Hartalika Teej 2025 tomorrow : अत्यंत शुभ चतुर्योग पर करें शिव-पार्वती का पूजन, जाने इस तीज क्या खास
Hartalika Teej : ज्योतिषाचार्य डॉ.दत्तात्रेय होस्केरे के अनुसार तीज के दिन साध्य योग सौम्य योग रवि योग और गज केसरी योग जैसा चतुर्योग पड़ रहा है |

Hartalika Teej 2025 : हरतालिका तीज का अर्थ है हर याने हरण या अपहरण और तालिका का अर्थ है सहेलियां| अर्थात इस दिन पार्वती जी का उनकी सहेलियों के द्वारा अपहरण हुआ था और उन सहेलियों ने उन्हें शिव को वर के रूप में प्राप्त करने की प्रेरणा दी थी|
ज्योतिषाचार्य डॉ.दत्तात्रेय होस्केरे के अनुसार तीज के दिन साध्य योग सौम्य योग रवि योग और गज केसरी योग जैसा चतुर्योग पड़ रहा है |भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिकी तीज का पर्व माने जाता है| इस वर्ष मंगलवार 26 तारिख को तृतीया तिथि दोपहर 1.54 बजे तक है तत्पश्चात चतुर्थी तिथि है अत:तृतीया तिथि चतुर्थी युक्त होने से इसी दिन हरितालिका तीज का पर्व मनाया जाएगा| वैसे भी तिथि तत्व में लिखा है की जिस दिन तृतीया तिथि 16 घटी से अधिक हो उसी दिन तृतीया को चतुर्थी युक्त ग्रहण करें| तृतीया तिथि को द्वितीया युक्त ग्रहण करना शुभ नहीं माना जाया|इस वर्ष तीज के दिन चंद्रपर्धान हस्त नक्षत्र है |
शास्त्रों मे वर्णन है की चन्द्र , पति पत्नी के संबंधों मे सेतु का कार्य करता है| साथ ही शुक्ल योग, अमृत योग और रवि योग जैसे त्रियोग पर यह तीज पड़ रही है| जो की अत्यंत लाभप्रद है| भद्रा दोपहर 2.49 बजे तक है | और पाताल लोक की है अत: इसका कोई प्रभाव नहीं है|
तीजा पर फुलहरा बांधकर पार्वती जी के इसी स्वरूप की पूजा की जाती है। तीजा के व्रत में बहुत नियम-कायदे होते हैं। छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना पड़ता है। सुबह चार बजे उठकर बिना बोले नहाना और फिर दिन भर निर्जला व्रत रखना कठिन होता है। हरतालिका तीज पर रात भर भजन होते हैं जागरण होता है।
भारतीय महिलाओं ने इस पुरानी परंपराओं को कायम रखा है। यह शिव-पार्वती की आराधना का सौभाग्य व्रत है, जो केवल महिलाओं के लिए है। निर्जला एकादशी की तरह हरितालिका तीज का व्रत भी निराहार और निर्जल रहकर किया जाता है। महिलाएं व कन्याएं भगवान शिव को गंगाजल, दही, दूध, शहद आदि से स्नान कराकर उन्हें फल समर्पित करती है। रात्रि के समय अपने घरों में सुंदर वस्त्रों, फूल पत्रों से सजाकर फुलहरा बनाकर भगवान शिव और पार्वती का विधि-विधान से पूजन अर्चन किया जाता है।
तीज में महिलाएं जब अपने पीहर आती हैं, तब घर में भी रौनक होती है। सहेलियां पीहर में मिलती हैं और तीज की पूजा एक साथ मिलकर करती हैं। तीज पर्व में पीहर आने वाली महिलाओं को भाई की तरफ से तोहफा दिया जाता है साथ ही साथ उनके बच्चों को भी तोहफा दिया जाता है। इस दौरान वर्षों का सुख दुख मायके में महिलाएं बांटती है। मान्यता के अनुसार विवाहित पुत्री को सौंदर्य सामग्री देने की परंपरा है।
पौराणिक कथा
हरितालिका तीज की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार शंकर-पार्वती कैलाश पर्वत पर बैठे थे। तब पार्वती ने शंकर जी से पूछा कि सभी व्रतों में श्रेष्ठ व्रत कौन-सा है और मैं आपको पत्नी के रूप में कैसे मिली। तब शंकर जी ने कहा कि जिस प्रकार नक्षत्रों में चंद्रमा, ग्रहों में सूर्य, चार वर्णों में ब्राह्मण, देवताओं में विष्णु, नदियों में गंगा श्रेष्ठ है। उसी प्रकार व्रतों में हरितालिका व्रत श्रेष्ठ है। पार्वती ने पूर्व जन्म में हिमालय पर्वत पर हरितालिका व्रत किया था।
यह व्रत भाद्रपद महीने की तीज को किया जाता है। पार्वतीजी ने एक बार सखियों द्वारा हरित यानी अपर्हत होकर एक कन्दरा में इस व्रत का पालन किया था, इसलिए कालांतर में इसका नाम हरितालिका प्रसिद्ध हुआ। पार्वतीजी ने 64 वर्षों तक बेलपत्री खाकर तपस्या की थी। देवी पार्वती ने यह व्रत घोर जंगल में बेलपत्री और फूलों का मंडप बनाकर किया था, इसलिए तीज की रात्रि में बेलपत्री और फूलों का फुलेहरा बांधा जाता है।
पूजन विधि
हरितालिका व्रत के संबंध में ऐसी आस्था है कि भगवान शिव को पतिस्वरूप में प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम पार्वती जी ने यह व्रत किया था। उसी समय से यह व्रत स्त्रियों द्वारा सुख, अक्षय सौभाग्य की लालसा के लिए आरंभ कर दिया गया। भाद्रपद तृतीया को निर्जला व्रत रहकर स्त्रियां शाम को तिल के पत्ते से सिर भीजकर नए-नए वस्त्रों और आभूषणों को धारण करती है। घर की लिपाई-पुताई करके केले के खंभे गाड़कर तोरण पताकाओं से मंडप बनाया जाता है। चौकी पर शंकर-पार्वती को स्थापित कर विशेष रूप से शंकर-पार्वती के पार्थिव पूजन की परंपरा है।
इसके साथ गणेश की स्थापना कर चंदन,अक्षत,धूप-दीप, फल-फूल आदि से षोडशोपचार पूजन किया जाता है। मेवा मिष्ठान, पकवान आदि का प्रसाद तथा गौरी जी पर सिंदूर, चूड़ी, बिन्दी, चुनरी, महावर, पायल, बिछुआ आदि सुहाग की सारी सामग्री चढ़ाई जाती है। रात्रि में भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार में आरती की जाती है। शिव-पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है। इसके बाद वस्त्र, स्वर्ण और गौ का दान किया जाता है। स्त्रियां सुहाग की चढ़ाई गई सामग्री ब्राह्मण को दान देकर कुछ अपने पास सौभाग्य की रक्षा हेतु रख लेती है। स्त्रियां शिव से प्रार्थना करती है कि मेरे पति दीर्घायु हों, मेरा सुहाग अटल हो। कुंवारी कन्याएं शिव से विनम्र प्रार्थना करती हुई वर मांगती है कि उनका होने वाला पति सुंदर और सुयोग्य हो। इस प्रकार चतुर्थी को स्नान पूजा कर सूर्योदय के बाद वे पारण कर व्रत तोड़ती है। पावस की हरियाली और प्रकृति के मनोहारी सौन्दर्य में कजली गाई जाती है। अत: इसे कजली तीज भी कहा जाता है।
