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Holi 2025: होली 14 या 15? होली का महत्व, होली क्यों मनाई जाती है? साथ ही जानें क्या है होली की रोचक कहानियाँ

Holi 2025: होली त्यौहार को लेकर खासा उत्साह देखा जाता है. होलिका दहन और होली का पर्व हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व रखता है. यह रंगों और उल्लास का पर्व होता है, जिसे पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है.

Holi 2025: होली कब है? होली का महत्व, होली क्यों मनाई जाती है? साथ ही जानें क्या है होली की रोचक कहानियाँ
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By Anjali Vaishnav

Holi 2025: होली त्यौहार को लेकर खासा उत्साह देखा जाता है. होलिका दहन और होली का पर्व हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व रखता है. यह रंगों और उल्लास का पर्व होता है, जिसे पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है. इस पर्व के दौरान लोग एक-दूसरे को रंग और गुलाल लगाते हैं, मिठाई बांटते हैं और एक दूसरे के साथ खुशी और सद्भावना साझा करते हैं.

हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि के प्रदोष काल में होलिका दहन मनाया जाता है. उसके बाद अगले दिन चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन होली मनाते हैं. इस साल 2025 में होलिका दहन की तिथि और शुभ मुहूर्त को लेकर कुछ खास बातें हैं जिन्हें समझना जरूरी है. इस लेख में हम आपको 2025 में होली, होलिका दहन की तिथि, समय और शुभ मुहूर्त के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे.

होली कब है? (Holi Kab Hai)

होली कब है (Holi Kab Hai) इसे लेकर सभी में संशय की स्थिति बनी हुई है. आइये हम आपके बताते है होली कब है, होली 2025 का त्योहार 14 मार्च को मनाया जाएगा. हालांकि, इस बार कई लोगों को तारीख को लेकर भ्रम हो सकता है, क्योंकि फाल्गुन पूर्णिमा 13 मार्च सुबह 10:35 बजे से शुरू होकर 14 मार्च दोपहर 12:23 बजे तक समाप्त होगी. लेकिन, होली का पर्व उदयातिथि के आधार पर 14 मार्च को मनाया जाएगा, क्योंकि उस दिन पूर्णिमा तिथि का प्रभाव रहेगा. इसलिए, इस साल होली 14 मार्च को रंगों से खेली जाएगी.

होली का महत्व (Holi ka Mahatva)

होली का महत्व(Holi ka Mahatva) हिन्दुओं के लिए बहुत अधिक है. होली का त्योहार जो हिंदू कैलेंडर के फाल्गुन महीने में पड़ता है. यह त्योहार फाल्गुन पूर्णिमा की शाम से शुरू होकर दो दिन तक मनाया जाता है. होली का उत्सव बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, जिसमें लोग अग्नि जलाकर होलिका की पूजा करते हैं और भक्त प्रहलाद की भक्ति की विजय का जश्न मनाते हैं. इस दिन लोग एक-दूसरे से सौहार्द्र व्यक्त करते हैं और रंगों से होली खेलते हैं. होलिका दहन और धुलेंडी के दौरान अबीर-गुलाल उड़ाने की परंपरा है, जो खुशी और समृद्धि का प्रतीक है. होली न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में एक प्रमुख और खुशी का त्योहार बन चुका है.


होली क्यों मनाई जाती है

होली एक ऐसा पर्व है जिसे भारत में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में धूमधाम से मनाया जाता है. इस त्योहार की मुख्य विशेषता रंगों की उन्मुक्तता, खुशी और भाईचारे का प्रतीक है. लेकिन क्या आप जानते हैं होली क्यों मनाते है (Holi Kyu Manate Hai) होली के पीछे कुछ पौराणिक कथाएँ भी हैं जो इस त्योहार को और भी खास बनाती हैं? आइए, जानते हैं होली के पीछे छिपी पौराणिक कथाओं के बारे में जो बुराई पर अच्छाई की जीत और प्रेम की महानता को दर्शाती हैं.

1. हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कहानी – बुराई पर अच्छाई की जीत

होली के पीछे की सबसे प्रसिद्ध और प्रचलित पौराणिक कथा असुर राजा हिरण्यकश्यप और उसके भक्त पुत्र प्रह्लाद की है. हिरण्यकश्यप एक अत्यंत अहंकारी और क्रूर राजा था, जो स्वयं को भगवान मानने लगा था. उसने अपनी प्रजा को आदेश दिया कि वे उसकी पूजा करें और भगवान विष्णु का नाम तक न लें. लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उसने अपने पिता की आज्ञा का पालन करने से इनकार कर दिया.

इस बात से क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से वह हर बार बच जाता. अंततः हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को मारने का आदेश दिया. होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि आग में बैठने पर उसे कोई नुकसान नहीं होगा.

होलिका ने प्रह्लाद को अपनी गोदी में लेकर आग में बैठने का प्रयास किया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद तो बच गए, जबकि होलिका जलकर राख हो गई. इस घटना की याद में हर साल होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है.

2. भगवान कृष्ण और राधा की होली – प्रेम और आनंद का त्योहार

होली से जुड़ी एक और महत्वपूर्ण कथा भगवान श्री कृष्ण और राधा से संबंधित है. कथा के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण अपने बचपन में गोपियों और राधा के साथ रंगों से होली खेलते थे. यह खेल इतना आनंददायक था कि यह सदियों से चला आ रहा है. कृष्ण के रंगों से खेलने का यह खेल अब तक वृंदावन और बरसाना में विशेष रूप से मनाया जाता है.

कृष्ण और राधा के रंग खेल के दौरान, प्रेम और भक्ति का भाव स्पष्ट रूप से प्रकट होता है. इस दिन लोग एक-दूसरे को गुलाल और रंग लगाकर अपनी खुशी व्यक्त करते हैं, और इसे प्रेम का प्रतीक माना जाता है. साथ ही, यह रंगों से खुशी और सामूहिकता की भावना को प्रकट करने का दिन होता है.

इसके अलावा, एक और मान्यता के अनुसार जब श्री कृष्ण ने अपने समय के अत्याचारी राक्षसों का संहार किया और गोकुलवासियों को बचाया, तब से होली का पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई. सूरदास और नंददास जैसे भक्त कवियों ने कृष्ण और राधा की होली खेलने की अद्भुत व्याख्या की है, जो आज भी पूरे देश में गाई जाती है.

3. कामदेव की तपस्या और होली

शिवपुराण के अनुसार, एक और पौराणिक कथा है जो होली के मनाने की वजह बताती है. इस कथा के अनुसार, पार्वती माता ने शिव से विवाह करने के लिए कठिन तपस्या की थी. तपस्या से परेशान होकर देवता इंद्र ने कामदेव को शिव की तपस्या भंग करने के लिए भेजा. कामदेव ने अपने पुष्प बाण से भगवान शिव पर प्रहार किया, जिससे शिव की समाधि भंग हो गई.

कामदेव के इस कृत्य से क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपनी तीसरी आँख खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया. इसके बाद, भगवान शिव ने पार्वती से विवाह किया. इस घटना की याद में फाल्गुन पूर्णिमा को होली के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई.

होलिका दहन 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त

होलिका दहन, होली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. इस दिन लोग होलिका की पूजा करते हैं और अग्नि में अपनी बुराईयों को जलाने की कोशिश करते हैं. 2025 में होलिका दहन 13 मार्च को रात के समय होगा. ज्योतिषीय गणना के अनुसार, होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 13 मार्च को रात 11:26 बजे से लेकर रात 12:30 बजे तक रहेगा. यह समय विशेष रूप से फलदायक माना जाता है, और इस दौरान ही होलिका दहन किया जाएगा.इसक बाद 14 मार्च को होली मनायी जायगी.

चैत्र माह की शुरुआत और होली

चैत्र माह की शुरुआत भी होली के बाद होती है. 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट से चैत्र माह की प्रतिपदा तिथि शुरू होगी. यह दिन हिंदू पंचांग के अनुसार नए साल की शुरुआत का प्रतीक होता है. हालांकि, चैत्र माह की शुरुआत उदया तिथि से मानी जाती है, जो 15 मार्च को होगी. 14 मार्च को होली मनाने के बाद 15 मार्च से चैत्र माह की शुरुआत होगी.

होलिका दहन की पूजा विधि

होलिका दहन की पूजा विधि को लेकर कुछ खास नियम हैं. सबसे पहले, होलिका दहन के स्थान पर एक पूजा स्थल तैयार करें. इसके बाद, होलिका की लकड़ी और अन्य सामग्री का ढांचा तैयार करें. इस सामग्री के बीच में एक दीपक रखें और उसे जलाएं. पूजा करते समय, "ओम होलिकायै नमः" का जाप करें और अपने सभी दुखों, परेशानियों और बुराईयों को अग्नि में समर्पित करें। पूजा के बाद, होलिका की राख को घर लाकर आंगन में छिड़कें, जिससे घर में सुख और समृद्धि आए.

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