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Chhath Vrat Samagri 36 घंटे का कठोर उपवास इस दिन से हो रहा शुरू, इन सामग्रियों से होगी पूजा, जानिए छठ व्रत से मिलने वाला फल

Chhath Vrat Samagri इस दिन से शुरू हो रहा प्रकृति पर्व छठ अभी से शुरू कर दे तैयारी,जानिए इसमें जरूरी सामग्री...

Chhath  Vrat Samagri 36 घंटे का कठोर उपवास इस दिन से हो रहा शुरू, इन सामग्रियों से होगी पूजा, जानिए छठ व्रत से मिलने वाला फल
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By Shanti Suman

Chhath Vrat: छठ पूजा का विशेष महत्व है इसमें डूबते -उगते सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा की जाती है। जो चार दिन का होता है। इस चार दिवसीय पूजा की शुरूआत कार्तिक चौथ से शुरू होकर सप्तमी तक चलती है। छठ पूजा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की छठी तिथि को मनाई जाती है। यह त्यौहार कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि से प्रारंभ होता है.। पूजा की शुरूआत शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर की जाती है। यह सबसे कठिन व्रत माना गया है। इस व्रत के बाद 36 घंटे का कठोर उपवास किया जाता है. 24 घंटे से अधिक समय तक बिना पानी के उपवास करना. यह पूजा सप्तमी तिथि को पूर्वी आकाश में उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न होती है.।

छठ पूजा कब शुरू होगी, यहां जानें पूरी जानकारी.

छठ कार्तिक चतुर्थी तिथि से प्रारंभ होता है। 17 नवंबर को छठ पूजा का पहला दिन है। इस दिन स्नान और भोजन से संबंधित एक विशेष अनुष्ठान किया जाता है। 17 नवंबर को सूर्योदय सुबह 6:45 बजे और सूर्यास्त शाम 5:27 बजे होगा। छठ पूजा के दूसरे दिन यानी पंचमी तिथि को खरना मनाया जाता है।18 नवंबर खरना। इस दिन सूर्योदय सुबह 6:46 बजे होगा. सूर्यास्त शाम 5:26 बजे होगा।कार्तिक माह की छठी तिथि 18 नवंबर शनिवार को सुबह 9:18 बजे से शुरू होगी. अगले दिन 19 नवंबर को सुबह 7 बजकर 23 मिनट पर षष्ठी तिथि समाप्त हो जाएगी. उदया तिथि के अनुसार छठ पूजा 19 नवंबर को मनाई जाएगी।

छठ पूजा में शाम के अर्ध्य का समय

मुख्य पूजा छठ पूजा के तीसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल की छठी तिथि को की जाती है. जो लोग व्रत रखते हैं वे इस दिन किसी नदी, तालाब या जलाशय पर जाकर पूजा करते हैं. इसके बाद उन्होंने डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया . इस वर्ष छठ पूजा का संध्या अर्घ्य 19 नवंबर को दिया जाएगा. 19 नवंबर को शाम 5:26 बजे सूर्यास्त. सूर्य को अर्घ्य देने का यह उत्तम समय है.

छठ पूजा की सुबह का अर्घ्य समय

छठ पूजा के चौथे और आखिरी दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा संपन्न की जाती है . कार्तिक शुक्ल सप्तमी तिथि को उगते सूर्य को अर्घ देने की परंपरा है. इस दिन मन्नतें मांगी जाती हैं. 20 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देने का समय 6:47 बजे है।

छठ पूजा में सामग्री

छठ पूजा से जुड़ी सभी सामग्रियों को पहले से इक्कट्ठा कर लेना सही रहता है। जानते हैं छठ की पूरी सामग्री के लिस्‍ट.

इसमें सूप की जरूरत पड़ती है. इसके अलावा, -छठी मैया के लिए बांस का एक डाला ले लें। इस डाले में ही पूजन की सामग्री को बांधकर घाट पर ले जाया जाता है।डाला के साथ टोकरी भी खरीदें। इसमें आप छठी मैया के लिए प्रसाद रखकर घाट पर लेकर जाते हैं.नए गेहूं और चावल की जरूरत पड़ती है जिसके आटे से छठी मैया के लिए ठेकुआ और प्रसाद बनाया जाता है।

दूध और जल आदि रखने के लिए एक एक ग्लास, लोटा और थाली की जरूरत पड़ेगी।काले छोटे देसी चने भी प्रसाद में इस्‍तेमाल आएंगे।साफ गुड़ भी आप अपने लिस्‍ट में लिखें. छठी मैया के प्रसाद को बनाने लिए चीनी की जगह गुड़ का इस्‍तेमाल किया जाता है।मिठाई में आप लड्डू, खाजा, मिठाई , शहद ले सकते हैं.-पूजा के लिए ही चंदन, चावल, सिंदूर, धूपबत्ती, कुमकुम और कपूर की भी जरूरत पड़ेगी।फलों में आप शरीफा, केला, नाशपाती और बड़ा डाभ या नींबू, सुथनी, शकरकंदी, मूली, बैंगन आदि खरीद लें। इसके अलावा, पूजा के लिए चौमुख दीप, कुछ छोटे दीप, कई बाती, तेल की जरूरत पड़ेगी जिसे घाट पर जलाया जाएगा.इसके अलावा, हल्दी, मूली, अदरक का हरा पौधा, पत्ते वाले 7 गन्ने (5 गन्ने छठ घाट के लिए और 2 प्रसाद के लिए)।केले का घौद, आर्त का पत्ता और बद्धी माला। -केराव जिसे कथा सुनने के बाद प्रसाद के रूप में छठ मइया को भेंट चढ़ाया जाता है. इसे ही खाकर व्रत संपन्न भी किया जाता है।

छठ का महत्व

पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए ये पर्व मनाया जाता है। इसका एक अलग ऐतिहासिक महत्व भी है। पुराणों के अनुसार, प्रियव्रत नामक एक राजा की कोई संतान नहीं थी। इसके लिए उसने हर जतन कर कर डाले, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तब उस राजा को संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने उसे पुत्रयेष्टि यज्ञ करने का परामर्श दिया। यज्ञ के बाद महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मरा पैदा हुआ। राजा के मृत बच्चे की सूचना से पूरे नगर में शोक छा गया। कहा जाता है कि जब राजा मृत बच्चे को दफनाने की तैयारी कर रहे थे, तभी आसमान से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा। इसमें बैठी देवी ने कहा, 'मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं।' इतना कहकर देवी ने शिशु के मृत शरीर को स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो उठा। इसके बाद से ही राजा ने अपने राज्य में यह त्योहार मनाने की घोषणा कर दी।

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