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Dev Deepawali 2025 Kab Hai: इस बार कब है देव दीपावली? जानिए क्यों मनाया जाता है यह त्यौहार; क्या है इसके पीछे की पौराणिक मान्यता और महत्व

Dev Deepawali 2025: महादेव की नगरी काशी (बनारस) में हर साल बड़े धूम-धाम के साथ मनाया जाने वाला पर्व देव दीपावली जल्द ही आने वाला है। इस पर्व का बहुत ही खास महत्व माना गया है क्योंकि इस पर्व को भगवान शिव से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि, देव दीपावली क्यों मनाया जाता है और उसके पीछे की पौराणिक मान्यता क्या है। तो चलिए आज हम इन्ही सब सवालों के जवाब जानने वाले है।

Dev Deepawali 2025 Kab Hai: इस बार कब है देव दीपावली? जानिए क्यों मनाया जाता है यह त्यौहार; क्या है इसके पीछे की पौराणिक मान्यता और महत्व
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Dev Deepawali 2025

By Ashish Kumar Goswami

Dev Deepawali 2025: महादेव की नगरी काशी (बनारस) में हर साल बड़े धूम-धाम के साथ मनाया जाने वाला पर्व देव दीपावली जल्द ही आने वाला है। इस पर्व का बहुत ही खास महत्व माना गया है क्योंकि इस पर्व को भगवान शिव से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि, देव दीपावली क्यों मनाया जाता है और उसके पीछे की पौराणिक मान्यता क्या है। तो चलिए आज हम इन्ही सब सवालों के जवाब जानने वाले है।

बता दें कि, दिवाली के ठीक 15 दिन बाद आने वाला एक खास पर्व है देव दीपावली, जिसे देवताओं की दीपावली कहा जाता है। इस साल यह पर्व बुधवार, 5 नवंबर 2025 को मनाया जाएगा। मान्यता है कि, इस दिन देवता स्वर्ग से उतरकर गंगा किनारे स्नान के लिए आते है। खास बात यह है कि, वाराणसी में इस दिन का नजारा देखने लायक होता है, जब गंगा घाटों पर लाखों दीये जलते हैं और ऐसा लगता है जैसे स्वर्ग धरती पर उतर आया हो।

जानें कब है देव दीपावली ?

इस साल देव दीपावली की तिथि 4 नवंबर की रात 10:36 बजे शुरू होगी और 5 नवंबर की शाम 6:48 बजे तक रहेगी। इस दिन दीप जलाने का सबसे शुभ समय प्रदोष काल होता है, जो शाम 5:15 से 7:50 तक रहेगा। इसी समय वाराणसी के घाटों पर लाखों दीये जलाए जाते हैं और पूरा माहौल रोशनी से भर जाता है।

क्या है इसके पीछे की मान्यता

देव दीपावली को भगवान शिव की दीपावली भी कहा जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसमें त्रिपुरासुर नाम का एक राक्षस तीनों लोकों पर कब्जा कर लेता है। तब सभी देवता भगवान शिव से मदद मांगते हैं और शिव जी कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर का वध करते हैं। इस जीत की खुशी में देवता काशी में दीप जलाकर उत्सव मनाते हैं, तभी से इस दिन को देव दीपावली कहा जाता है और भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाता है।

इस दिन सुबह जल्दी उठकर गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है। अगर नदी पर जाना संभव न हो, तो घर पर गंगाजल मिलाकर स्नान किया जा सकता है। शाम को मिट्टी के दीपक में घी या तिल का तेल डालकर दीप जलाना चाहिए। ऐसा करने से घर में सुख-शांति आती है और पापों से मुक्ति मिलती है। मान्यता है कि, इस दिन देवी-देवता धरती पर आते हैं, इसलिए उनके स्वागत में दीप जलाए जाते हैं।

वाराणसी में देव दीपावली का नजारा बहुत ही खास होता है। गंगा घाटों पर लाखों दीयों की रोशनी से पूरा इलाका जगमगाने लगता है। मंदिरों, गलियों और घरों में भी दीयों की सजावट होती है। इस दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम, गंगा आरती, दीपोत्सव और कलाकारों की प्रस्तुति होती है। देश-विदेश से लोग इस नजारे को देखने आते हैं और पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है।

त्रिपुरासुर वध की कथा

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, एक बार त्रिपुरासुर नाम का एक बहुत ही ताकतवर राक्षस हुआ करता था। उसने अपनी शक्ति से देवताओं को हरा दिया और स्वर्ग समेत तीनों लोकों पर कब्जा कर लिया। उसके अत्याचारों से सभी देवता बहुत परेशान हो गए और मदद के लिए भगवान शिव के पास पहुंचे।

देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर का वध किया और तीनों लोकों को उसके आतंक से मुक्त कराया। इस जीत की खुशी में सभी देवता भगवान शिव की नगरी काशी में आए और वहां लाखों दीये जलाकर उत्सव मनाया। तभी से इस दिन को देव दीपावली कहा जाने लगा। क्योंकि यह पर्व भगवान शिव की विजय से जुड़ा है, इसलिए इसे भगवान शिव की दीपावली भी कहा जाता है और उन्हें त्रिपुरारी नाम से जाना जाता है।

अगर आप वाराणसी नहीं जा सकते, तो घर पर भी इस पर्व को श्रद्धा से मना सकते हैं। सुबह स्नान करें, भगवान शिव की पूजा करें और शाम को प्रदोष काल में दीप जलाएं। घर के आंगन, मंदिर और बालकनी में दीयों की सजावट करें। चाहें तो गंगा आरती का लाइव प्रसारण भी देख सकते हैं और घर पर ही इस पर्व का आनंद ले सकते हैं।

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