Dahi Handi Kyu Manate Hai: कब शुरू हुई दही हांडी की परंपरा, जानिए इससे जुड़ी मान्यता और क्यों फोड़ते हैं जन्माष्टमी पर दही हांडी
Dahi Handi Kyu Manate Hai: दही हांडी फोड़ने का नियम जन्माष्टमी और जन्माष्टमी के अगले दिन होता है।ये स्थान विशेष पर निर्भर है. ये परंपरा श्री कृष्ण की बाल लीलाओं में एक है, जानते है कैसे,,,
Dahi Handi Kyu Manate Hai: 2023 में 6 -7 सितंबर को जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाएगा और इसके अगले दिन यानी 7 सिंतबर को दही हांडी का उत्सव मनाया जाएगा। दही हांडी उत्सव को भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का प्रतीक है। पौराणिक कथाओं में प्रचलित है कि कान्हा को दूध, दही और माखन बेहद पसंद है।जन्माष्टमी त्यौहार मुख्य त्यौहारों में से एक है।जन्माष्टमी के दिन दही हांडी का आयोजन होता है। यह भगवान श्री कृष्ण के बचपन के माखन चोरी के उस प्रसंग को दर्शाता है जब वे मक्खन और दही चुरा लेते थे। जानते हैं आखिर दही हांडी उत्सव क्यों होता है।
कब शुरू हुई? दही हांडी की परंपरा
धर्मानुसार, भगवान श्रीकृष्ण बालकाल से शरारती थे। उन्हें को बचपन शरारते पसंद थी। इसके कारण उनकी मां उनसे काफी परेशान रहती थी। श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ घर और पड़ोस के घरों से हांडी तोड़कर दूध, माखन और दही चुराकर खा जाते थे। इस वजह से आसपास की महिलाएं शिकायत लेकर आती थी।श्रीकृष्ण के दोस्तों से मक्खन और दही छिपाने के लिए महिलाएं मक्खन और दही से भरे बर्तन को ऊंचाई पर लटका देती थी, लेकिन इसके बाद भी श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ मिलकर मक्खन की हांडी तोड़कर खा जाते थे। इस कारण से ही दही हांडी फोड़ने की परंपरा शुरू हुई थी।
दही हांडी से जुड़ी मान्यता
द्वापर काल से परंपरा चली आ रही है. भगवान कृष्ण के जन्म के बाद उनके बाल लीलाओं के प्रतीक के तौर पर दही हांडी का उत्सव मनाया जाता है. भगवान कृष्ण की नटखट लीलाओं का प्रदर्शन ही दही हांडी के दिन किया जाता है. कान्हा जी को दही, दूध और मक्खन अति प्रिय थे. वह अपने दोस्तों के साथ पड़ोस से चोरी-चुपके माखन चुराकर खाते थे और अपने दोस्तों को भी खिलाते थे. इसलिए उन्हें माखन चोर भी कहा जाता है. कान्हा जी माखन चोरी की आदत से परेशान होकर गोपियों ने अपने दही व माखन के बर्तन ऊंचाई पर लटकाने शुरू कर दिए. गोपियों की यह कोशिश भी कृष्ण जी से माखन बचाने में असफल साबित हुई. क्योंकि कृष्ण जी ने अपने सखाओं के साथ मिलकर मानव पर्वत बनाकर माखन चुराने की योजना बनाई और उसमें सफल हुए. तभी से दही-हांडी उत्सव मनाने की परंपरा चली आ रही है. भगवान कृष्ण की कथाओं में उनके बाल रूप में किए गए यह नटखट कार्य बहुत ही प्रचलित हैं और लोक कथाओं का एक अभिन्न हिस्सा बन गए हैं. कान्हा जी की नटखट लीलाओं के बिना उनके कथाएं अधूरी सी लगती हैं
दही हांडी फोड़ने का नियम
कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन कई जगहों पर दही हांडी फोड़ने का नियम है तो कुछ जगहों पर जन्माष्टमी के दिन दही हांडी होता है। इस त्यौहार पर मिट्टी के बर्तन को दही या मक्खन से भरकर ऊंचाई पर लटका दिया जाता है। पुरुषों और महिलाओं का एक समूह, मिट्टी के मटकों को तोड़ने के लिए एक ह्यूमन पिरामिड बनाता है।
यह एक खेल के रूप में किया जाता है और लोग दो या उससे अधिक टीम में बंट जाते हैं। कुछ लोग समूह को घेर लेते हैं और प्रतियोगियों को खुश करने के लिए संगीत बजाते हैं। ऐसा माना जाता है दही हांडी उत्सव में जो पिरामिड बनाकर मटकी तोड़ता है, उस पर भगवान श्री कृष्ण द्वारा उसे विशेष कृपा प्राप्त होती है।