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Kamar Chhath Puja 2024 : छत्तीसगढ़ में कल माताएं संतान के लिए रखेंगी "कमरछठ".... व्रत के हैं कुछ खास कड़े नियम... यहाँ जानें मुहूर्त, पूजा-विधि और नियम

Kamar Chhath Puja 2024 : कमरछठ की पूजा-अर्चना में बिना हल जोते उगने वाले पसहर चावल और छह प्रकार की भाजियों का भोग लगाने का खासा महत्व है. मान्यता के अनुसार इस व्रत में इस दिन भैंस का दूध, दही, घी, पसहर चावल आदि का सेवन किया जाता है.

By Meenu

Kamar Chhath Puja 2024 : छत्तीसगढ़ में कल यानि की 24 अगस्त को माताएं संतान की दीर्घायु और कुशलता की कामना के लिए महिलाएं कमरछठ या हलषष्ठी (Hal Shashthi) का व्रत रखेंगी. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से संतान को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है. भादो के कृष्ण पक्ष की छठी तिथि पर हलषष्ठी पर्व मनाया जाता है. इस पर्व को गांव-गांव में कमरछठ के नाम से जाना जाता है. हलषष्ठी के दिन संतान की प्राप्ति और सुख-समृद्धि के लिए महिलाएं व्रत रखती हैं. नवविवाहित स्त्रियां भी संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं.

पूजा-अर्चना में बिना हल जोते उगने वाले पसहर चावल और छह प्रकार की भाजियों का भोग लगाने का खासा महत्व है. बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है, इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है. उनके नाम पर इस पावन पर्व का नाम हलषष्ठी पड़ा है. मान्यता के अनुसार इस व्रत में इस दिन भैंस का दूध, दही, घी, पसहर चावल आदि का सेवन किया जाता है. इस दिन गाय के दूध व दही, घी का सेवन नहीं किया जाता है. साथ ही, पूजा करने के बाद माताओं के द्वारा बच्चों को तिलक लगा कर, कंधे के पास चंदन की पोतनी लगा कर आशीर्वाद देती हैं


हलषष्ठी के दिन पूजा करने की विधि



हलषष्ठी व्रत में महुआ की दातुन और महुआ खाने का विधान है. हलषष्ठी के दिन माताएं सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लेती हैं. महिलाएं घर में या सामूहिक स्थान पर एक जगह एकत्रित होती हैं. वहां पर आंगन में दो गड्ढा खोदा जाता है, जिसे सगरी कहा जाता है. महिलाएं अपने-अपने घरों से मिटटी के खिलौने, बैल, शिवलिंग, गौरी- गणेश इत्यादि बनाकर लाते हैं, जिन्हें उस सगरी के किनारे पूजा के लिए रखा जाता है. उस सगरी में बेल पत्र, भैंस का दूध, दही, घी, फूल, कांसी के फूल, श्रृंगार का सामान, लाई और महुए का फूल चढ़ाया जाता है. महिलाएं एक साथ बैठकर हलषष्ठी माई के व्रत की कथाएं सुनती हैं. उसके बाद शिव जी की आरती व हलषष्ठी देवी की आरती के साथ पूजन समाप्त होता है. इस क्रम में बिना जुते हुए अनाज या खाद्य पदार्थ अर्पित करती हैं.

पूजा में चना, जौ, गेहूं, धान, अरहर, मक्का तथा मूंग चढ़ाने के बाद, भुने हुए चने तथा जौ की बाली चढ़ाई जाती है. मान्यता के अनुसार इस व्रत में इस दिन भैंस का दूध, दही, घी, पसहर चावल आदि का सेवन किया जाता है. इस दिन गाय के दूध व दही, घी का सेवन नहीं किया जाता है. साथ ही, पूजा करने के बाद माताओं के द्वारा बच्चों को तिलक लगा कर, कंधे के पास चंदन की पोतनी लगा कर आशीर्वाद देती हैं.


माता देवकी ने बलराम के लिए रखी थी ये व्रत

मान्यता है कि माता देवकी के छह पुत्रों को जब कंस ने मार दिया तब पुत्र की रक्षा की कामना के लिए माता देवकी ने भादो कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को षष्ठी देवी की आराधना करते हुए व्रत रखा था. जिसके फलस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था. इसी मान्यता के चलते महिलाएं अपने पुत्र की खुशहाली के लिए छठ का व्रत रखती हैं.

भैंस का दूध और बिना जूते पैदा हुवे अन्न को किया जाता है ग्रहण




हलषष्ठी गाय के दूध व दही का सेवन नहीं किया जाता. हलषष्ठी व्रत में विशेष रूप से भैंस के दूध और उससे बनी चीजों का ही इस्तेमाल किया जाता है. माता की पूजा-अर्चना में पसहर चावल और छह प्रकार की भाजियों का जो बिना जुते हुवे हो का भोग लगाया जाता है. पसहर चावल को खेतों में उगाया नहीं जाता. यह चावल बिना हल जोते अपने आप खेतों की मेड़, तालाब, पोखर या अन्य जगहों पर उगता है. भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ के जन्मोत्सव वाले दिन हलषष्ठी मनाए जाने के कारण बलदाऊ के शस्त्र हल को महत्व देने के लिए बिना हल चलाए उगने वाले पसहर चावल का पूजा में इस्तेमाल किया जाता है. पूजा के दौरान महिलाएं पसहर चावल को पकाकर भोग लगाती हैं, साथ ही इसी चावल का सेवन कर व्रत तोड़ती हैं.

पूजा के बाद महिलाएं मारती है पोती

हलषष्ठी पूजा के बाद माताएं नए कपड़े का टुकड़ा सगरी के जल में डुबाकर घर ले जाती हैं और अपने बच्चों के कमर पर/पीठ पर छ: बार स्‍पर्श कराती हैं, इसे पोती मारना कहते हैं. मान्यता है कि पोती मारने से बच्चों को दीर्घायु प्राप्त होती है और उनका वर्चस्व बढ़ता है. पूजा के बाद बचे हुए लाई, महुए और नारियल को महिलाएं प्रसाद के रूप में एक दूसरे को बांटती हैं और अपने-अपने घर लेकर जाती हैं.

सूर्यास्त से पहले कर लेना चाहिए फलाहार

हलषष्ठी के दिन घर पहुंचकर, महिलाएं फलाहार की तैयारी करती हैं. फलाहार के लिए पसहर का चावल भगोने में बनाया जाता है, इस दिन कलछी का उपयोग खाना बनाने के लिए नहीं किया जाता, खम्हार की लकड़ी को चम्मच के रूप में प्रयोग में लाया जाता है. छह प्रकार की भाजियों को काला मिर्च और पानी में पकाया जाता है, भैंस के घी का प्रयोग छौंकने के लिए किया जा सकता है पर आम तौर पर नहीं किया जाता. इस भोजन को पहले छह प्रकार के जानवरों के लिए जैसे कुत्ते, पक्षी, बिल्ली, गाय, भैंस और चींटियों के लिए दही के साथ पत्तों में परोसा जाता है. फिर व्रत करने वाली महिला फलाहार करती हैं. नियम के अनुसार सूर्यास्त से पहले फलाहार कर लेना चाहिए.

हलषष्ठी व्रत कब करें

स्थानीय पंचांग रायपुर छत्तीसगढ़ के सूर्योदय सूर्यास्त के समयानुसार 25 अगस्त रविवार को षष्ठी तिथि सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो जायेगा। इसलिए शनिवार के दिन ही सम्पूर्ण षष्ठी तिथि में ही हलषष्ठी ( कमरछठ ) व्रत रखा जाना सर्वश्रेष्ठ है।

ज्योतिष & वास्तु सलाहकार पंडित मनोज शुक्ला महामाया मंदिर रायपुर


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