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Jyotirling Darshan 1 : जिनके नाम से काल भी घबराता है वह है उज्जैन के बाबा "महाकाल"... यहाँ आम आदमी को रुकने की इजाजत पर राजा को नहीं, रहस्यों से भरे है हमारे महाकालेश्वर

Jyotirling Darshan 1: आज से एनपीजी न्यूज़ आपको भारत के सभी 12 ज्योतिर्लिंगों से रूबरू कराने जा रहा है. हम यहाँ उनकी प्राचीन कथा से लेकर उनकी उत्पत्ति और वो सब कुछ बताएँगे जो उन्हें सबसे खास बनाती है. इसी कड़ी में हम आपको आज उज्जैन के महाकालेश्वर बाबा से रूबरू कराएँगे.

Jyotirling Darshan 1 :  जिनके नाम से काल भी घबराता है वह है उज्जैन के बाबा महाकाल... यहाँ आम आदमी को रुकने की इजाजत पर राजा को नहीं, रहस्यों से भरे है हमारे महाकालेश्वर
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By Meenu Tiwari

Jyotirling Darshan 1 : महाकाल... जिसके उच्चारण मात्रा से काल का भय भाग जाता है. सोचो उनकी महिमा और शक्ति कितनी होगी. काल यानी समय और काल यानी मृत्यु। दोनों ही जिसके आगे नतमस्तक हो जाती हैं, उसे उज्जैन के महाकाल के नाम से जाना जाता है। आज से एनपीजी न्यूज़ आपको भारत के सभी 12 ज्योतिर्लिंगों से रूबरू कराने जा रहा है. हम यहाँ उनकी प्राचीन कथा से लेकर उनकी उत्पत्ति और वो सब कुछ बताएँगे जो उन्हें सबसे खास बनाती है. इसी कड़ी में हम आपको आज उज्जैन के महाकालेश्वर बाबा से रूबरू कराएँगे.

उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर से जुड़े कई रहस्य हैं, जिनमें यह स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है, जो एक राक्षस को भस्म करने के बाद भगवान शिव ने स्वयं स्थापित किया था. महाकाल मंदिर भारत का एक केंद्रीय खगोलीय केंद्र है, जहाँ से समय की गणना होती है और यहाँ दक्षिणमुखी शिवलिंग की पूजा की जाती है. इसके आलावा यह भी एक मान्यता है कि इस मंदिर में रात में कोई भी राजा या मंत्री नहीं ठहर सकता, क्योंकि भगवान महाकाल ही उज्जैन के राजा हैं.

यह पूरे विश्व में एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जो दक्षिण दिशा की ओर मुख किए हुए है। माना जाता है कि दक्षिण दिशा मृत्यु के देवता यमराज की दिशा है। भगवान महाकाल मृत्यु से परे होने के कारण ही इस दिशा में विराजमान हैं। उज्जैन के महाकालेश्वर शिवलिंग को स्वयंभू माना जाता है, जिसका अर्थ है कि यह स्वयं प्रकट हुआ है। मान्यता है कि भगवान शिव ने एक राक्षस दूषण को भस्म कर उसी की राख से अपना श्रृंगार किया था। समय के अंत तक इसी स्थान पर रहने के कारण वह 'महाकाल' कहलाए।




यहां से गुजरती है मानक समय की रेखा

यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यानी इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना किसी इंसान ने नहीं की। यहां एक ज्योति के रूप में भगवान महाकाल स्वयं स्थापित हुए हैं। उज्‍जैन को पृथ्वी की नाभि कहा जाता है। प्राचीनकाल में उज्जैन विज्ञान और गणित की रिसर्च केंद्र हुआ करता था। वजह है कि दुनियाभर में मानक समय की गणना करने वाली कर्क रेखा इसी जगह से होकर गुजरती है। यह रेखा पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में भूमध्य रेखा के समानांतर 23.5 डिग्री उत्तर में स्थित काल्पनिक रेखा है। यहां 21 जून की दोपहर 12 बजे सूर्य सिर के ठीक ऊपर ऐसे होता है कि परछाई भी साथ छोड़ देती है। उस समय पर जिसका अधिकार है, वह स्वयं महाकाल हैं।

पुराणों में वर्णन

स्कंदपुराण के अवंती खंड में भगवान महाकाल का भव्य विवरण दिया गाय है। पुराणों में भी महाकाल मंदिर का उल्लेख किया गया है। इतना ही नहीं, कालिदास ने मेघदूतम के पहले भाग में महाकाल मंदिर का उल्लेख किया है। शिवपुराण के अनुसार, नंद से आठ पीढ़ी पहले एक गोप बालक ने महाकाल की प्राण-प्रतिष्ठा की थी। इस मंदिर का इतिहास कई शताब्दियों में फैला हुआ है। इसके निर्माण और पुनर्निर्माण में कई राजवंशों का योगदान रहा है। विभिन्न राजाओं ने समय-समय पर मंदिर का जीर्णोद्धार और विस्तार किया। वर्तमान मंदिर का स्वरूप मराठा शासकों द्वारा दिए गए योगदान का परिणाम है।


रहस्य भरे महाकाल की कथा


उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर से जुड़ी प्रमुख कहानी यह है कि प्राचीन समय में महाराजा चंद्रसेन नाम के राजा उज्जैन में राज्य करते थे. राजा चंद्रसेन भगवान शिव के परम भक्त थे तथा उनकी प्रजा भी भगवान शिव की पूजा किया करती थी. एक बार पड़ोसी राज्य से राजा रिपुदमन ने चंद्रसेन के महल पर आक्रमण कर दिया. इस दौरान दूषण नाम के राक्षस ने भी प्रजा पर अत्याचार करना शुरू कर दिया.

राक्षस के अत्याचारों से पीड़ित होकर प्रजा ने भगवान शिव का आह्वान किया, तब उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव धरती फाड़कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए और राक्षस का वध किया. कहते हैं प्रजा की भक्ति और उनके अनुरोध को देखते हुए भगवान शिव हमेशा के लिए ज्योतिर्लिंग के रूप में उज्जैन में विराजमान हो गए.



कोई राजा यहां नहीं बिताता रात

कहा जाता है कि उज्जैन पृथ्वी के नाभि केंद्र पर स्थित है। महाकालेश्वर मंदिर इसी नाभि पर विराजमान है। इस वजह से भी यह सबसे शक्तिशाली मंदिर है। भगवान महाकाल ही उज्जैन के वास्तविक राजा हैं। इसलिए किसी राजा या उच्च पदस्थ व्यक्ति को रात में मंदिर के आस-पास नहीं रुकने की परंपरा रही है।

कहा जाता है कि महाकाल मंदिर के पास जो भी राजा रुकता है, उसका अनिष्ट हो जाता है। दरअसल, देश के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई जब मंदिर के दर्शन करने के बाद रात में यहां रुके थे, तो अगले दिन उनकी सरकार गिर गई थी।

इसी तरह से कर्नाटक के मुख्यमंत्री वीएस येदियुरप्पा भी उज्जैन में रुके थे। इसके बाद कुछ ही दिनों के अंदर उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। लंबे समय तक कांग्रेस और फिर भाजपा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया आज तक यहां नहीं रुके हैं।


महाकालेश्वर उज्जैन मंदिर की भस्म आरती

महाकालेश्वर मंदिर में की जाने वाली भस्म आरती एक अनूठी और प्रसिद्ध रस्म है, जिसे देखने के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं। यह आरती सुबह लगभग 4:00 बजे होती है और इसका धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है। भस्म आरती का विशेष महत्व है, क्योंकि यह भगवान शिव के वैराग्य और श्मशान वासी स्वरूप को दर्शाती है।




इनके बने कंडे की भस्म

शिव को शमी वृक्ष, पीपल, पलास और कपिला गाय के गोबर से बने कंडे की भस्म लगाई जाती है. यहां महाकाल की शाही सवारी और नागचंद्रेश्वर मंदिर भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. भगवान शिव की आरती के समय ऐसा प्रतीत होता है जैसे भगवान शिव हमारे आस-पास हों. सभी दर्शनार्थियों को ₹250 का शुल्क देकर ही गर्भगृह या नंदी हॉल से दर्शन करने की अनुमति है. दर्शन के दौरान फोटोग्राफी वर्जित है, और मंदिर में मोबाइल फोन ले जाने पर भी प्रतिबंध है.


मंदिर पूजा का समय

भस्म आरती, सुबह 4:00 बजे, सुबह 6:00 बजे होती है और पूजा का समय सुबह 7:00 बजे और सुबह 10:00 बजे है।

दोपहर की भोग आरती, सुबह 10:30 बजे और सुबह 11:30 बजे की है। शाम की आरती, शाम 6:00 बजे और शाम 7:00 बजे है। फिर रात 10ः30 बजे आरती होती है।

महाकालेश्वर उज्जैन मंदिर में प्रसाद

मंदिर में विभिन्न प्रकार के प्रसाद दिए जाते हैं, जिनमें शामिल हैंः

सूखे मेवे और मिठाइयां: दैनिक अनुष्ठानों में चढ़ने वाले सूखे मेवे और मिठाइयां प्रसाद के रूप में बांटी जाती हैं।

महाप्रसाद: पूजा के बाद कुछ भक्तों को महाप्रसाद भी वितरित किया जाता है, जिसमें अक्सर मिठाई और फल भी शामिल हैं।

यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय

महाकालेश्वर मंदिर में जाने का सही समय अक्टूबर से मार्च तक का समय है। सर्दियों के महीनों के दौरान है, जब यहां का मौसम सुहावना होता है।

पहुँचने के लिए कैसे करें




हवाई जहाज से

निकटतम हवाई अड्डा देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा इंदौर (53 किमी) है। दिल्ली, मुंबई, पुणे, जयपुर, हैदराबाद और भोपाल से नियमित उड़ानें हैं।

ट्रेन से

उज्जैन पश्चिमी रेलवे ज़ोन का एक रेलवे स्टेशन है। इसका कोड UJN है। यहाँ से कई बड़े शहरों के लिए ट्रेनें उपलब्ध हैं।

सड़क द्वारा

नियमित बस सेवाएं उज्जैन को इंदौर, भोपाल, रतलाम, ग्वालियर, मांडू, धार, कोटा और ओंकारेश्वर आदि से जोड़ती हैं। अच्छी मोटर योग्य सड़कें उज्जैन को रायपुर (782 किमी), अहमदाबाद (402 किमी), भोपाल (183 किमी), बॉम्बे (655 किमी), दिल्ली (774 किमी), ग्वालियर (451 किमी), इंदौर (53 किमी) और खजुराहो (570 किमी) आदि से जोड़ती हैं।

महाकालेश्वर उज्जैन मंदिर में क्या पहनें

यहां पारंपरिक कपड़े पहनने की सलाह दी जाती है। पुरुष आमतौर पर धोती या कुर्ता या पजामा पहनते हैं। महिलाएं साड़ी, सलवार या कमीज पहनती हैं। यही नहीं, अगर आप भस्म आरती में शामिल हो रहे हैं, तो भक्तों को सफेद कपड़े पहनने होते हैं।

आस-पास क्या देखें

काल भैरव मंदिर: काल भैरव मंदिर एक प्रमुख हिन्दू मंदिर है जो भगवान काल भैरव को समर्पित है। यहां आपको दर्शन के लिए जाना चाहिए।

रामघाट: शिप्रा नदी पर यह एक पवित्र स्नान घाट है।

हरसिद्धि मंदिर: यह देवी हरसिद्धि को समर्पित, एक शक्तिपीठ है।

वेध शाला: यह एक प्राचीन वेधशाला है। यहां पर भी आपको एक बार जाना चाहिए।

महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन का सही समय क्या है ?

महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन का समय इस प्रकार है : भस्म आरती, सुबह 4:00 बजे, सुबह 6:00 बजे होती है और पूजा का समय सुबह 7:00 बजे और सुबह 10: 00 बजे है।दोपहर की भोग आरती, सुबह 10:30 बजे और सुबह 11:30 बजे की है। शाम की आरती, शाम 6:00 बजे और शाम 7:00 बजे है। फिर रात 10ः30 बजे आरती होती है।

महाकालेश्वर मंदिर में प्रमुख त्योहार

यहां का सबसे खास त्योहार महाशिवरात्रि मनाया जाता है, जो कि भगवान शिव का सबसे प्रमुख त्योहार है। इसके अलावा सावन के महीने में विशेष पूजा और अनुष्ठान होते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों को भी यहां विशेष रूप से मनाया जाता है।



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