Chanakya Niti : NPG डेस्क। आचार्य चाणक्य ने उन रास्तों पर चलने की सीख दी है जिनपर चलकर आम इंसान खुद को बेहतर बनाए और एक अच्छी ज़िन्दगी जिए। उसकी ज़िदगी गलतियां करने में ही न बीत जाए। आज जिस नीति पर हम चर्चा कर रहे हैं वह इस श्लोक पर आधारित है।
विषादप्यमृतं ग्राह्यममेधयादपि कांञ्चनम।
नीचादप्युत्तमा विद्या स्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि॥
इंसान ऊंच-नीच के दुनियावी सांचे में फंस कर सीखने का अपना दायरा सीमित न करे, बल्कि निरंतर अपना ध्यान खुद को बेहतर करने में लगाए। वह देखे, कहां से कुछ सीखकर वह खुद को बेहतर बना सकता है।
पहली पंक्ति
'विषादप्यमृतं ग्राह्यममेधयादपि कांञ्चनम'
आचार्य का कहना है कि अमृत विष में हो तो ऐसे विष को ग्रहण कर लेना चाहिए। उसी तरह यदि अपवित्र और अशुद्ध वस्तु में स्वर्ण या अन्य कोई मूल्यवान वस्तु गिरी हुई हो तो उसे उठा लेना चाहिए।
यहां आचार्य विष पीने के लिए नहीं कह रहे हैं न ही लालचवश गंदगी में से भी मूल्यवान चीज़ उठाने को कह रहे हैं। उनके शब्दों का भावार्थ यह है कि आपका उद्देश्य 'गुण ग्रहण करना' होना चाहिए। बिना इस विषय का विचार किए कि आपको उसके लिए कुछ ऐसे कार्य करने होंगे जो आपकी समझ में आपके कुलाभिमान के विपरीत हों।
दूसरी पंक्ति
' नीचादप्युत्तमा विद्या स्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि'
आचार्य कह रहे हैं कि यदि नीच मनुष्य के पास कोई अच्छी विद्या, कला या गुण है तो उससे सीखने में कोई हानि नहीं। इसी प्रकार दुष्ट कुल में उत्पन्न अच्छे गुणों से युक्त स्त्री रूपी रत्न को ग्रहण करने में संकोच नहीं करना चाहिए।
आशय यह है कि आप देख रहे हैं कि सामने वाले व्यक्ति के पास कोई ऐसा ज्ञान है जो आपके पास नहीं है। फिर भी आप सिर्फ इसलिए उसे नहीं सीख रहे कि वह व्यक्ति छोटे कुल या हैसियत का है या फिर किसी भी नजरिए से आप उसे खुद से नीचा आंकते हैं। बल्कि अगर आपको उससे कोई अच्छी और उपयोगी सीख, गुण या विद्या, कला आदि की प्राप्ति का अवसर मिले, तो अपने ऊंचे कुल, पद या स्थिति पर घमंड करने के बजाय झुक कर वह ज्ञान अर्जित करें।
इसी तरह ऊंचे कुल का भेदभाव मन में रख कर ऐसी स्त्री को न छोड़ दें जो उत्तम गुणों से युक्त है, बस आपसे निम्न कुल की है। ऐसी स्त्री एक रत्न के समान अपनी चमक से आपके जीवन को रौशन करेगी, उसे अपनाने में संकोच नहीं करना चाहिए।