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Chhattisgarh Ka kashmir 'Chaiturgarh': भरी गर्मी में राहत चाहिए तो घूम आइए छत्तीसगढ़ का कश्मीर 'चैतुरगढ़', माँ महिषासुर मर्दिनी के भी होंगे दर्शन

Chhattisgarh Ka kashmir Chaiturgarh: भरी गर्मी में राहत चाहिए तो घूम आइए छत्तीसगढ़ का कश्मीर चैतुरगढ़, माँ महिषासुर मर्दिनी के भी होंगे दर्शन
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By Divya Singh

Chhattisgarh Ka kashmir 'Chaiturgarh': कोरबा जिले में मैकाल पर्वत श्रेणी की सबसे ऊंची चोटियों में से एक है चैतुरगढ़, जिसे 'छत्तीसगढ़ का कश्मीर' भी कहा जाता है। हरियाली का श्रृंगार किए, झरनों की झर-झर से लयबद्ध सुर में गुंजायमान, माँ महिषासुर मर्दिनी की कृपा से अभिसिंचित 'चैतुरगढ़' छत्तीसगढ़ आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। इतनी ऊंचाई पर होने के कारण गर्मी के दिनों में भी यहां का तापमान 30 डिग्री से ऊपर नहीं जाता। खासकर माता मंदिर तो विशेष रूप से ठंडा रहता है। यहाँ चैतुरगढ़ का ऐतिहासिक किला, माँ महिषासुर मर्दिनी मंदिर, शंकर खोल गुफा, चहुंओर पर्वत श्रेणी और जंगल का विहंगम दृश्य और मनमोहक झरनों समेत बहुत कुछ है, जिन्हें ठहरकर देखना मन को अच्छा लगता है। यानी एक परफेक्ट वीकेंड मनाने के लिए यह एक बेहद अच्छी जगह है। आइए, और जानते हैं चैतुरगढ़ के बारे में।

ऐसा है चैतुरगढ़ किला

चैतुरगढ़ कोरबा जिले का प्रमुख पर्यटन स्थल है। जो जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। समुद्र तल से करीब 3060 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है चैतुरगढ़ का किला। इतिहासकारों के मतानुसार इस किले का निर्माण कल्चुरी संवत 821 अर्थात 1069 ईस्वीं में हुआ। इसे राजा पृथ्वीदेव प्रथम द्वारा बनवाया गया था।

चैतुरगढ़ का किला छत्तीसगढ़ के 36 किलों में से एक और अभेद्य चट्टानी प्राकृतिक दीवारों से सुरक्षित था। कुछेक जगहों पर ही ऊंची दीवारों के निर्माण की आवश्यकता रही होगी। इसलिए कहीं- कहीं मानव निर्मित दीवारें दिखती हैं। पुरातत्वविद इसे देश के सबसे मजबूत प्राकृतिक किलों में से एक मानते हैं। किले के तीन मुख्य प्रवेश द्वार हैं। जो कल्चुरि कालीन सुंदर कारीगरी का नमूना हैं। इन प्रवेश द्वारों के नाम सिंहद्वार, मेनका, हुमकारा द्वार हैं।

चैतुरगढ़ पहाड़ी पर स्थित इस किले तक पहुंचने के लिए आपको ऊबड़-खाबड़ चट्टानों पर चढ़ना होगा। लेकिन ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए इसी में असल लुत्फ़ है। ऊंचाई पर पहुंचने पर आपको काफी हैरानी होगी। यहां करीब पांच वर्ग किलोमीटर में किले का विस्तार है। इतनी ऊंचाई पर पांच तालाब भी हैं। सबसे पहले सिंहद्वार आपको नज़र आता है। यहां से होकर जब आप ऊपर चढ़ेंगे तो आपको माँ महिषासुर मर्दिनी मंदिर के दर्शन होंगे।

महिषासुर मर्दिनी मंदिर

महिषासुर मर्दिनी मंदिर के दर्शन के लिए आने वाले भक्तों ने आज भी चैतुरगढ़ किले को जीवंत रखा है। जनआस्था का यह केंद्र अपूर्व शांति प्रदान करता है। ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां का तापमान तीव्रतम गर्मी के दिनों में भी 25 से 30 डिग्री तक रहता है। इसलिए कठिन यात्रा के बाद यहां आकर श्रद्धालु राहत महसूस करते हैं। कहते हैं एक यात्रा के दौरान जब राजा पृथ्वीदेव प्रथम विश्राम कर रहे थे तब देवी ने स्वप्न में आकर उन्हें यहां मंदिर निर्माण की इच्छा जताई थी।

जनश्रुति है कि महिषासुर का वध करने के बाद तनिक विश्राम के लिए माँ दुर्गा यहां विराजी थीं। कहते हैं चैतुरगढ़ पहाड़ी पर माँ महिषासुर मर्दिनी अपने जीवंत रूप में विराजित हैं।यह भी कहा जाता है कि उनकी अति सुंदर प्रतिमा को एकटक निहारा जाए तो देवी पलकें झपकाते हुए नज़र आती हैं।

मंदिर के स्थापत्य की बात करें तो मंदिर को नागर शैली में बनाया गया है। नागर शैली की विशेषता यह है कि इसमें बने मंदिर में मुख्य भूमि आयताकार होती है जिसमें बीच के दोनों ओर क्रमिक विमान होते हैं। इस शैली के मंदिरों में सबसे ऊपर शिखर होता है। इस शिखर को रेखा शिखर भी कहते हैं। मंदिर का सभा मंडप 16 स्तंभों वाला है। सभा मंडप के साथ चार स्तंभों वाला प्रवेश द्वार है जहां से गर्भ गृह में पहुंचा जाता है।मंदिर के गर्भ ग्रह में माता महिषासुर मर्दिनी की 12 हाथों वाली मूर्ति स्थापित है। मंदिर के इर्द-गिर्द हनुमान, कालभैरव और शनिदेव आदि की मूर्तियां भी रखी दृष्टिगोचर होती हैं। साल की दोनों नवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा होती है जिसमें श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है।

शंकर खोल गुफा

शंकर खोल गुफा मंदिर से करीब 3 किलोमीटर दूर स्थित है। गुफा के प्रवेश द्वार को पक्का करवा दिया गया है और यहां पर आकर काफी लोग विश्राम कर सकते हैं। सुरंग की तरह दिखने वाली यह गुफा भीतर करीब 25 फीट लंबी है। अंदर जाते-जाते बेहद संकरी होने के कारण इस गुफा में रेंग कर या घुटनों के बल ही आया-जाया जा सकता है। कहते हैं कि शिव और भस्मासुर की लड़ाई के दौरान दोनों यहां भी आए थे। गुफा के भीतर शिवलिंग स्थापित हैं और रोज़ाना ज्योति प्रज्जवलित की जाती है। गुफा के द्वार से निकलते वक्त ऊपर पहाड़ी से रिसते पानी की नन्ही बूंदें आपको तरोताजा कर देती हैं। इस शुद्ध पानी को किसी बर्तन या बाॅटल में इकट्ठा कर आप पी भी सकते हैं। गुफा मेनका द्वार के करीब है। गुफा से ऊपर पहाड़ी की और चढ़ाई करने पर मेनका मंदिर भी देखा जा सकता है।

किले में हैं पांच तालाब

चैतुरगढ़ किले में पांच तालाब हैं। गर्गज तालाब, सूखी ताला, केकड़ा तालाब, भूखी डबरी और सिंघी तालाब। पांच तालाबों में से तीन तालाब गर्गज, सूखी और केकड़ा तालाब में हमेशा पानी भरा रहता है।

तीन मुख्य झरने भी हैं पहाड़ी पर

चैतुरगढ़ की पहाड़ी से चामादरहा, तिनधारी और श्रंगी झरना बहते हैं। इन झरनों ने पहाड़ी और किले की सुंदरता व आकर्षण में और इजाफ़ा किया है। छोटे- छोटे और भी झरने यहां मैकाल श्रेणी में देखे जा सकते हैं। चैतुरगढ़ पहाड़ी से ही जटाशंकरी नदी का उद्गम भी होता है। जो हसदेव नदी की सहायक नदी है।

कहाँ ठहरें

चैतुरगढ़ पहाड़ के ऊपर वन विभाग ने पर्यटकों के रुकने के लिए कॉटेज का निर्माण कराया है। वहीं एसईसीएल ने यहां आने वाले पर्यटकों के लिए विश्राम घर का निर्माण करवाया है। मंदिर के ट्रस्ट ने भी पर्यटकों के लिए कुछ कमरे बनवाए हैं।

कैसे पहुँचे, प्लेन से

आप स्वामी विवेकानन्द अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा रायपुर पहुंचकर कैब से कोरबा जा सकते हैं। यहां से किले की दूरी करीब 200 किलोमीटर है।

ट्रेन से

चैतुरगढ़ कोरबा रेलवे स्टेशन से लगभग 50 किलोमीटर और बिलासपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर है।

सड़क मार्ग से

चैतुरगढ़ कोरबा बस स्टैंड से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर और बिलासपुर बस स्टैंड से करीबन 55 किमी की दूरी पर स्थित है। रायपुर से इसकी दूरी करीब 190 किमी है।

Divya Singh

दिव्या सिंह। समाजशास्त्र में एमफिल करने के बाद दैनिक भास्कर पत्रकारिता अकादमी, भोपाल से पत्रकारिता की शिक्षा ग्रहण की। दैनिक भास्कर एवं जनसत्ता के साथ विभिन्न प्रकाशन संस्थानों में कार्य का अनुभव। देश के कई समाचार पत्रों में स्वतंत्र लेखन। कहानी और कविताएं लिखने का शौक है। विगत डेढ़ साल से NPG न्यूज में कार्यरत।

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