Ekdant Vs Dholkal Ganesh Chhattisgarh : क्या आप जानते हैं कैसे पड़ा गणपति जी का नाम "एकदंत" और छत्तीसगढ़ से क्या है कनेक्शन
Ekdant Vs Dholkal Ganesh Chhattisgarh : पौराणिक कथाओं में परशुराम और भगवान गणेश के बीच जिस युद्ध का वर्णन है वह छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के ढोलकल पहाडिय़ों पर हुआ था। परशुराम ने फरसे से गणेश जी पर प्रहार किया। इससे गणेश जी का एक दाँत टूट गया, जिससे वे एकदन्त कहलाये।
Ekdant Vs Dholkal Ganesh Chhattisgarh : गणेश जी का हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार 108 नाम है. लेकिन एक नाम एकदंत सबसे रोचक है. क्या आप जानते हैं की भगवान गणेश को एकदंत क्यों कहा जाता है. गणेश जी को गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन आदि के अलावा एकदंत नाम से भी जाने जाते हैं.
गणपति जी के एकदंत नाम का छत्तीसगढ़ से काफी बड़ा कनेक्शन है. माना जाता है की दंतेवाड़ा जिले में एक कैलाश गुफा है. कहा जाता है कि यह वहीं कैलाश क्षेत्र हैं जहां गणेश जी और परशुराम के बीच भीषण युद्ध हुआ था. इस युद्ध में गणपति का एक दांत टूटकर यहां गिरा था. परशुराम जी के फरसे से गजानन का दांत टूटा, इसलिए पहाड़ी के शिखर के नीचे के गांव का नाम फरसपाल रखा गया.
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले से करीब 13 किमी दूर बारसूर गांव में ढोलकल की पहाड़ियों पर लगभग 3000 फीट की ऊंचाई पर सैकड़ों साल पुरानी यह भव्य गणेश मूर्ति विराजमान है. यह पूरी दुनिया में दुर्लभ मूर्तियों में से मानी जाती है. इन्हें दंतेवाड़ा का रक्षक के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर में गणेश जी की प्रतिमा स्थापित है जो ढोलक के आकार की बताई जाती है. इसी आकार की वजह से गणेश जी को यहां ढोलकल गणेश के नाम से जाना जाता है. वहीं इस पूरी पहाड़ी को भी ढोलकल पहाड़ी कहा जाता है.
ऐसे बने गणेश जी एकदन्त
पौराणिक कथा के अनुसार इसके पीछे परशुराम जी और भगवान गणेश का युद्ध है. एक समय की बात है जब भगवान शिव से मिलने के लिए परशुराम जी पहुंचे. तब उन्होंने भगवान गणेश को द्वार पर बाहर खड़ा देख कहा कि, मुझे भगवान शिव से मिलना है मुझे अंदर जाने दें. गणेश जी ने परशुराम को अंदर नहीं जाने दिया. इस पर परशुराम जी को क्रोध आ गया. जिसके बाद उन्होंने गणेश जी से कहा की अगर मुझे अंदर नहीं जाने दिया तो मुझसे आपको युद्ध करना पड़ेगा. यदि में जीता तो आपको मुझे भगवान शिव से मिलने के लिए अंदर जाने देना होगा. भगवान गणेश ने युद्ध की चुनौती स्वीकार की. दोनों के बीच बड़ा भीषण युद्ध चला. युद्ध के दौरान परशुराम जी ने अपने फरसे से भगवान गणेश पर वार किया और परशुराम जी के फरसे से उनका एक दांत टूट कर वहीं गिर गया. उसके बाद से ही गणेश जी एकदंत कहलाए.
अन्य कथाएं
अन्य कथाओं के अनुसार गणेश का परशुराम नहीं भाई कार्तिकेय की वजह से गणेश जी का दांत टूटा था. दोनों भाईयों के विपरीत स्वभाव के चलते शिव-पार्वती काफी परेशान रहते थे, क्योंकि गणेश जी कार्तिकेय को बहुत परेशान करते थे. ऐसे ही एक झगड़े में कार्तिकेय ने भगवान गणेश को सबक सिखाने का निश्चय किया और उन्होंने गणपति की पिटाई कर दी जिससे उनका एक दांत टूट गया. इसके अलावा यह भी कथा प्रचलित है कि महाभारत लिखने के लिए महर्षि वेदव्यास ने गणेश जी के आगे शर्त रखी. शर्त यह थी कि वो बोलना नहीं बंद करेंगे, यानि वे लगातार बोलेंगे और गजानन को बिना रुके लिखेंगे ऐसे में गणेश जी ने अपना एक दांत खुद ही तोड़कर उसे कलम बना लिया.
इसलिए पड़ा ढोलकल नाम
स्थानीय भाषा में कल का मतलब पहाड़ होता है। इसलिए ढोलकल के दो मतलब निकाले जाते हैं। एक तो ये कि ढोलकल पहाड़ी की वह चोटी जहां गणपति प्रतिमा है वह बिलकुल बेलनाकार ढोल की की तरह खड़ी है और दूसरा, वहां ढोल बजाने से दूर तक उसकी आवाज सुनाई देती है।
करीब तीन फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी ग्रेनाइट पत्थर से बनी यह प्रतिमा बेहद कलात्मक है। गणपति की इस प्रतिमा में ऊपरी दाएं हाथ में फरसा और ऊपरी बाएं हाथ में टूटा हुआ एक दांत है जबकि आशीवाज़्द की मुद्रा में नीचले दाएं हाथ में वे माला धारण किए हुए हैं और बाएं हाथ में मोदक है।
कठिन है यहां तक पहुंचना
दंतेवाड़ा से 22 किमी दूर ढोलकल शिखर तक पहुंचने के लिए दंतेवाड़ा से करीब 18 किलोमीटर दूर फरसपाल जाना पड़ता है। यहां से कोतवाल पारा होकर जामपारा तक पहुंच मार्ग है। जामपारा में वाहन खड़ी कर तथा ग्रामीणों के सहयोग से शिखर तक पहुंचा जा सकता है। जामपारा पहाड़ के नीचे है। यहां से करीब तीन घंटे पैदल चलकर तक पहाड़ी पगडंडियों से होकर ऊपर पहुंचना पड़ता है। बारिश के दिनों में पहाड़ी नाला बाधक है।