Bhoramdev Mahotsav: भोरमदेव महोत्सव आज से, 1874 में राजा राजपाल सिंह के समय में हुई थी मेले की शुरुआत, जानिए मेले का विस्तृत इतिहास...
Bhoramdev Mahotsav: कवर्धा। छत्तीसगढ़ के खजुराहो के रूप में प्रसिद्ध भोरमदेव मंदिर में आज से दो दिवसीय महोत्सव की शुरुआत हो रही है। हर साल चैत्र माह में कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को ही यहां मेला लगता है। इस दौरान कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति होगी। ११वीं सदी में फणी नागवंशी राजाओं द्वारा निर्मित भोरमदेव मंदिर जितना पुराना है, उतना ही पुराना यहां हर साल चैत्र तेरस को लगने वाले मेले का है। कबीरधाम जिले के वरिष्ठ साहित्यकार व पुरातत्वविद आदित्य श्रीवास्तव ने बताया कि भोरमदेव में कई वर्षों से विशाल मेले का आयोजन होते आ रहा है। आदित्य श्रीवास्तव कहते हैं भोरमदेव का मेला काफी पुराना है, महोत्सव तो आधुनिक युग की देन है। वे बताते हैं कि भोरमदेव के मेले के इतिहास में जाएं तो लगता है कि इसकी शुरूआत राजा राजपाल सिंह के कार्यकाल में हुई। अष्टराज अंभोज के अनुसार कवर्धा रियासत के पांचवे राजा राजपाल सिंह(रजपाल सिंह) १८७४-१८९१ ने अपनी राजधानी कवर्धा से दूर राजानवागांव में स्थानांतरित की थी। १९२५ के अष्टराज अंभोज में स्वर्गीय धानूलाल श्रीवास्तव ने उल्लेख किया है कि भोरमदेव में हर साल दो मेले का आयोजन हो रहा है।
जानिए, चैत्र कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को ही क्यों लगता है मेला?
जानकारों की मानें तो हर माह की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रख जाता है। यह व्रत महादेव को प्रसन्न करता है। प्रदोष व्रत के संबंध में मान्यता है कि जब चंद्र देव को रोग हुआ था, तब उन्होंने भगवान शिव की आराधना की थी और शिव की कृपा से ही उनका दोष दूर हुआ था। इसलिए प्रदोष व्रत रखने की मान्यता चली आ रही है।
पहले दिन लोक संगीत, पंडवानी व ओडिसी नृत्य की प्रस्तुति
भोरमदेव महोत्सव का शुभारंभ आज बैगा नृत्य से होगा। जो भोरमदेव मंदिर परिसर में होगा। मुख्य रूप से महोत्सव के पहले दिन ग्राम बरपानी बोड़ला के मोहतू बैगा व उनके साथी बैगा नृत्य की प्रस्तुति देंगे। जिले के स्कूली बच्चों का कार्यक्रम, जरहा नवागांव के रजउ साहू छत्तीसगढ़ी लोक संगीत, रायपुर की पूर्णश्री राउत ओडिसी नृत्य, भिलाई की ऋतु वर्मा पंडवानी, कोरबा के जाकिर हुसैन सुगम संगीत और रायपुर के सुनील तिवारी छत्तीसगढ़ी लोक गीत की प्रस्तुति देंगे।