Dipawali par kali pooja: दीपावली पर आधी रात को करेंगे यदि काली पूजा तो होगा सभी दुखों का अंत, शांत होंगे राहु और केतु
रायपुर। दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा तो सभी करते हैं पर क्या आपको पता है कि कार्तिक मास की अमावस्या को निशीथ काल में माँ काली की उपासना का अपना अलग ही महत्व है। काली माता को पापियों का संहार करने वाली माता के रूप में जाना जाता है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार काली माता का पूजन करने से भक्तों के जीवन में सभी प्रकार के दुखों का अंत होता है।यहाँ तक कि आपकी कुंडली में यदि राहु और केतु विराजमान हैं तो वे भी शांत हो जाते हैं।आइए जानते है क्यों दीपावली के दिन की जाती है काली पूजा? कैसी है इस पूजा की विधि और महत्व।
पौराणिक कथा
कथा के अनुसार जब राक्षसों का वध करने के बाद भी महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव के शरीर के स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया। इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई जबकि इसी रात इनके रौद्ररूप काली की पूजा का विधान भी है। कहते हैं काली पूजा करने से संकटों का तुरंत ही समाधान हो जाता है।
काली पूजा का महत्व क्या है?
दुष्टों और पापियों का संहार करने के लिए माता दुर्गा ने ही मां काली के रूप में अवतार लिया था। माना जाता है कि श्रद्धापूर्वक मां काली के पूजन से जीवन के सभी दुखों का चमत्कारिक रूप से अंत हो जाता है। शत्रुओं का नाश हो जाता है। कहा जाता है कि मां काली का पूजन करने से जन्मकुंडली में बैठे राहू और केतु भी शांत हो जाते हैं। माता काली की पूजा या भक्ति करने वालों को माता सभी तरह से निर्भीक और सुखी बना देती हैं। वे अपने भक्तों को तमाम परेशानियों से बचाती हैं। कई सारी हिंदू मान्यताओं के अनुसार इसी दिन काली माता लगभग 60 हजार योगिनियों के साथ प्रकट हुई थीं इसलिए दिवाली के दिन यह पूजा करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
यूं तो सनातन धर्म में आस्था रखने वालों का प्रबल विश्वास है कि पूजन का फल भगवान अवश्य ही देते हैं किंतु दीपावली की रात यानी निशीथ काल में (रात्रि 12 बजे से 3 बजे के बीच) की गई पूजा विशेष फल देती है। निशीथ काल में ही महाकाली की पूजा करनी चाहिए। इसलिए काली पूजा को महानिशा और श्यामा पूजा भी कहा जाता है।देवी दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों में से ही एक हैं काली माता।काली मां सिद्धि और पराशक्तियों की आराधना करने वाले साधकों की ईष्टदेवी मानी जाती हैं लेकिन केवल तांत्रिक साधना के लिए ही नहीं अपितु आम जन के लिए भी महाकाली की पूजा विशेष फलदायी बताई गई है।
पूजन विधि क्या है
सर्वप्रथम स्नान करके साफ वस्त्र पहनकर मां काली की प्रतिमा स्थापित करें, फिर तस्वीर के सामने दीपक जलाएं। लाल गुड़हल के फूल मां को अर्पित करें। माता काली की सामान्य पूजा में विशेष रूप से 108 गुड़हल के फूल, 108 बेलपत्र एवं माला, 108 मिट्टी के दीपक और 108 दुर्वा चढ़ाने की परंपरा है।इसके बाद 'ओम् ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै' मंत्र का 108 बार जाप करें, इस मंत्र के जाप से जीवन की समस्याएं दूर हो जाती हैं। काली पूजन में देवी मां को खिचड़ी, खीर, तली हुई सब्जी का भोग लगाएं। मान्यता है कि काली मां भोग से प्रसन्न होकर सभी इच्छाएं पूरी करती हैं।
कई लोग दिवाली की रात पर तंत्र साधना यानि जादू-टोना भी करते हैं। इसके अलावा भोग में काले तिल और काली उड़द भी चढ़ाते हैं।लेकिन सामान्य गृहस्थ के लिए सामान्य पूजा ही उचित बताई गई है। तंत्र साधना किसी गुरु के सानिध्य और निर्देश पर ही करने को कहा गया है।
काली पूजन का सही समय
सामान्यतः मां काली की पूजा प्रत्येक दिन होती है। लेकिन कार्तिक अमावस्या के दिन पूर्ण श्रद्धाभाव और मन से मां काली की पूजा अर्धरात्रि के समय करनी चाहिए।ऐसा करने से पूजा सफल होती है।मां काली की पूजन के समय लाल और काली वस्तु को धारण करना चाहिए। सही तरीके से पूजन करने से मां काली प्रसन्न होती है और अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करती है।सही समय और विधि-विधान से मां काली की पूजा की जाए तो जीवन से दुखों का नाश होता है।
यूं तो समूचे भारत में दीपावली के दिन
अर्धरात्रि में काली पूजा के महात्म्य को मानने वाले लोग हैं लेकिन उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में इस पूजा को विशेषकर बड़े विधि-विधान से किया जाता है। इस पूजा में महाकाली के भक्तों से ये उम्मीद रखी जाती है कि वे पूजा के बाद दुष्टों या अपने शत्रुओं को शांत करने की कामना करें न कि उनके जीवन के अंत की।