Guru Purnima 2023: जानिये देश के लोकप्रिय गुरूओं को, गुरू पूर्णिमा पर जिनके दर्शन करने भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ा...
Guru Purnima 2023 : गुरू और गोविंद में कौन बड़ा है...कबीर के इस दोहे से समझा जा सकता है कि गुरू का स्थान क्या है। कबीर दास जी का दोहा है...गुरू गोविंद दोउ खड़े, काके लागे पांय, बलिहारी गुरू आपकी गोविंद दियो बताए। इस दोहे का अर्थ है...गुरु और गोविंद दोनों सामने खड़े हैं...तो किन्हें सबसे पहले प्रणाम करना चाहिए...गुरू या गोविंद को? ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना चाहिए। क्योंकि गुरू ने ही गोविंद से हमारा परिचय कराया...उन तक पहुंचने का रास्ता बताया। लिहाजा, गुरू का स्थान गोविंद से उंचा है।
बहरहाल, लोकप्रिय गुरू वह होता है जो खुद के द्वारा अर्जित ज्ञान को अपने शिष्यों की समझ के अनुरूप ऐसे व्यक्त करे कि औसत बुद्धि के इंसान की भी आँखें खुल जाएं, उसे जीवन को आगे बढ़ाने की सही दिशा मिल जाए। आम आदमी को जब ऐसे गुरु के दर्शन हो जाते हैं, उनके जीवन के राह आसान हो जाते हैं। मंत्रमुग्ध होकर उन्हें सुनता है और संतुष्ट होकर घर लौटता है। गुरू पूर्णिमा के अवसर पर हम आज के दौर के ऐसे ही कुछ लोकप्रिय गुरुओं की चर्चा करने जा रहे हैं जिनके फॉलोअर्स की संख्या हैरान करती है। आपको बताते हैं, देश के बड़े लोकप्रिय गुरूओं के बारे में...
बाबा गुरुपद संभव राम
नरसिंहगढ़ रियासत महाराजा हिज हाइनेस भानूप्रकाश सिंह जी के यहां एक राजकुमार का जन्म हुआ। नाम रखा गया श्री यशोवर्धन सिंह। दिल्ली विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक की शिक्षा ग्रहण की। राजमहल में उनकी ऐशो आराम की जिंदगी थी। 1982 में उस राजकुमार का पदार्पण अघोरेश्वर महाप्रभु के कुटिया कुम्भ में प्रयागराज के पावन तट संगम पर पदार्पण होता है फिर वह राजकुमार दुबारा अपने महल में नही लौटे। समाज की सेवा के ि लिए उन्होंने राजमहल की सुख-सुविधा त्याग दिया। पूज्यपाद अघोरेश्वर महाप्रभु भगवान राम ने प्रमुख शिष्य के रुप में नामकरण किया औघड़ संत पूज्यपाद गुरुपद संभव राम।
बाबा गुरुपद संभव राम अपने शिष्यों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। कुष्ठ रोगियों की सेवा कार्य के साथ ही वे मानवता और पर्यावरण के लिए भी सतत कार्य कर रहे हैं। उनका कहना है कि सिर्फ गुरू को सुन भर लेने से जीवन परिष्कृत नहीं होता। अगर कुछ सुना है तो उसका मनन करो, उसका असर तुम्हारे कृत्यों में, बंधु-बान्धवों के साथ तुम्हारे व्यवहार में दिखे। बच्चों को अच्छे संस्कार दो। प्रेम का माहौल बनाओ। ध्यान- योग, व्यवस्थित जीवन और खान-पान को अपनाओ, तब जीवन में बदलाव आएगा। संयम ही सुखी जीवन की कुंजी है। फिर चाहे वह खान-पान, व्यवहार में हो या फिर धन के उपयोग में। बाबा गुरुपद संभव राम के सरल विचार लोगों को लुभाते हैं, यही कारण है कि उनके दर्शनों के लिए गुरू पूर्णिमा के दिन अघोर आश्रम में भक्तों का मेला लगता है।
बाबा गुरुपद संभव राम का जन्म 15 मार्च, 1959 को इंदौर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। उन्होंने अपनी मां और श्री सर्वेश्वरी समूह की संस्थापक सदस्यों में से एक लखराजी देवी को भी दीक्षा दी थी। गुरुपाद संभव राम तीन संस्थानों बाबा भगवान राम ट्रस्ट, श्री सर्वेश्वरी समूह, कुष्ठ आश्रम और अघोर परिषद ट्रस्ट की अध्यक्षता और मार्गदर्शन करते हैं।
सद्गुरु
सद्गुरु चुंबकीय व्यक्तित्व के धनी हैं। ज्ञान का भंडार खुद के भीतर समेटे सद्गुरु जब अपने अनुयायियों और श्रोताओं से रूबरू होते हैं तो उन्हें सुनते- सुनते वक्त कब निकल जाता है, पता ही नहीं चलता। वे बड़ी - बड़ी बातों और जीवन में उतारने लायक कठिन विचारों को भी इतने हल्के- फुल्के अंदाज़ में बोलते हैं कि लगता है कि जैसे सबकुछ समझ आ गया। अपने अज्ञानी होने का अहसास खत्म हो जाता है। मन हल्का और संतुष्ट हो जाता है और उनके बताए मार्ग पर चलना कठिन नहीं लगता। जो लोग योग, साधना, ध्यान आदि से न भी जुड़े हों, वे भी एक बार सुनकर अगली बार फिर सुनने का मोह रोक नहीं पाते।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सद्गुरु के अंग्रेज़ी यूट्यूब चैनल के 1 करोड़ से ज्यादा सबस्क्राइबर हैं, वहीं हिन्दी में डब किए गए वीडियोज़ के भी 60 लाख से अधिक सबस्क्राइबर हैं। अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भी उनके लाखों फॉलोअर्स हैं। 115 देशों में उनके अनुयायी हैं।
थोड़ा सा उनकी निजी ज़िन्दगी को जानें तो उनके पिता डॉ वासुदेव और माता सुशीला वासुदेव हैं। सद्गुरु जग्गी वासुदेव का जन्म 3 सितंबर 1957 को कर्नाटक के मैसूर शहर में हुआ था। 11 वर्ष की उम्र में जग्गी वासुदेव ने योग का अभ्यास करना शुरु किया। लोगों का मन समझने के लिए वे पूरे देश में घूमा करते थे। उन्होंने 1992 में लाभरहित ईशा फाउंडेशन की नींव रखी। ईशा फाउंडेशन लोगों की मदद करने, सामाजिक काम करने के अलावा प्रकृति के संरक्षण के लिए भी काम करता है। सद्गुरु को पद्म विभूषण से नवाजा गया है।
श्री श्री रवि शंकर
श्री श्री रवि शंकर के विराट व्यक्तित्व के आगे दुनिया नतमस्तक है। वे आर्ट ऑफ लिविंग फाउण्डेशन के संस्थापक हैं और विश्व स्तर के एक आध्यात्मिक गुरु हैं। उनकी स्नेहसिक्त वाणी कानों में मिश्री घोलती है। उनका योग की सुदर्शन क्रिया पर गज़ब का अधिकार है और उसके माध्यम से वे शरीर को मन से जोड़ना सिखाते हैं। मानवता के प्रसार में रत श्री श्री रविशंकर इंसान को तनावरहित बनाना चाहते हैं। वे कोशिश करते हैं कि लोग प्रेम की भाषा बोलें और हिंसा से दूर रहें ताकि एक सुंदर दुनिया का निर्माण हो सके। यू ट्यूब पर उनके दो मुख्य चैनलों के 40 लाख से अधिक सबस्क्राइबर हैं। वहीं 155 देशों में करीब 37 करोड़ से भी अधिक फॉलोअर्स हैं।
रवि शंकर का जन्म 13 मई 1956 को हुआ। उनके पिता का नाम वेंकट रत्नम् और माँ विशालाक्षी हैं। मात्र चार साल की उम्र में वे श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों का पाठ कर लेते थे। भक्त उन्हें आदर से प्रायः “श्री श्री“ के नाम से पुकारते हैं। 1982 में श्री श्री रविशंकर ने आर्ट ऑफ लिविंग फाउण्डेशन की स्थापना की।
जया किशोरी
आज के वक्त में युवाओं के बीच में खासी लोकप्रिय हैं जया किशोरी। वे मोटिवेशनल स्पीकर हैं और आम आदमी की भाषा में बात करती हैं। उनकी कही हुई बातें हम भले ही पहले से भी सुन चुके हों लेकिन वे उन्हें इस तरह से प्रस्तुत करती हैं कि लगता है हमने इतनी सहज बात भी अब तक कैसे नहीं समझी। वे बहुत सारे सामाजिक मुद्दे उठाती हैं, इसलिए लोग उनसे जुड़ते चले जाते हैं। कृष्ण भक्ति में डूबी जया किशोरी सुंदर भजन भी प्रस्तुत करती हैं। सोशल मीडिया और खबरों में जया किशोरी छाई रहती हैं। उनका सरल व्यक्तित्व घर की लड़की जैसा लगता है और विचार शक्ति किसी अनुभवी बुजुर्ग जैसे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उनके यूट्यूब पर 20 लाख से अधिक फालोअर्स है।
जया किशोरी का जन्म 13 अप्रैल 1995 को राजस्थान के सुजानगढ़ में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनका असली नाम जया शर्मा है। उनके पिता का नाम शिव शंकर शर्मा और माता का नाम गीता देवी शर्मा है।परिवार में पूर्ण रूप से आध्यात्मिक माहौल था। जिसका असर उनके बालमन पर पड़ा।
6 साल की उम्र में ही वे कृष्ण जी के मधुर भजन गाती और उनकी विशेष पूजा करती थीं। 9 साल की उम्र में उन्होंने संस्कृत में लिंगाष्ठ्कम, शिव तांडव स्त्रोतम, रामाष्टकम् आदि कई स्त्रोतों को गाना शुरू कर दिया था। सम्पूर्ण सुंदरकांड की शानदार प्रस्तुति कर वे लाखों लोगों के दिल में बस गईं। आज देश-विदेश में उनके नाम के चर्चे हैं। वे अपनी आय का काफी हिस्सा नारायण सेवा संस्थान के माध्यम से दिव्यांग जनों के हित में खर्च करती हैं।
पंडित प्रदीप मिश्रा
पंडित प्रदीप मिश्रा आज के दौर में तेजी से लोकप्रिय हो रहे गुरु हैं। शिव भक्ति में जीवन का सार ढूंढने वाले पंडित प्रदीप मिश्रा की कथाओं को सुनने के लिए लाखों की संख्या में भक्त उमड़ते हैं। श्रद्धालुओं का पंडित प्रदीप मिश्रा द्वारा बांटे जाने वाले रुद्राक्ष में अटूट विश्वास है। प्रदीप मिश्रा रुद्राक्ष से जुड़े कुछ सरल उपायों( टोटकों) से बड़ी- बड़ी समस्याओं के सुलझने का दावा करते हैं। जिसके चलते देश के कोने-कोने से भक्त कुबेरेश्वर धाम पहुंचते हैं। कोरोना काल के दौरान अपने यू ट्यूब वीडियोज़ के माध्यम से पंडित प्रदीप मिश्रा ने लाखों लोगों के दिल में जगह बनाई। वर्तमान में उनके यूट्यूब पर 45 लाख से अधिक फॉलोअर्सहैं। उन्हें प्यार से ’सीहोर वाले बाबा’ कहकर पुकारा जाता है। पंडित प्रदीप मिश्रा का जन्म 1980 में मध्यप्रदेश के सीहोर में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित रामेश्वर दयाल मिश्रा है। पंडित प्रदीप मिश्रा ने शुरू में शिव मंदिर से कथा वाचन शुरू किया था। 50-60 श्रोताओं और भक्तों से शुरू हुआ कारंवा आज लाखों भक्तों तक पहुंच चुका है।
धीरेंद्र शास्त्री
पंडित धीरेंद्र शास्त्री “कथा-वचन“ के कारण प्रसिद्ध हुए। वे लोगों का मन पढ़ने का दावा करते हैं। बिना प्रश्न किए वे लोगों की पीड़ा का अनुमान लगा लेते हैं और कागज़ पर उसका हल लिखकर दे देते हैं। उन्हें बागेश्वर सरकार के उपनाम से जाना जाता है। वे अपने “दिव्य दरबार“ में माध्यम से लोगों की चिंताओं का निवारण करते हैं। अपने वीडियोज़ से वे घर- घर में लोकप्रिय हुए। यूट्यूब पर उनके 40 लाख से अधिक फालोअर्स हैं।
बागेश्वर धाम महाराज के तौर पर पहचाने जाने वाले पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जन्म 4 जुलाई 1996 को मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के ग्राम गड़ागंज में हुआ था। मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें ल् श्रेणी की सुरक्षा दी हुई है।
देवकीनंदन ठाकुर
देवकीनंदन ठाकुर पुराण कथावाचक और अध्यात्मिक गुरु हैं। कृष्ण लीला के किस्से सुनाते-सुनाते वे लोगों के दिलों में इस तरह समा गए कि लोग उनमें कृष्ण जी की झलक ही देखने लगे। इसी वजह से उन्हें प्यार से ठाकुर जी के नाम से पुकारा जाने लगा। लोग उनके सानिध्य में खुद को ईश्वर के करीब पाते हैं। यही वजह है कि देवकीनंदन ठाकुर के 40 लाख से ज्यादा फॉलोअर्स है।
12 सितम्बर 1978 को उत्तर प्रदेश के मथुरा के ओहावा गाँव में जन्मे देवकीनंदन ठाकुर ने 13 साल की उम्र में ही श्रीमद्भागवतपुराण कंठस्थ कर लिया था।इनके पिता का नाम राजवीर शर्मा तथा माता का नाम श्रीमति अनसुईया देवी है। इन्होंने वृंदावन में एक कृष्ण राधा का मंदिर बनवाया है। देवकीनंदन ठाकुर ने 2006 में विश्व शान्ति सेवा चैररिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की। 2015 में इन्हें यूपी रतन पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है।