Begin typing your search above and press return to search.

Jyotirlinga Drashan 12 (Grishneshwar Jyotirlinga 2025) : यह ज्योतिर्लिंग है पूर्वमुखी, भक्त के नाम पर पड़ा इनका नाम, यहां 108 नहीं बल्कि की जाती है 101 परिक्रमा

Grishneshwar Jyotirlinga : घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग भोलेनाथ की अपार भक्त रही घुष्मा की भक्ति का प्रतीक है. उसी के नाम पर ही इस शिवलिंग का नाम घुष्मेश्वर पड़ा था.

Jyotirlinga Drashan 12 (Grishneshwar Jyotirlinga 2025) : यह ज्योतिर्लिंग है पूर्वमुखी, भक्त के नाम पर पड़ा इनका नाम, यहां 108 नहीं बल्कि की जाती है 101 परिक्रमा
X
By Meenu Tiwari

Ghrishneshwar Jyotirling : 12 ज्योतिर्लिंग में सबसे आखिरी ज्योतिर्लिंग का नाम आता है वो हैं घृष्णेश्वर या घुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग है. पौराणिक कथा के अनुसार भक्त की असीम भक्ति के कारण घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग प्रगट हुए है. उसी के नाम पर ही इस शिवलिंग का नाम घुष्मेश्वर पड़ा था. कहते हैं कि यहा मौजूद सरोवर, जिसे शिवालय के नाम से जाना जाता है उसके दर्शन किए बिना ज्योतिर्लिंग की यात्रा संपन्न नहीं होती है. मान्यता है कि जो निःसंतान दम्पती को सूर्योदय से पूर्व इस शिवालय सरोवर के दर्शन बाद घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है उसकी संतान की प्राप्ति कामना जल्द पूरी होती है.

12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन की कड़ी में आज NPG NEWS आपको घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा और रहस्यों की जानकारी देने जा रहा है. तो चलिए फिर जानते है इनकी महिमा, और सब कुछ.

मान्यता है कि सूर्य के जरिए पूजे जाने के कारण घृष्णेश्वर दैहिक, दैविक, भौतिक तापों का धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का सुख प्रदान करते हैं. आदि शंकराचार्य ने कहा था कि कलियुग में इस ज्योतिर्लिंग के स्मरण मात्र से रोगों, दोष, दुख से मुक्ति मिल जाती है.




घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा

दक्षिण देश में देवगिरि पर्वत के पास सुधर्मा नाम का ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ निवास करता था. इनकी कोई संतान नहीं थी, जिसके कारण दोनों चिंतित रहते थे. ब्राह्मण की पत्नी ने अपने पति का विवाह सुदेहा ने छोटी बहन घुष्मा से करवा दिया. घुष्मा शिव जी की परम भक्त थी. भगवान शिव की कृपा से उसे एक स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन घुष्मा का हंसता खेलता परिवार देखकर सुदहा को अपनी बहन से ईर्ष्या होने लगी. क्रोध में आकर उसने घुष्मा की संतान की हत्या कर उसे कुंड में फेंक दिया.

घुष्मा को जब इस बात का पता लगा तो वह दुखी हुआ बिना शिव की पूजा में रोज की भांति तल्लीन रही. महादेव उसकी भक्ति से बेहद प्रसन्न हुए और शिव जी के वरदान से घुष्मा का पुत्र दोबारा जीवित हो उठा. घुष्मा की प्रार्थना पर भगवान शिव ने उसी स्थान पर रहना का वरदान दिया और कहा कि मैं तुम्हारे ही नाम से घुश्मेश्वर कहलाता हुआ सदा यहां निवास करूंगा. प्राचीन काल में यहां घुष्मा ने 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा की थी, जिससे शिव बेहद प्रसन्न हुए थे. यही वजह है कि यहां मनोकामना पूरी होने पर 108 नहीं बल्कि 101 परिक्रमा की जाती है.

ऐसे पड़ा घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का नाम




घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग भोलेनाथ की अपार भक्त रही घुष्मा की भक्ति का प्रतीक है. उसी के नाम पर ही इस शिवलिंग का नाम घुष्मेश्वर पड़ा था. कहते हैं कि यहा मौजूद सरोवर, जिसे शिवालय के नाम से जाना जाता है उसके दर्शन किए बिना ज्योतिर्लिंग की यात्रा संपन्न नहीं होती है. मान्यता है कि जो निःसंतान दम्पती को सूर्योदय से पूर्व इस शिवालय सरोवर के दर्शन बाद घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है उसकी संतान की प्राप्ति कामना जल्दू पूरी होती है.


घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग कहाँ स्थित है ?

यह भारत के महाराष्ट्र में दौलताबाद के पास एलोरा में स्थित है। इस स्थल को 13वीं-14वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत द्वारा नष्ट कर दिया गया था। इस मंदिर का पुनर्निर्माण मराठा शासक शिवाजी के दादा, वेरुल के मालोजू भिसाले ने 16वीं शताब्दी में करवाया था। वर्तमान संरचना का निर्माण मुगल साम्राज्य के पतन के बाद 18वीं शताब्दी में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा कराया गया था।

घृष्णेश्वर मंदिर की विशेष विशेषताएं



लाल पत्थरों से निर्मित यह मंदिर पाँच-स्तरीय शिखरों से बना है। आप लाल पत्थरों पर उकेरे गए भगवान विष्णु के दशावतारों को देख सकते हैं। यहाँ 24 स्तंभों पर निर्मित एक दरबार हॉल है जिस पर आपको भगवान शिव की विभिन्न कथाओं और पौराणिक कथाओं की नक्काशी देखने को मिलेगी। गर्भगृह में पूर्वमुखी लिंग स्थापित है। दरबार हॉल में आपको भगवान शिव के वाहन नंदी की एक मूर्ति भी देखने को मिलेगी।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में रोचक तथ्य

  • घृष्णेश्वर को घुश्मेश्वर और कुसुमेश्वर भी कहा जाता है।
  • पुरुषों को मंदिर में नंगे सीने जाना अनिवार्य है।
  • यह भारत का सबसे छोटा ज्योतिर्लिंग मंदिर है।
  • यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, एलोरा गुफाएं, एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर है।
  • सर्दियों के महीनों में - अक्टूबर से मार्च के बीच - यहाँ आना सबसे अच्छा रहेगा।


घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग में दर्शन का समय :




मंदिर सुबह 5:30 बजे से रात 9:30 बजे तक खुला रहता है।


घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे ?

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग तक पहुँचने के लिए आपको कई परिवहन विकल्प मिलते हैं।

1. हवाई मार्ग:

निकटतम हवाई अड्डा छत्रपति संभाजी नगर (औरंगाबाद) है, जो मंदिर से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है।

छत्रपति संभाजी नगर (औरंगाबाद) हवाई अड्डा, मुंबई, पुणे और दिल्ली जैसे बड़े शहरों से जुड़ा है।

हवाई अड्डे से मंदिर तक टैक्सी या कैब द्वारा आसानी से पहुंच सकते हैं।


2. रेल मार्ग:

छत्रपति संभाजी नगर (औरंगाबाद) रेलवे स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर से 30 किमी दूर है।

पुणे, मुंबई और नागपुर जैसे बड़े शहरों से छत्रपति संभाजी नगर (औरंगाबाद) के लिए नियमित ट्रेनें उपलब्ध हैं।

रेलवे स्टेशन से मंदिर तक टैक्सी या बस द्वारा पहुंच सकते हैं।


3. सड़क मार्ग:

घृष्णेश्वर मंदिर सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

मुंबई से दूरी: 330 किमी (राष्ट्रीय राजमार्ग 160 से)।

पुणे से दूरी: 230 किमी।

छत्रपति संभाजी नगर (औरंगाबाद) से दूरी: 30 किमी।

छत्रपति संभाजी नगर (औरंगाबाद) से आपको स्थानीय बस या टैक्सी मिल जाएगी।

Next Story