Dindeshwari Devi Temple Malhar: डिड़िनेश्वरी देवी मल्हार, जहां देवी प्रतिमा से निकलती है अनोखी ध्वनि, मां की है दुर्लभ प्रतिमा...
Dindeshwari Devi Temple Malhar: मल्हार में है मां की दुर्लभ प्रतिमा, जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 20 करोड़ से अधिक है। चोरों ने एक बार मां की प्रतिमा चोरी कर ली थी। मगर आश्चर्यजनक ढंग से पुलिस ने उसे बरामद कर लिया।
Dindeshwari Devi Temple Malhar: रायपुर। कई धर्म, संस्कृतियों की धरोहरों को समेटे हुए बिलासपुर जिले का छोटा सा कस्बा है मल्हार। अरपा, लीलागर और शिवनाथ नदी के बीच बसा मल्हार कलचुरियों का गढ़ रहा है। यहां मां डिडनेश्वरी देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। डिडनेश्वरी देवी की मूर्ति कलचुरि संवत 900 की है। शुद्ध काले ग्रेनाइड से बनी मां डिडनेश्वरी की प्रतिमा लोगों की आस्था का केंद्र है। डिडिनदाई शब्द का अर्थ छत्तीसगढ़ में कुमारी देवी होता है। कुंवारी रूप शैलसुता शिव को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या रत हुई। पद्मासन में विराजित तपोमुद्रा वाली देवी की भव्य गंभीर मुखाकृति है, जिनके नेत्र मूंदे हुए, सौम्य में मुद्रा भाव में लीन, सिंह छाल में विराजित हैं।
हर मन्नत होती है पूरी
मां डिडिनेश्वरी देवी सर्वथा, वरधा, सुखदा सिद्ध देवी हैं। ऐसी मान्यता है कि इस मूर्ति से एक खास तरह की ध्वनि निकलती है, जिसे लोग माता रानी का चमत्कार बताते । यही वजह है कि लोगों की इस मंदिर को लेकर खास श्रद्धा है, जो भी भक्त सच्चे मन से मन्नत लेकर यहां आता है उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। माता अपने दरबार से किसी को भी खाली हाथ नहीं जाने देती। यहां स्थानीय लोगों के अलावा पूरे छत्तीसगढ़ प्रदेश और देशभर से लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं। चेत्र और शारदीय नवरात्रि के दिनों में लोग माता डिडनेश्वरी के रंग में रंग जाते है। गांव में भक्ति का माहौल रहता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। मंदिर में भी विशेष पूजा-अर्चना व धार्मिक आयोजन होते हैं। 1985 से हर वर्ष यहां पर मल्हार महोत्सव का आयोजन भी किया जा रहा है। मंदिर की देखरेख के लिए छत्तीसगढ़ शासन द्वारा लोक न्यास ट्रस्ट मां डिडिनेश्वरी मंदिर स्थापित कर दिया है।
10 वीं सदी में बनी है मंदिर
देवी मंदिर 10 से 11 वीं सदी के मध्य कलचुरि शासकों ने बनवाया था। लेकिन प्राचीन मंदिर ध्वस्त हो चुका है और वर्तमान में जो मंदिर है, उसे 1954 में निषाद समाज ने जीर्णोद्धार करवाया। सन 2000 से मंदिर का नए सिरे से जीर्णोद्धार किया गया। इस साल भी कुछ दिनों पहले ही गर्भगृह में नए सिरे से निर्माण किया गया है। जीर्णोद्धार के बाद मंदिर के गर्भ गृह में विष्णु के 24 अवतारों में से एक वामन अवतार हैं। आसपास की दीवार में नृत्यरत पार्वती, कुबेर, सरस्वती,नटराज शिव, प्रेमी युगल अप्सराएं एवम् शिव जी की मूर्तियों में कलचुरी काल का वैभव झलकता है।
शिव से मिला मल्हार नाम
भगवान शिव के उपासक कलचुरि नरेश ने यहां मल्लाषरि, मल्लारी शिव का मंदिर बनवाया था। मल्लासुर दैत्य का संहार करने वाले शिव का एक नाम मल्लारी भी कहा गया है जिनके नाम पर नगर मल्हार कहलाया।
देवी का मंदिर कलचुरिकालीन कहा गया है कलचुरि राजवंश की आराध्या भी रही है देवी पार्वती। मान्यता है कि मल्हार को राजा वेणु ने बसाया था। देवी कृपा से राजा वेणु का यश लोकव्यापी हुआ। राजा की यशोगाथा देवलोक तक जा पहुंची और तब राजा वेणु के प्रताप से ही मल्हार में कंचन की बारिश हुई थी।
पुरातत्व धरोहरों का शहर मल्हार
मल्हार के आसपास पूरा क्षेत्र प्राकृतिक व पुरातत्व धरोहरों से भरपूर है। मल्हार के केवट मोहल्ले में जैन तीर्थकर सुपावनाथ के संग नौ तीर्थकर मूर्ति स्थापित है। गांव वाले उसे नंदमहल कहते हैं। मंदिर, पत्थर, मूर्तियों के अलावा यहां पर पुरातत्व संपदाएं बिखरीं पड़ी हुईं हैं। उपलब्ध ऐतिहासिक प्रमाणों के मुताबिक करीब चार सौ वर्ष ईसा पूर्व यहां मौर्य वंश का शासन था जिसके अवशेष महासमुंद जिले के तुरतुरिया, तथा बलौदाबाजार भाटापारा जिले के डमरु में पाए गए हैं। इसके बाद सातवाहनों का शासनकाल रहा, इसके समय का काष्ठ स्तंभ बिलासपुर के किरारी ग्राम से प्राप्त हुआ। तीसरी सदी में वाकाटक वंश, चौथी सदी में गुप्त वंश, पांचवी सदी में राजर्षि तुल्य वंश, इस काल में नल वंश का भी शासन रहा। इसके बाद शरभपुरीय वंश एवं पांण्डु वंश और कलचुरि वंश का शासन काल रहा। है। हैहयवंशी कलचुरि कहलाए, इनका शासनकाल सबसे लंबा लगभग 800 वर्ष तक चला।
जब चोरी हो गई थी मां डिडनेश्वरी प्रतिमा
साल 1991 के अप्रैल महीने के 19 तारीख की घटना है ये। मल्हार के डिड़िनेश्वरी मंदिर के गर्भगृह में पूजित स्थिति में स्थापित प्रतिमा डिड़िनेश्वरी देवी चोरी हो गई। देर रात चोरों ने दर्शन के बहाने मंदिर में सो रहे पुजारी और उसके दामाद से मंदिर खुलवा लिया। फिर पिस्तौल अड़ाकर उन्हें मंदिर के भीतर बंधक बना दिया और मूर्ति लेकर फरार हो गए। तब इस बेहद दुर्लभ मूर्ति की कीमत 14 करोड़ रुपए आंकी गई थी। अब कीमत बढ़कर 20 करोड़ से ऊपर पहुंच गई है। डिडनेश्वरी प्रतिमा की चोरी के बाद मल्हार में मातम का माहौल था। कई घरों में चूल्हे नहीं जल रहे थे। दुकानें, हाट-बाजार मूर्ति मिलने तक स्वस्फूर्त बंद रहे। इसी बीच मल्हार में अखंड जसगीत-कीर्तन शुरू हुआ, जो प्रतिमा के मिलने तक जारी रहा। गुस्साए लोग पुलिस के खिलाफ चक्काजाम कर रहे थे। चोर इस प्रतिमा को यूपी ले गए थे। जहां से बिलासपुर पुलिस ने सफलतापूर्वक चोरों को पकड़ा और 31 मई को ये मूर्ति वापस बिलासपुर पहुंची। बिलासपुर से मल्हार ये प्रतिमा एक विशाल जुलूस के रूप में पहुंची। रास्ते भर जगह-जगह पूजा, आरती हुई। फिर मंदिर के गर्भगृह में डिडनेश्वरी देवी की पुनःस्थापित की गई।
अलग–अलग रूपों में दर्शन
देवी की अलौकिक प्रतिमा को भक्ति भाव से ध्यानपूर्वक देखने पर सुबह में देवी बालिका के रूप में दर्शन देती हैं, दोपहर में युवती के रूप में मां दर्शन देती हैं। जबकि रात को महिला के रूप में मां के दर्शन होते हैं। निषाद समाज का मानना है कि उनके इष्टदेव महादेव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए माता ने यहां तपस्या की थी। निषाद समाज ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। यहां मान्यता है कि कुंवारी युवतियां इच्छित वर की प्राप्ति के लिए माता के दर्शन करती हैं और मन्नत मांगती हैं
कैसे पहुंचें मल्हार
देश के किसी भी शहर से सड़क, हवाई और रेल मार्ग से रायपुर पहुंचा जा सकता है। रायपुर से मल्हार की दूरी 160 किलोमीटर है। बिलासपुर जिला मुख्यालय से इसकी दूरी 40 किलोमीटर और ब्लॉक मुख्यालय मस्तूरी से 14 किलोमीटर है। हावड़ा-मुंबई रेल रूट पर रायपुर, बिलासपुर रेलवे स्टेशन पहुंचने के बाद आसानी से मल्हार पहुंचा जा सकता है।