Jitiya Vrat 2025 : जितिया व्रत में चील और सियारिन की कथा सुनना अनिवार्य, जानिए ऐसा क्या है इस कथा में
Jitiya Vrat 2025 : इस व्रत में चील और सियारिन की कथा सुनना अनिवार्य माना गया है, जो श्रद्धा, संयम और निष्ठा के महत्व को दर्शाती है.

Jitiya Vrat katha, Jitiya Vrat 2025 : हिन्दू धर्म में विवाहित महिला अपने बेटे की लम्बी आयु और सुख समृद्धि के लिए जितिया व्रत रखती है. इस व्रत में चील और सियारिन की कथा सुनना अनिवार्य माना गया है, जो श्रद्धा, संयम और निष्ठा के महत्व को दर्शाती है. इस व्रत के नियम अत्यंत कठिन होते हैं—महिलाएं पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं और संध्या समय जीमूतवाहन देव की पूजा करती हैं. परंपरा के अनुसार, इस व्रत में चील और सियारिन की कथा सुनना आवश्यक माना जाता है.
चील और सियारिन का संकल्प
कथा के अनुसार एक बार चील (गरुड़ पक्षी) और सियारिन (लोमड़ी) दोनों ने जितिया व्रत रखने का निश्चय किया. व्रत के दिन दोनों ने उपवास शुरू किया. चील ने पूरे नियम और संयम का पालन किया और बिना अन्न-जल ग्रहण किए संध्या तक व्रत निभाया. वहीं, सियारिन व्रत की कठिनाई सहन न कर सकी और बीच में ही मांस खा लिया.
व्रत समाप्त होने के बाद धर्मराज प्रकट हुए और उन्होंने दोनों के आचरण के आधार पर फल सुनाया. उन्होंने कहा कि नियमपूर्वक व्रत करने वाली चील को ही इसका पुण्य मिलेगा, जबकि सियारिन को कोई फल प्राप्त नहीं होगा. परिणामस्वरूप, चील की संतान दीर्घायु और सुखी जीवन प्राप्त करती है, जबकि सियारिन की संतान अल्पायु और कष्टमय जीवन जीती है.
कथा से मिलने वाली सीख
यह कथा इस बात का प्रतीक है कि व्रत केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि श्रद्धा, संयम और नियमों के साथ करना चाहिए. महिलाओं को यह संदेश मिलता है कि जैसे चील ने कठिन परिस्थितियों में भी व्रत नहीं तोड़ा, वैसे ही व्रती माताएं धैर्य और आस्था के साथ उपवास करें. तभी यह व्रत फलदायी माना जाता है और संतान को लंबी उम्र व सुख-समृद्धि प्राप्त होती है.
कथा सुनने की परंपरा
इसी कारण जितिया व्रत में चील और सियारिन की कथा सुनना अनिवार्य माना गया है. यह परंपरा महिलाओं को धर्म, संयम और निष्ठा का महत्व समझाती है और उन्हें व्रत के वास्तविक उद्देश्य से जोड़ती है.
जितिया व्रत कब है
इस वर्ष अष्टमी तिथि का आरंभ 14 सितंबर को प्रातः 05:04 बजे होगा और इसका समापन 15 सितंबर को सुबह 03:06 बजे होगा. शास्त्रों में उदयातिथि को विशेष महत्व दिया गया है. इसलिए माताएं 14 सितंबर को सूर्योदय से पहले जल और भोजन ग्रहण कर तैयार होती हैं और फिर सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक निर्जला व्रत करती हैं.
जितिया व्रत की एक और कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जीमूतवाहन नामक एक राजा थे जो बहुत ही दयालु और परोपकारी थे. उन्होंने अपना राजपाट त्याग कर वन में तपस्या करने का निर्णय लिया. एक बार भ्रमण करते हुए उन्होंने देखा कि नागवंश की एक वृद्ध महिला विलाप कर रही है. पूछने पर उसने बताया कि वह अपने एकमात्र पुत्र को गरुड़ को बलि देने जा रही है, क्योंकि गरुड़ को यह वरदान मिला था कि वह प्रतिदिन एक नाग का भक्षण कर सकता है.
जीमूतवाहन ने उस मां के दुख को देख कर स्वयं को उसके पुत्र के स्थान पर प्रस्तुत किया. जब गरुड़ उन्हें खाने के लिए आया, तो जीमूतवाहन ने उसे अपने बलिदान का कारण बताया. जीमूतवाहन के साहस और परोपकार से गरुड़ प्रसन्न हुए और उन्होंने नागों को न खाने का वरदान दिया. इस तरह, जीमूतवाहन ने एक मां के पुत्र की रक्षा की. तभी से माएं अपनी संतान की रक्षा के लिए जीमूतवाहन की पूजा करती हैं.
