बस्तर दशहरा काछनगादी पूजा 2025 : कुंवारी कन्या ने कांटों से बने झूले में लेटकर दी बस्तर राजपरिवार को दशहरा मनाने की अनुमति, जानें काछनगादी पूजा विधान रस्म और रहस्य
Bastar Dussehra Kachnagadi Puja 2025: A virgin girl lay down on a swing made of thorns and gave permission to the Bastar royal family to celebrate Dussehra.

Bastar Dussehra Kachnagadi Puja 2025 : 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरे में आज एक काछनगादी पूजा विधान रस्म है. इस रस्म में एक कुंवारी कन्या बेल के कांटों से बने झूले में लेटकर बस्तर राजपरिवार को दशहरा पर्व मनाने की अनुमति देती है. यह रस्म भंगाराम चौक में विधि-विधान के साथ निभाई गई.
इस साल भी इस रस्म को 10 साल की कुंवारी कन्या पीहू दास ने पूरी की है. पीहू का यह चौथा साल है. इस अवसर पर बस्तर राजपरिवार सदस्य कमलचंद्र भंजदेव ने बताया कि काछन देवी और रैला देवी दोनों ही राजपरिवार की बेटियां थी. जिन्होंने आत्महत्या की थी. आज ही के दिन पनका जाति की कुंवारी कन्या पर उनकी सवारी आती है.
बस्तर दशहरा काछनगादी रस्म
काछनदेवी से आज विधिवत दशहरा पर्व मनाने की अनुमति ली जाती है. आज राजपरिवार, मांझी चालकी, पुजारी और समस्त दशहरा समिति के सदस्य, शासन प्रशासन के लोग भंगाराम चौक में पहुंचते हैं. जिसके बाद कांटों पर झूलती देवी से अनुमति ली जाती है. इसके बाद दशहरा पर्व के सभी रस्मों में राजपरिवार की मौजूदगी रहती है.
मान्यता के मुताबिक काछन देवी जो रण की देवी कहलाती है. आश्विन अमावस्या के दिन पनका जाति की कुंवारी कन्या के ऊपर देवी की सवारी आती है. जिसके बाद कन्या को बेल के कांटों से बने झूले में लिटाया जाता है. उसके बाद काछनगुड़ी में वह अनुमति देती हैं. अनुमति मिलने के बाद बस्तर राज परिवार के सदस्य वापस राजमहल लौट जाते हैं. इस दौरान गुरु, मां के द्वारा धनकुली गीत गाया जाता है.
