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Chaitra Navratri 2024 : बिलासपुर की मरही माता करती हैं भूत बाधा दूर... तो जहाँ गिरा माँ सती का कन्धा वो कहलाई माँ रतनपुर महामाई

हम आज आपको लेकर चलते हैं, बिलासपुर जिले के सिरगिट्टी परिक्षेत्र में स्थित 120 वर्ष पुरानी सिद्ध शक्तिपीठ मां मरही माई माता के मंदिर व बिलासपुर के नजदीक माँ रतनपुर महामाई के मानसिक दर्शन को. तो चलिए जानते हैं माँ की महिमा.

Chaitra Navratri 2024 : बिलासपुर की मरही माता करती हैं भूत बाधा दूर... तो  जहाँ गिरा माँ सती का कन्धा वो कहलाई माँ रतनपुर महामाई
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By Meenu

चैत्र नवरात्रि का आज चौथा दिन है. आज माँ कुष्मांडा की पूजा अर्चना की जाती है. नवरात्रि के पवन अवसर पर हम आपको राज्य के प्रमुख शक्तिपीठों से घर बैठे ही रूबरू करा रहे हैं. माँ की महिमा, रूप से लेकर प्राचीनता और महत्ता को भी बताने की कोशिश कर रहे हैं.

इसी कड़ी में हम आज आपको लेकर चलते हैं, बिलासपुर जिले के सिरगिट्टी परिक्षेत्र में स्थित 120 वर्ष पुरानी सिद्ध शक्तिपीठ मां मरही माई माता के मंदिर व बिलासपुर के नजदीक माँ रतनपुर महामाई के मानसिक दर्शन को. तो चलिए जानते हैं माँ की महिमा.


जंगल में बसी है मरी माई, करती हैं भूत बाधा दूर

सौ साल से अधिक सिरगिट्टी परिक्षेत्र में मरी माई माता विराजमान हैं. माता की प्रतिमा के स्थापना के बाद से ही इसकी ख्याति दूर-दूर तक है. माता की प्रतिमा स्वयंभू है और सौ साल पहले माता की प्रतिमा टेसू के पेड़ के नीचे रखी हुई थी. इस क्षेत्र में पहले जंगल हुआ करता था और यहां जंगली जानवर रहते थे. समय के साथ-साथ यहां इंसान बसने लगे और माता के प्रतिमा की स्थापना के लिए मंदिर बनवाया गया.

यहां भूत बाधा के साथ शारीरिक समस्याओं को लेकर लोग माता के पास पहुंचते हैं. मरी माता उनके दुखों दर्द को दूर करती हैं. नवरात्र में पहुंचने वाले ज्यादातर भक्त देवी की उपासना कर शारीरिक और भूत बाधा दूर करने की मनोकामना करते हैं. मरी माई देवी भी भक्त्तों की समस्याओं को दूर करती है.

मंदिर के पुजारी तरुणाचारी ने कहते हैं "मरी माई माता की विशेषता है कि वह भक्तों की शारीरिक समस्या तो दूर करती ही हैं, साथ ही भूत बाधा का भी नाश करती है. देवी के कई चमत्कार हैं, जो भक्तों की उनके प्रति आस्था को और प्रगाढ़ बनाता है."


यहां गिरा था माता सती का दाहिना कंधा



न्यायधानी बिलासपुर से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रतनपुर शहर आदिशक्ति मां महामाया देवी की पवित्र पौराणिक नगरी है. रतनपुर का प्राचीन और गौरवशाली इतिहास रहा है. माना जाता है कि सती की मृत्यु से व्यथित भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुए ब्रह्मांड में भटकते रहे। इस समय माता के अंग जहां-जहां गिरे, वहीं शक्तिपीठ बन गए। इन्हीं स्थानों को शक्तिपीठ रूप में मान्यता मिली। महामाया मंदिर में माता का दाहिना स्कंध गिरा था। भगवान शिव ने स्वयं आविर्भूत होकर उसे कौमारी शक्ति पीठ का नाम दिया था। इसीलिए इस स्थल को माता के 51 शक्तिपीठों में शामिल किया गया।

मंदिर का मंडप नागर शैली में बना है. यह 16 स्तंभों पर टिका है. त्रिपुरी के कलचुरियों की एक शाखा ने रतनपुर को अपनी राजधानी बनाकर दीर्घकाल तक छत्तीसगढ़ में शासन किया। राजा रत्नदेव प्रथम ने मणिपुर नामक गांव को रतनपुर नाम देकर अपनी राजधानी बनाया। श्री आदिशक्ति मां महामाया देवी मंदिर का निर्माण राजा रत्नदेव प्रथम द्वारा 11वी शताब्दी में कराया गया था। गर्भगृह में आदिशक्ति मां महामाया की साढ़े तीन फीट ऊंची प्रस्तर की भव्य प्रतिमा स्थापित है. जो भी भक्त माता महामाया का दर्शन करने रतनपुर आते हैं, वह सबसे पहले महामाया मंदिर के कुछ दूर पहले स्थित भैरव बाबा के मंदिर पर रुककर दर्शन करते हैं. भैरव बाबा की यह प्रतिमा प्राचीन है और इसकी ऊंचाई दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है.


तीन रूपों में भक्तों को देती हैं दर्शन

रतनपुर में विराजी मां महामाया की महिमा बड़ी निराली है. महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूपों में यहां पर महामाया देवी अपने भक्तों को दर्शन देती हैं. दुर्गा सप्तशती के साथ ही देवी पुराण में महामाया के बारे में जो कुछ लिखा है, ठीक उन्हीं रूपों के दर्शन रतनपुर में विराजी महामाया के रूप में होते हैं. महामाया मंदिर में शक्ति के तीनों रूप दिखाई देते हैं. तीनों रूपों में समाहित मां के स्वरूप को महामाया देवी की संज्ञा दी गई है.

मंदिर के निर्माण की है कुई किवदंतिया

1045 ई में राजादेव रत्नदेव प्रथम मणिपुर नामक गांव में रात्रि विश्राम एक वट वृक्ष पर किया। अर्धरात्रि में जब राजा की आंख खुली तब उन्होंने वट वृक्ष के नीचे आलौकिक प्रकाश देखा यह देखकर चमत्कृत हो गए कि वहां आदिशक्ति श्री महामाया देवी की सभा लगी हुई है। इतना देखकर वे अपनी चेतना खो बैठे। सुबह होने पर वे अपनी राजधानी तुम्मान खोल लौट गए और रतनपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया। 1050 ई में श्री महामाया देवी का भव्य मंदिर निर्मित कराया।


खास है रामटेकरी मंदिर

रतनपुर में महामाया मंदिर के पास ही पहाड़ के ऊपर भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी का मंदिर है, जिसे रामटेकरी कहा जाता है. रामटेकरी से पूरा रतनपुर शहर दिखता है और यह दृश्य बहुत ही सुंदर दिखाई देता है. 1045 ईसवीं में राजा रत्नदेव प्रथम मणिपुर नामक गांव में एक वट वृक्ष के नीचे रात्रि विश्राम कर रहे थे. अर्धरात्रि में जब राजा की आंख खुली तो उन्होंने वृक्ष के नीचे आलौकिक प्रकाश देखा. वह यह देखकर अचंभित हो गए कि वहां आदिशक्ति श्री महामाया देवी की सभा लगी है. सुबह वे अपनी राजधानी तुम्मान खोल लौट गए और रतनपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया. 1050 ईसवी में श्री महामाया देवी का भव्य मंदिर निर्मित कराया गया. कहा जाता है कि जो भी इस मंदिर की चौखट पर आया वह खाली नहीं गया. माता के इस धाम में कुंवारी लड़कियों को सौभाग्य की प्राप्ति होती है.


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