Chhath Puja 2025: संध्या सूर्य को अर्ध देते समय इस कथा को सुनने से छठी मैया होती है प्रसन्न, देती है दोगुना आशीर्वाद

Chhath Puja Vrat Katha: छठ का महापर्व आज से शुरू हो गया है। जिसके बाद 28 अक्टूबर को उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद इस महापर्व का समापन होगा। मान्यता है कि, संध्या अर्घ्य के दिन शाम के समय छठी मैया की पूजा के दौरान छठ व्रत की कथा सुननी या पढ़नी चाहिए। बिना छठ व्रत की कथा सुने या पढ़े उपवास पूरा नहीं होता। छठ व्रत के दौरान कथा पढ़ने या सुनने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। आइये जानते है, छठ पूजा के व्रत कथा के बारे में।
छठ पूजा की व्रत कथा
बहुत पुराने समय की बात है, जब एक राजा प्रियवद और उनकी रानी मालिनी थीं। राजा बहुत अच्छे और धर्म-कर्म मानने वाले थे, किंतु उनके मन में एक बहुत बड़ा दुःख था कि उनके घर में कोई संतान नहीं थी। संतान के बिना राजा और रानी हमेशा उदास और दुखी रहते थे।
जिससे परेशान होकर राजा ने एक दिन सोचा कि संतान प्राप्ति के लिए उन्हें कुछ न कुछ उपाय करना चाहिए। इसके बाद दोनों दंपति (राजा और रानी) जंगल की ओर यात्रा पर निकल गए। वहाँ जंगल में उन्हें एक बड़े ऋषि महर्षि कश्यप से भेंट हुई। जिन्हें देखते ही राजा ने उन्हें प्रणाम किया। इससे खुश होकर महर्षि ने राजा से उनकी समस्या के बारे में पूछा, तो राजा ने अपनी समस्या बताते हुए संतान प्राप्ति की कामना की।
इसके लिए महर्षि ने उन्हें एक यज्ञ करने को कहा, जिसके बाद राजा और रानी ने एक 'पुत्रेष्टि यज्ञ' करवाया। यज्ञ खत्म होने के बाद, महर्षि ने यज्ञ के प्रसाद के रूप में बनी हुई खीर रानी मालिनी को खाने के लिए दी। खीर खाने के कुछ समय बाद रानी गर्भवती हो गईं। दसवें महीने में रानी ने एक बच्चे को जन्म दिया।
राजा-रानी बहुत खुश हुए, लेकिन उनकी खुशी दुर्भाग्य से जल्द ही गम में बदल गई। दरअसल, उनका बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ। राजा अपने पुत्र के शरीर को लेकर सीधे श्मशान घाट पहुँचे। राजा जैसे ही आत्महत्या करने की तैयारी कर रहे थे, तभी आसमान से एक दिव्य देवी वहाँ प्रकट हुईं। ये देवी कोई और नहीं, बल्कि भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री थीं।
राजा ने आश्चर्य से उनसे पूछा कि वह कौन हैं। देवी ने जवाब दिया, "मैं षष्ठी देवी हूँ। मुझे छठे अंश से बनाया गया है, इसलिए मुझे 'षष्ठी' कहते हैं। मेरा दूसरा नाम देवसेना भी है।" षष्ठी देवी ने राजा से कहा, "तुम मेरी पूजा करो और बाकी लोगों को भी मेरी पूजा करने के लिए कहो। अगर तुम ऐसा करोगे, तो तुम्हारा यह दुख दूर हो जाएगा और तुम्हें संतान का सुख ज़रूर मिलेगा।"
देवी की बात सुनकर राजा प्रियवद को कुछ आशा मिली। उन्होंने तुरंत देवी के कहे अनुसार, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की छठी तिथि (छठ) को पूरे नियम-कानून से षष्ठी देवी का व्रत और पूजा की। इस व्रत के असर से राजा प्रियवद को कुछ ही समय में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और उनका सारा दुख खत्म हो गया। बस, तभी से यह व्रत लोगों के बीच शुरू हो गया। इसे छठ पूजा या सूर्य षष्ठी के रूप में मनाया जाने लगा। मान्यता है कि जो कोई भी इस व्रत को करता है और यह कथा सुनता है, उनकी संतान की उम्र लंबी होती है और घर में खूब सुख-शांति और धन-दौलत आती है।
