऊपर का हिस्सा काठमांडू में प्रकट हुआ। वहां वह पशुपतिनाथ कहलाए।

Jyotirlinga Darshan 5 (Kedarnath Jyotirlinga) : जब पांडवों से छिपने के लिए शिव जी ने लिया था बैल का रूप... और कहलाये केदारनाथ, इनके बिना अधूरे है केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, जाने इनकी महिमा-रहस्य,  यात्रा और सावधानी
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By Meenu Tiwari

Jyotirlinga Darshan 5 (Kedarnath Jyotirlinga) : केदारनाथ मंदिर देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहां पांडवों को भगवान शिव का आशीर्वाद मिला था। इसके बाद पांडवों को भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति मिल गई थी। केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद जिले में स्थित है। यह समुद्रतल से 3593 फीट की ऊंचाई पर बना हुआ एक भव्य एवं विशाल मंदिर है। केदारनाथ द्वादश (11वां) ज्योतिर्लिंग है। आइये आपको NPG NEWS 12 ज्योतिर्लिंग दर्शन की कड़ी में आज केदारनाथ ज्योतिर्लिंग से रूबरू कराने जा रहे हैं.


पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को महादेव का आशीर्वाद लेने की सलाह दी इसके लिए पांडव भगवान शिव की नगरी काशी पहुंचे। भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वह हिमालय में गुप्तकाशी में छिप गए। पांडव यह जान चुके थे, इसलिए भगवान पांडव के गुप्तकाशी पहुंचने से पहले ही केदारनाथ पहुंच गए। यहां बैल का रूप धारण कर वह अन्य पशुओं में शामिल हो गए। पांडवों को संदेह हुआ तो भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर अपने पैर फैला दिए। पैर के नीचे से अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर भगवान शिव रूपी बैल पैरों के नीचे से नहीं गए। इस पर भीम बैल पर झपटे तो बैल भूमि में अंतर्ध्‍यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भोलेनाथ पांडवों की भक्ति और दृढ़ संकल्प से प्रसन्न हुए और दर्शन देकर उन्हें पाप मुक्त कर दिया। तभी से भगवान बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में केदारनाथ में पूजे जाते हैं। अंतर्ध्‍यान होते समय भगवान के धड़ से ऊपर का हिस्सा काठमांडू में प्रकट हुआ। वहां वह पशुपतिनाथ कहलाए।


पुराणों की भविष्यवाणी के अनुसार इस समूचे क्षेत्र के तीर्थ लुप्त हो जाएंगे। माना जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे, बद्रीनाथ का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा और भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे। पुराणों के अनुसार वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे और वर्षों बाद भविष्य में 'भविष्यबद्री' नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा।




चार धाम यात्रा


भारतीय राज्य उत्तराखंड में गिरिराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक सर्वोच्च केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर। इस संपूर्ण क्षेत्र को केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। यह स्थान छोटा चार धाम में से एक है।

पुराण अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है।

केदार घाटी में दो पहाड़ हैं


नर और नारायण पर्वत। विष्णु के 24 अवतारों में से एक नर और नारायण ऋषि की यह तपोभूमि है। दूसरी ओर बद्रीनाथ धाम है जहां भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। कहते हैं कि सतयुग में बद्रीनाथ धाम की स्थापना नारायण ने की थी। इसी आशय को शिवपुराण के कोटि रुद्र संहिता में भी व्यक्त किया गया है।


केदारनाथ और पशुपति नाथ मिलकर पूर्ण शिवलिंग बनता है


केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। इसे अर्द्धज्योतिर्लिंग कहते हैं। नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर को मिलाकर यह पूर्ण होता है। यहां स्थित स्वयंभू शिवलिंग अतिप्राचीन है। यहां के मंदिर का निर्माण जन्मेजय ने कराया था और जीर्णोद्धार आदिशंकराचार्य ने किया था।

एक रेखा पर बने हैं केदारनाथ और रामेश्‍वरम मंदिर


केदारनाथ मंदिर को रामेश्वरम मंदिर की सीध में बना हुआ माना जाता है। उक्त दोनों मंदिरों के बीच में कालेश्वर (तेलंगाना), श्रीकालाहस्ती मंदिर (आंध्रा), एकम्बरेश्वर मंदिर (तमिलनाडु), अरुणाचल मंदिर (तमिलनाडु), तिलई नटराज मंदिर (चिदंबरम्) और रामेश्वरम् (तमिलनाडु) आता है। ये शिवलिंग पंचभूतों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

400 वर्ष तक बर्फ में दबा रहा मंदिर


वर्तमान में स्थित केदारेश्वर मंदिर के पीछे सर्वप्रथम पांडवों ने मंदिर बनवाया था, लेकिन वक्त के थपेड़ों की मार के चलते यह मंदिर लुप्त हो गया। बाद में 8वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने एक नए मंदिर का निर्माण कराया, जो 400 वर्ष तक बर्फ में दबा रहा। तब इस मंदिर का निर्माण 508 ईसा पूर्व जन्मे और 476 ईसा पूर्व देहत्याग गए आदिशंकराचार्य ने करवाया था। इस मंदिर के पीछे ही उनकी समाधि है। इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है। पहले 10वीं सदी में मालवा के राजा भोज द्वारा और फिर 13वीं सदी में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया।




400 सालों तक कैसे बर्फ में दबा रहा केदारनाथ का मंदिर और जब बर्फ से बाहर निकला तो पूर्णत: सुरक्षित था। वैज्ञानिकों के अनुसार मंदिर की दीवार और पत्थरों पर आज भी इसके निशान देखे जा सकते हैं। दरअसल, केदारनाथ का यह इलाका चोराबरी ग्लैशियर का एक हिस्सा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लैशियरों के लगातार पिघलते रहने और चट्टानों के खिसकते रहने से आगे भी इस तरह का जलप्रलय या अन्य प्राकृतिक आपदाएं जारी रहेंगी।

6 माह तक नहीं बुझता है दीपक


दीपावली महापर्व के दूसरे दिन के दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। 6 माह तक मंदिर के अंदर दीपक जलता रहता है। पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं। 6 माह बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं, तब उत्तराखंड की यात्रा आरंभ होती है। 6 माह मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता है। लेकिन आश्चर्य की बा‍त कि 6 माह तक दीपक भी जलता रहता और निरंतर पूजा भी होती रहती है। कपाट खुलने के बाद यह भी आश्चर्य का विषय है कि वैसी की वैसी ही साफ-सफाई मिलती है, जैसी कि छोड़कर गए थे।

कैसे बना होगा यह मंदिर अभी भी रहस्य बरकरार


यह मंदिर कटवां पत्थरों के भूरे रंग के विशाल और मजबूत शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर खड़े 85 फुट ऊंचे, 187 फुट लंबे और 80 फुट चौड़े मंदिर की दीवारें 12 फुट मोटी हैं। यह आश्चर्य ही है कि इतने भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई पर लाकर व तराशकर कैसे मंदिर की शक्ल दी गई होगी? खासकर यह विशालकाय छत कैसे खंभों पर रखी गई? पत्थरों को एक-दूसरे में जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।

निरंतर बदलती रहती है यहां की प्रकृति


केदारनाथ धाम में एक तरफ करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदार, दूसरी तरफ 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड का पहाड़। न सिर्फ 3 पहाड़ बल्कि 5 नदियों का संगम भी है यहां- मं‍दाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी। इन नदियों में अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है। इसी के किनारे है केदारेश्वर धाम। यहां सर्दियों में भारी बर्फ और बारिश में जबरदस्त पानी रहता है। यहां कब बादल फट जाए और कब बाढ़ आ जाए कोई नहीं जानता।

कौन करता है केदारनाथ में पूजा

केदारनाथ के तीर्थ पुरोहित इस क्षेत्र में उनके पूर्वज भगवान नर नारायण और दक्ष प्रजापति के समय से यहां पूजा करते आए हैं। उन्हें यहां पूजा करने का अधिकार पांडवों के पौत्र राजा जनमेजय ने किया था। साथ ही संपूर्ण केदार क्षेत्र भी उन्हें दान में दे दिया था। केदारनाथ के जो मुख्य पुजारी शंकराचार्य के वंशज है जो कर्नाटक के वीराशैवा समुदाय से तालुख रखते हैं। जिन्हें रावल नाम से पुकारा जाता है। केदारनाथ के मुख्य पुजारी रावल होने के बाद भी वह वहां पूजा नहीं कराते हैं। वह दूसरों पुजारियों को निर्देश देकर पूजा कराते हैं।


तीन भाग में बंटा है केदारेश्वर मंदिर

मंदिर को तीन भागों में बांटा जा सकता है। पहला 1) गर्भगृह 2) मध्य भाग 3 सभा मण्डप। गर्भगृह में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित है। ज्योतिर्लिंग के आगे के हिस्से पर भगवान गणेश के साथ मां पार्वती का श्री यंत्र भी स्थित है। ज्योतिर्लिंग पर देखने पर ऐसा लगता है कि वहां प्राकृतिक रुप से यज्ञोपवीत (जनेऊ) अंकित देखा जा सकता है। साथ ही पिछले भाग पर प्राकृतिक स्फटिक की माला देखी जा सकती है। यहां हजारों वर्षों से एक दीपक जल रहा है। जब मंदिर छह महीने के लिए बंद कर दिया जाता है उस समय भी यह दीपक अपने आप जलता रहता है। मंदिर में अंदर चार विशालकाय स्तंभ भी हैं जिन्हें 4 वेदों का प्रतीक माना जाता है। इनके पीछे से परिक्रमा करनी चाहिए।


पंच केदार का रहस्य

पुराणों के अनुसार, महाभारत का युद्ध जब समाप्त हुआ तो भ्रातृ हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव के पास जा रहे थे। पाप से मुक्ति पाने के लिए वह भगवान शिव से आशीर्वाद पाना चाहते थे। लेकिन, भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। भगवान शिव की खोज में पांडव पहले काशी पहुंचे लेकिन, भगवान शिव वहां से अंतर्ध्यान हो गए। भगवान शिव को खोजते खोजते पांडव हिमालय आ पहुंचे लेकिन, भगवान शिव वहां से भी अंतर्ध्यान हो गए। लेकिन, पांडवों ने हार नहीं मानी और भगवान शिव को पाने की खोज जारी रखी। जब पांडव केदार पहुंचे तो भगवान शिव उनसे छिपने के लिए बैल का रूप धारण कर बाकी पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हुआ तो भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर लिया। भीम ने अपने दोनों पैर अलग-अलग पहाड़ों पर रख दिए। बाकी सारे बैल को उनके पैर से निकल गए पर बैल रूप में मौजूद भगवान शिव नहीं गए। इसके बाद भीम ने बैल पर जैसा ही झपट्टा मारा तो बैल का त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शिव पांडवों की भक्ति देखकर प्रसन्न हो गए। जब भगवान शंकर अंतर्ध्यान हो रहे थे तो धड़ का ऊपरी हिस्सा काठमांडू पहुंच गया जो आज पशुपति नाथ के नाम से मशहूर है। भगवान शिव की भुजाएं तुंगनाथ में मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में भगवान शंकर की जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई। इसलिए इन चार स्थानों को पंच केदार कहा जाता है।

ओम नम: शिवाय बोलने पर पानी में बुलबुले


केदारनाथ मंदिर के पास एक रेतस नाम का कुंड है। कुंड के पास ओम नम: शिवाय बोलने पर पानी में बुलबुले उठते हैं। साथ ही इस कुंड का पानी पीने से व्यक्ति को मोक्ष मिलता है।

जहां से केदारनाथ की जब यात्रा आरंभ करते हैं तो वहां गौरी कुंड स्थित है। गौरी कुंड का पानी हमेशा गर्म रहता है। यहां स्नान करने के बाद ही केदारनाथ की यात्रा आरंभ होती है। इस कुंड को लेकर मान्यता है कि इस कुंड के पास माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या की थी। उस समय देवी पार्वती के लिए ही यहां गरम पानी स्रोत प्रकट हुआ था। इसलिए यहां का नाम मां पार्वती के नाम पर गौरी कुंड पड़ा।


कब जाएँ केदारनाथ मंदिर


केदारनाथ मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय मई से जून और सितंबर से अक्टूबर के बीच होता है। इस दौरान मौसम सुहावना और यात्रा के लिए अनुकूल रहता है।

ऐसे पहुचें केदारनाथ ज्योतिर्लिंग




वर्तमान में पूरा उत्तर भारत समेत उत्तराखंड में भी जय प्रलय से सब कुछ ख़त्म कर दिया है. यहाँ लगातार बादल फटने और लैंड स्लाइड से सब कुछ फिर ख़त्म हो गया है. फिर भी हम आपको केदारनाथ कैसे पहुंचे इन बातों की जानकारी दे रहे हैं.

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले हरिद्वार या ऋषिकेश पहुंचना होगा, जो सड़क, रेल या वायुमार्ग से जुड़े हैं। इसके बाद ऋषिकेश/हरिद्वार से बस या टैक्सी से गौरीकुंड तक यात्रा करें। गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर तक 16-18 किलोमीटर का पैदल ट्रेक है, जिसे आप टट्टू, पालकी या खच्चर की मदद से भी पूरा कर सकते हैं। हेलीकॉप्टर सेवाएँ भी उपलब्ध हैं, जो फाटा, गुप्तकाशी या सीतापुर से सीधे केदारनाथ तक जाती हैं।

हवाई मार्ग से :

निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा, देहरादून है।

देहरादून से आप गुप्तकाशी, फाटा या सीतापुर के लिए टैक्सी या बस ले सकते हैं।

इन स्थानों से आप हेलीकॉप्टर की सेवा लेकर सीधे केदारनाथ पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग से :

निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश (221 किमी) और हरिद्वार (241 किमी) हैं।

इन स्टेशनों से आप गौरीकुंड तक बस या टैक्सी ले सकते हैं।

सड़क मार्ग से :

आप हरिद्वार, ऋषिकेश या देहरादून से गौरीकुंड तक के लिए बस या टैक्सी ले सकते हैं।

सोनप्रयाग तक भी मोटर योग्य सड़क है, और फिर सोनप्रयाग से गौरीकुंड तक की छोटी यात्रा के लिए साझा टैक्सी उपलब्ध हैं।


याद रखने योग्य बातें :


  • केदारनाथ यात्रा से पहले पंजीकरण अनिवार्य है।
  • यात्रा शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकती है, इसलिए शारीरिक रूप से तैयार रहें।
  • अपनी यात्रा से पहले होटल और अन्य सुविधाओं की बुकिंग पहले से करवा लें।

6 सितंबर से फिर से शुरू हुआ


उत्तराखंड में खराब मौसम और लगातार भारी बारिश के कारण 1 से 5 सितंबर 2025 तक स्थगित की गई चारधाम यात्रा का पंजीकरण और संचालन 6 सितंबर से फिर से शुरू हो गया है. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक मौसम में सुधार और बारिश की तीव्रता कम होने के बाद उत्तराखंड सरकार ने यह निर्णय लिया है. यात्रा मार्गों पर सुरक्षा सुनिश्चित होने के बाद यह कदम उठाया गया है. लेकिन फिर भी यात्रियों की सुरक्षा के लिए सभी सावधानियों का ध्यान रखा जाएगा.

चारधाम यात्रा की स्थिति

बता दें कि चारधाम यात्रा जिसमें यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के पवित्र मंदिर शामिल हैं, हर साल लाखों श्रद्धालू यहां पहुंचते हैं. लेकिन बीते काफी दिनों से भारी बारिश, भूस्खलन और बाढ़ के कारण यात्रा मार्गों पर बाधाएं आई थीं, जिसके चलते 1 सितंबर से यात्रा को अस्थायी रूप से रोक दिया गया था. अब IMD के मुताबिक पिछले 24 घंटों में बारिश की मात्रा में कमी आई है, और केवल पिथौरागढ़ और चमोली में सामान्य से अधिक वर्षा दर्ज की गई. अन्य जिलों जैसे रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी और टिहरी गढ़वाल में बारिश की कमी देखी गई, जिससे यात्रा फिर से शुरू करने का निर्णय लिया गया.

पंजीकरण और यात्रा की व्यवस्था

उत्तराखंड सरकार ने चारधाम यात्रा के लिए पंजीकरण को अनिवार्य किया है, जोकि 2014 के केदारनाथ बाढ़ के बाद लागू किया गया था. श्रद्धालु ऑनलाइन व्हाट्सएप या हरिद्वार और ऋषिकेश जैसे पंजीकरण काउंटरों के माध्यम से पंजीकरण कर सकते हैं. पंजीकरण के बाद प्राप्त क्यूआर कोड यात्री परमिट के रूप में कार्य करता है, जो चारों धामों में प्रवेश के लिए जरूरी है. सरकार ने जीपीएस-आधारित निगरानी प्रणाली लागू की है, जो यात्रियों की सुरक्षा और भीड़ प्रबंधन सुनिश्चित करती है.

यात्रियों के लिए सावधानियां

हालांकि मौसम में सुधार हुआ है, लेकिन 256 से अधिक सड़कें भूस्खलन के कारण अभी भी अवरुद्ध हैं. यात्रियों को सलाह दी गई है कि वे मौसम अपडेट और सड़क की स्थिति की जांच करें. उत्तरकाशी में रात 9 बजे से सुबह 5 बजे तक वाहनों की आवाजाही पर प्रतिबंध है, सिवाय आपातकालीन सेवाओं के. हेलीकॉप्टर सेवाएं भी सहस्त्रधारा सहित सभी हेलीपैड से सुचारू रूप से शुरू हो गई हैं.

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