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Chaitra Navratri 2024 : माँ दुर्गा की आराधना का पर्व शुरू, आइये जानें माँ शीतला-महामाया और बंजारी की महिमा

माँ की आराधना के पर्व के मौके पर हम आपको छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध शक्तिपीठों के पुरातन, वहां की महत्ता और किवदंतियों से रूबरू कराएँगे.

Chaitra Navratri 2024 : माँ दुर्गा की आराधना का पर्व शुरू, आइये जानें माँ शीतला-महामाया और बंजारी की महिमा
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By Meenu

माँ की आराधना का पर्व चैत्र नवरात्रि 09 अप्रैल से शुरू हो रहा है. इस पर्व के मौके पर हम आपको छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध शक्तिपीठों के पुरातन, महत्ता और किवदंतियों से रूबरू कराएँगे.

इसी कड़ी में हम आपको रायपुर शहर के प्रसिद्ध शीतला मंदिर, महामाया मंदिर, बंजारी मंदिर (भनपुरी व रविशंकर यूनिवर्सिटी) के बारे में बताने जा रहे हैं. तो आइये जानते है माँ के इन विभिन्न रूपों और उनके महत्व के बारे में.


शीतला माता स्वयंभू रूप में विराजमान, चेचक के साथ कई रोग से मिल जाती है मुक्ति



रायपुर का शीतला माता मंदिर छत्तीसगढ़ के सबसे प्रख्यात मंदिरों में से एक है जहां शीतला माता का स्वयंभू रूप विराजमान है। इस मंदिर की मान्यता है कि चेचक या माता जिसे चिकन पॉक्स भी कहा जाता है होने पर अगर मरीज को शीतला माता के मंदिर से पानी लेजाकर स्नान कराया जाये तो तुरंत उसे इस रोग से मुक्ति मिल जाती है। आश्चर्य की बात यह है की यहां माता की कोई मूर्ति नहीं है बल्कि यहां एक शिलाखंड है जिसकी मां शीतला के रूप में पूजा की जाती है। इसी शिलाखंड के पानी को मां का आशीर्वाद माना जाता है। चिकन पॉक्स (माता) के मरीजों के परिजन यहां आकर माता के चरणों में नीम की पत्तियों पहले माता के चरणों में रखने के बाद, फिर मरीज के आसपास रखा जाता है। इसके साथ ही माता के शिलाखंड स्वरुप से निकले जल से मरीज को स्नान करने पर तुरंत उसकी बीमारी ठीक हो जाती है।

माता ने एक महिला को स्वप्न में दर्शन देकर उसी जगह पर ही स्थापित करने का आदेश दिया। राजरानी श्रीमाली नाम की महिला ने उस पत्थर के चारों ओर छोटा सा मंदिर बनवाया। आज भी गर्भगृह उसी स्वरूप में है, बाद में मंदिर के सामने सिंह की विशाल प्रतिमा स्थापित की गई जो मुख्य द्वार पर है। मंदिर में प्रवेश से पहले सिंह को प्रणाम करके भक्त भीतर पहुंचते हैं।

मंदिर की खासियत है कि भक्त अपने हाथों से माता को भोग अर्पित करते हैं, इसमें पुजारी का कोई दखल नहीं होता। शीतला माता ही एकमात्र ऐसी देवी है, जिसके गर्भगृह तक भक्त पहुंचकर अपने हाथों से माता को ठंडा भोजन का भोग लगाते हैं। गरम मिठाई, भोजन का भोग नहीं लगता। इसी कारण माता को शीतलता देने वाली कहा जाता है। माता को लगाया जाने वाला भोग बाजार से नहीं खरीदा जाता बल्कि महिलाएं अपने घरों में एक दिन पहले से ही भोजन तैयार कर लेती हैं और ठंडा (बासी) भोजन ही भोग के रूप में अर्पित करती हैं, भोग लगाने के बाद परिवार के लोग भी दिनभर ठंडा भोजन ही ग्रहण करते हैं।


मां महामाया का दरबार कई मायनों में खास



पुरानी बस्ती महामाया मंदिर में मां महामाया का दरबार कई मायनों में खास है। एक तो इस बात को लेकर कि गर्भगृह में मां की प्रतिमा दरवाजे की सीध में नहीं दिखती। इसे लेकर कई किवदंतियां हैं। ऐसी ही एक किंवदंती के मुताबिक कलचुरी वंश के राजा मोरध्वज की भूल के कारण ऐसा हुआ है।

किंवदंती ऐसी है कि राजा मोरध्वज सेना के साथ खारुन नदी तट पर पहुंचे। यहां उन्हें मां महामाया की प्रतिमा दिखाई दी। राजा करीब पहुंचे तो उन्हें सुनाई दिया कि मां उनसे कुछ कह रही हैं। मां ने कहा कि वे रायपुर नगर के लोगों के बीच रहना चाहती हैं। इसके लिए मंदिर तैयार किया जाए। राजा ने माता के आदेश का पालन करते हुए पुरानी बस्ती में मंदिर तैयार करवाया। मां ने राजा से कहा था कि वह उनकी प्रतिमा को अपने कंधे पर रखकर मंदिर तक ले जाएं। रास्ते में प्रतिमा को कहीं रखें नहीं। अगर प्रतिमा को कहीं रखा तो मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगी। राजा ने मंदिर पहुंचने तक प्रतिमा को कहीं नहीं रखा लेकिन मंदिर के गर्भगृह में पहुंचने के बाद वे मां की बात भूल गए और जहां स्थापित किया जाना था, उसके पहले ही एक चबूतरे पर रख दिया। बस प्रतिमा वहीं स्थापित हो गई। राजा ने प्रतिमा को उठाकर निर्धारित जगह पर रखने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहे। प्रतिमा को रखने के लिए जो जगह बनाई गई थी वह कुछ ऊंचा स्थान था। इसी वजह से मां की प्रतिमा चौखट से तिरछी दिखाई पड़ती है।

जानकारों के मुताबिक मंदिर का निर्माण राजा मोरध्वज ने तांत्रिक विधि से करवाया था। इसकी बनावट से भी कई रहस्य जुड़े हुए हैं। मंदिर के गर्भगृह के बाहरी हिस्से में दो खिड़कियां एक सीध पर हैं। सामान्यतः दोनों खिड़कियों से मां की प्रतिमा की झलक नजर आनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता। दाईं तरफ की खिड़की से मां की प्रतिमा का कुछ हिस्सा नजर आता है परंतु बाईं तरफ नहीं।


बंजारा जाति की कुलदेवी मानी जाती हैं माता


शहर के प्रसिद्ध मंदिरों में शामिल पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय परिसर स्थित बंजारी मंदिर गहरी आस्था के लिए जाना जाता है। मन की मनौती के लिए सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। ऐसी मान्यता है कि माता रानी भक्तों के कष्ट दूर कर उनकी झोली खुशियों से भर देती हैं। यह मंदिर यहां पर पुरातन काल से है। मंदिर में सुपाड़ी के आकार की माता की प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा का आकार हर वर्ष बढ़ रहा है।

मंदिर के पुजारियों की मानें तो पुरातन काल में मां बंजारी यहां रहने वाले बैगाओं और ग्रामीणों के स्वप्न में आई थीं। स्वप्न में मां ने गांव की भिरहा मिट्टी और झाड़ियों के नीचे अपनी मूर्ति होने की बात बताई थी। इसके बाद स्वप्न के अनुसार ग्रामीण उस जगह गए और वहां साफ-सफाई की तो सुपाड़ी में तिलक लगी माता की प्रतिमा दिखाई पड़ी। इसके बाद इस प्रतिमा की स्थापना की गई और पूरे विधि-विधान से पूजा-पाठ किया गया। तब से आस्था का यह मंदिर लोगों में श्रद्धा का भाव प्रकट कर रहा है।

मंदिर के पुजारी बताते हैं कि बंजारी माता बंजारा समाज की कुलदेवी हैं। बंजारा समुदाय के लोग यहां अपनी तिथि-नक्षत्र के अनुसार विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। उनकी पूजा-अर्चना भी आकर्षण का केंद्र है। वहीं बंजारों द्वारा माता की स्थापना किए जाने की वजह से माता का नाम बंजारी पड़ा।


बंजर जमीन पर प्रकट होने पर माता का नाम पड़ा बंजारी माता



रायपुर के बंजारी माता मंदिर का इतिहास 500 साल से भी ज्यादा पुराना है. कहा जाता है कि 500 साल पहले रायपुर के भनपुरी क्षेत्र की बंजर जमीन से बंजारी माता प्रकट हुई थीं. जब बंजारी माता प्रकट हुईं तो उनका स्वरूप एक सुपारी जितना छोटा था. बंजारा समुदाय के लोगों ने बंजर जमीन पर माता का स्वरूप देख वहां एक छोटे मंदिर की स्थापना की. धीरे-घीरे माता के स्वरूप का विस्तार हुआ और माता का मंदिर भव्य बनाया गया.

बंजारी माता मंदिर के पंडित के अनुसार बंजारी माता बंजारा समाज की कुलदेवी मानी जाती हैं. बंजारा समाज के लोगों ने बंजर जमीन पर माता के स्वरूप को देख मंदिर में माता की स्थापना की थी. इसलिए माता का नाम बंजारी माता पड़ा. आज यह सिर्फ एक मंदिर नहीं बल्कि धाम बन गया है. 500 साल पहले मंदिर की स्थापना के समय माता की प्रतिमा सुपारी के आकार की थी, जो हर साल बढ़ रही है. आज माता की प्रतिमा 1 से 2 फुट की हो गई है.

हर साल चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र के समय मंदिर में हजारों श्रद्धालु ज्योत प्रज्ज्वलित कराते हैं. बंजारी माता के दर्शन के लिए श्रद्धालु सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि देश-विदेश से भी रायपुर पहुंचते हैं. बंजारी माता की मूर्ति से थोड़ी ही दूर बरगद का एक विशाल पेड़ है. इसमें लोग मन्नत मांगने के बाद नारियल और चुनरी बांधते हैं. यह बरगद का पेड़ भी काफी साल पुराना है. बंजारी माता मंदिर में श्रद्धालु सच्चे मन से जो भी मनोकामना मानते हैं, माता उसे पूरा करती हैं. किसी भी श्रद्धालुओं को खाली हाथ माता नहीं भेजतीं.


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