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Chhath Vrat: आज नहाय-खाय से शुरू छठ पर्व, जानिए इसमें दंडवत प्रणाम का महत्व, क्यों किया जाता है

Chhath Vrat: छठ व्रत का महत्व है।इसमें कठोर नियमो का पालन और साधना की जाती है..जानते है कैसे...

Chhath Vrat: आज नहाय-खाय से शुरू छठ पर्व, जानिए इसमें दंडवत प्रणाम का महत्व, क्यों किया जाता है
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By Shanti Suman

Chhath Vrat छठ महापर्व को सबसे कठिन पर्व है ।इसमें कई कड़े नियमों का पालन करना पड़ता है इसमें व्रति 36 घंटे का निर्जला उपवास करती है। इसमें व्रत करने वाले दंड देते हुए घाट तक जाती हैं। दंडवत घर से घाट तक जाना काफी कठिन साधना है। जानते हैं इस दिन इस तरह दंड देकर घाट तक क्यों जाते हैं। इस संबंध में मान्यता है

छठ व्रत का सबसे कठिन साधना जमीन पर लेट कर घर से छठ घाट तक जाना होता है। इससे दंडी या दण्डी प्रणाम भी कहते हैं.छठ पूजा को मन्नतका पर्व भी कहा जाता है.। जो भी माता छठी और सूर्य भगवान की श्रद्धा पूर्वक आराधना करते हैं उनकी मनोकामनायें जरूर पूर्ण होती हैं। सूर्य भगवान के 12 नाम है।वहीं पहले के समय में जिनकी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती थी। वह सूर्य भगवान के 12 नाम को एक एक जाप कर जमीन पर लेटकर अपने शरीर की लंबाई बराबर निशान देते थे और फिर उठकर सूर्य भगवान को प्रणाम करते थे और यह प्रक्रिया कुल 13 बार करते थे. लेकिन धीरे-धीरे यहपरंपरा बदली और लोग घर से छठ घाट तक दंड देकर जाने लगे।

क्या हैछठ में दंडवत मान्यता

छठ पर संतान प्राप्ति और बीमारे से छुटकारा को लेकर मन्नत मांगी जाती है। जिसकी मन्नत पूरी होती है वे दंड देते हैं। दंड देने वाले पुरुष या महिलाओं के एक हाथ में लकड़ी होता है जो आम का होता है। फिर वह जमीन पर लेटकर अपने शरीर की लंबाई का लकड़ी सें एक निशान लगाते हैं। फिर उसे निशान पर खड़े को सूर्य भगवान को प्रणाम करते हैं। यह प्रक्रिया छठ घर से नदी घाट तक चलती है. वही दंड प्रणाम ढलते सूर्य को अर्घ देने के समय और उगते सूर्य को अर्घ देने के समय किया जाता है. महिलाओं और पुरुष के द्वारा दंड प्रणाम के बाद ही लोग डाला लेकर घाट तक जाते हैं।

छठ में दंड प्रणाम कैसे करें

दंड प्रणाम करने की अलग विधि है. इस दौरान व्रती हाथ में एक लकड़ी का टुकड़ा रखते हैं और जमीन पर पूरी तरह लेटकर अपनी लंबाई के बराबर निशान जमीन पर लगाते हैं. इसके बाद उसी निशान पर खड़े होकर दंड प्रणाम करते हैं. वर्ती यह दंड प्रणाम करते हुए शाम के अर्घ्य और सूर्योदय के अर्घ्य के दौरान घर से छठ घाट तक करते हैं.

दंड प्रणाम का महत्व:

बहरहाल छठ को लेकर तैयारी पूरी हो चुकी है. नहाए-खाएं के साथ यह पर्व शुरू होता है, छठ के दूसरे दिन छठ खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत करती हैं. रविवार को छठ के तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दी जायेगी, वहीं सोमवार को उदयीमान सूर्य अर्घ्य के साथ चार दिवसीय इस महापर्व का समापन हो जायेगा।

छठ पूजा कब शुरू होगी, यहां जानें पूरी जानकारी.

छठ कार्तिक चतुर्थी तिथि से प्रारंभ होता है। 17 नवंबर को छठ पूजा का पहला दिन है। इस दिन स्नान और भोजन से संबंधित एक विशेष अनुष्ठान किया जाता है। 17 नवंबर को सूर्योदय सुबह 6:45 बजे और सूर्यास्त शाम 5:27 बजे होगा। छठ पूजा के दूसरे दिन यानी पंचमी तिथि को खरना मनाया जाता है।18 नवंबर खरना। इस दिन सूर्योदय सुबह 6:46 बजे होगा. सूर्यास्त शाम 5:26 बजे होगा।कार्तिक माह की छठी तिथि 18 नवंबर शनिवार को सुबह 9:18 बजे से शुरू होगी. अगले दिन 19 नवंबर को सुबह 7 बजकर 23 मिनट पर षष्ठी तिथि समाप्त हो जाएगी. उदया तिथि के अनुसार छठ पूजा 19 नवंबर को मनाई जाएगी।

छठ पूजा में शाम के अर्ध्य का समय

मुख्य पूजा छठ पूजा के तीसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल की छठी तिथि को की जाती है. जो लोग व्रत रखते हैं वे इस दिन किसी नदी, तालाब या जलाशय पर जाकर पूजा करते हैं. इसके बाद उन्होंने डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया . इस वर्ष छठ पूजा का संध्या अर्घ्य 19 नवंबर को दिया जाएगा. 19 नवंबर को शाम 5:26 बजे सूर्यास्त. सूर्य को अर्घ्य देने का यह उत्तम समय है.

छठ पूजा की सुबह का अर्घ्य समय

छठ पूजा के चौथे और आखिरी दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा संपन्न की जाती है . कार्तिक शुक्ल सप्तमी तिथि को उगते सूर्य को अर्घ देने की परंपरा है. इस दिन मन्नतें मांगी जाती हैं. 20 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देने का समय 6:47 बजे है।

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