Begin typing your search above and press return to search.

Basant Panchami In Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में अरंड की डाली गाड़कर बसंत पंचमी के दिन से होती है बसंतोत्सव 'होली' की औपचारिक शुरुआत,अनोखी है ये परंपरा...

Basant Panchami In Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में बसंत पंचमी के साथ एक और खास और अनोखी परंपरा जुड़ी हुई है जो है ' अरंड या एरंड की डाली गाड़ने की' । ये परंपरा इसे बसंतोत्सव 'होली' से जोड़ती है। प्रदेश भर के गांव-गांव में बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर माँ सरस्वती की पूजा के उपरांत विधि विधान से अरंड की डाली गाड़ी जाती है और इसी के साथ डाली के इर्द-गिर्द होलिका दहन के लिए लकड़ियां इकट्ठा करने की शुरुआत भी हो जाती है।

Basant Panchami In Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में अरंड की डाली गाड़कर बसंत पंचमी के दिन से होती है बसंतोत्सव होली की औपचारिक शुरुआत,अनोखी है ये परंपरा...
X
By Divya Singh

Basant Panchami In Chhattisgarh: रायपुर। विद्या की देवी माँ सरस्वती की उपासना का पर्व है बसंत पंचमी। खासकर विद्यार्थियों के लिए हर घर, मंदिर और शिक्षा संस्थान में माँ सरस्वती की विशेष पूजा की जाती है ताकि उन्हें माता से विद्या का वरदान मिले और वे एकाग्र मन और उच्च आत्मबल के साथ पढ़ाई करें। छत्तीसगढ़ में बसंत पंचमी के साथ एक और खास और अनोखी परंपरा जुड़ी हुई है जो है ' अरंड या एरंड की डाली गाड़ने की' । ये परंपरा इसे बसंतोत्सव 'होली' से जोड़ती है। प्रदेश भर के गांव-गांव में बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर माँ सरस्वती की पूजा के उपरांत विधि विधान से अरंड की डाली गाड़ी जाती है और इसी के साथ डाली के इर्द-गिर्द होलिका दहन के लिए लकड़ियां इकट्ठा करने की शुरुआत भी हो जाती है।

रायपुर के महामाया मंदिर में होती है खास पूजा

राजधानी रायपुर में बसंत पंचमी के मौके पर ऐतिहासिक महामाया मंदिर में बसंत पंचमी के दिन मंत्रोच्चार के साथ अरंड की डाली गाड़ी जाती है और होली के त्योहार की सांकेतिक शुरुआत की जाती है। पुरानी बस्ती स्थित इस प्राचीन मंदिर का निर्माण हैह्यवंशी राजाओं के शासनकाल में हुआ था।

उनकी कुलदेवी मां महामाया के साथ यहां मां सरस्वती के स्वरुप में मां सम्लेश्वरी देवी स्थापित हैं। जिनकी विशेष पूजा इस अवसर पर होती है। पुरानी बस्ती के साथ दूर-दूर से अभिभावक अपने बच्चों को इस अवसर पर यहां लाते हैं और माँ सरस्वती से उनके लिए तीक्ष्ण बुद्धि और ज्ञान का वरदान मांगते हैं।

पुजारी इस शुभ अवसर पर पूजा-पाठ के साथ अरंड के पेड़ की डाली को एक स्थान पर गाड़ते हैं और इसी के साथ होलिका दहन के लिए लकड़ी एकत्र करने की औपचारिक शुरुआत भी हो जाती है। इसके बाद आसपास के परिवार, युवा और बच्चे धीरे-धीरे पुराने टूटे-फूटे फर्नीचर, अनुपयोगी लकड़ियां यहां इकट्ठा करते रहते हैं जिनसे होलिका दहन के दिन होली जलाई जाती है।

अरंड की डाली गाड़ने का है ये खास उद्देश्य

प्रदेश भर में इसी तरह बसंत पंचमी के पावन अवसर पर होली के त्योहार की औपचारिक शुरुआत होती है। पुजारी बताते हैं कि अरंड की डाली का खास महत्व है। खरपतवार की तरह कहीं भी उगने वाला यह पौधा अपने आप में बहुत गुणकारी है। वैसे तो इसे जहरीला पौधा माना जाता है लेकिन इसका हर हिस्सा आयुर्वेद में खासा महत्वपूर्ण बताया गया है। अरंड की गाड़ी गई डाली होलिका दहन तक सूख जाती है जो जलने पर ऐसा धुआं छोड़ती है जो वातावरण में मौजूद रोगाणुओं का नाश करती है। इसलिये अरंड की डाली गाड़ने का खास महत्त्व है।

Divya Singh

दिव्या सिंह। समाजशास्त्र में एमफिल करने के बाद दैनिक भास्कर पत्रकारिता अकादमी, भोपाल से पत्रकारिता की शिक्षा ग्रहण की। दैनिक भास्कर एवं जनसत्ता के साथ विभिन्न प्रकाशन संस्थानों में कार्य का अनुभव। देश के कई समाचार पत्रों में स्वतंत्र लेखन। कहानी और कविताएं लिखने का शौक है। विगत डेढ़ साल से NPG न्यूज में कार्यरत।

Read MoreRead Less

Next Story