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Bamleshwari Mandir Dongargadh: पढ़िए…2200 साल पहले स्थापित मां बम्लेश्वरी मंदिर के बारे में, जो आप नहीं जानते होंगे

Bamleshwari Mandir Dongargadh: बम्लेश्वरी माता के अलावा यहां बजरंगबली मंदिर, नाग वासुकी मंदिर, शीतला और दादी मां जैसे और भी मंदिर स्थित है। मां बमलेश्वरी के आशीर्वाद से भक्तों को शत्रुओं को परास्त करने की शक्ति और विजय का वरदान मिलता है। मां के दरबार में पहुंचकर भक्तों को हर मुश्किलों से लड़ने की रास्ता दिखाई देता है।

Bamleshwari Mandir Dongargadh: पढ़िए…2200 साल पहले स्थापित मां बम्लेश्वरी मंदिर के बारे में, जो आप नहीं जानते होंगे
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By Sanjeet Kumar

Bamleshwari Mandir Dongargadh: रायपुर। सैकड़ों किलोमीटर से यहां पहुंचकर कोई 1100 सीढ़ियां पैदल चढ़कर यहां पहुंचता है। कोई रोप-वे से मां के दरबार पहुंचता है। लाखों की भीड़ से गुजरकर जब भक्त मंदिर के गर्भगृह के सामने मुख्य दरबार में पहुंचते हैं तो सामने नजर आता है सिंदूरी रंग में सजी मां बमलेश्वरी का भव्य रूप। भक्त मां का ये रूप देखते ही सब कुछ भूल जाते हैं। सारे दुख-दर्द भूलकर वो भक्ति में रम जाते हैं। लंबी-लंबी कतारों में खड़े भक्त घंटों यहां मां की एक झलक भर पाने का इंतजार करते नजर आते हैं। शारदीय नवरात्र में डोंगरगढ़ स्थित मां बम्लेश्वरी के दरबार में कुछ ऐसा ही नजारा है। आम दिनों में मां बम्लेश्वरी मंदिर का पट सुबह 4 बजे से ही खुल जाता है। दोपहर में 1 से 2 के बीच माता के द्वार का पट बंद किया जाता है। 2 बजे के बाद इसे रात के 10 बजे तक दर्शन के लिए खुला रखा जाता है। नवरात्रि में ये मंदिर 24 घंटे खुला रहता है। मां के दर्शन और आस्था के फूल चढ़ाने के लिए दूर-दूर से भक्तों का जत्था इस धाम में पहुंचता है। अतीत के अनेक तथ्यों को अपने गर्भ में समेटे ये पहाड़ी अनादिकाल से जगत जननी मां बमलेश्वरी देवी सर्वोच्च शाश्वत शक्ति है। बम्लेश्वरी माता के अलावा यहां बजरंगबली मंदिर, नाग वासुकी मंदिर, शीतला और दादी मां जैसे और भी मंदिर स्थित है। मां बमलेश्वरी के आशीर्वाद से भक्तों को शत्रुओं को परास्त करने की शक्ति और विजय का वरदान मिलता है। मां के दरबार में पहुंचकर भक्तों को हर मुश्किलों से लड़ने की रास्ता दिखाई देता है।


मंदिर के लिए 1100 सीढ़ियां

मां बम्लेश्वरी का दरबार 1600 मीटर ऊंची पहाड़ी पर है। श्रद्धालुओं को यहां तक पहुंचने के लिए 1100 सीढ़ियां चढ़नी पड़ेगी। हालांकि यहां रोपवे की भी व्यवस्था है। इसके अलावा आनलाइन दर्शन की भी सुविधा उपलब्ध करवाने की व्यवस्था की गई है। पहाड़ी पर स्थित मां बम्लेश्वरी का मुख्य मंदिर है। उन्हें बड़ी बम्लेश्वरी के रूप में जाना जाता है। पहाड़ के नीचे भी मां बम्लेश्वरी का एक मंदिर है। यह छोटी बम्लेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि वे मां बम्लेश्वरी की छोटी बहन हैं।


2200 साल पुराना है इतिहास

मां बम्लेश्वरी शक्तिपीठ का इतिहास करीब 2200 साल पुराना है। पहले डोंगरगढ़ कामाख्या नगरी कहलाती थी। कालांतर में डोंगरी और फिर डोंगरगढ़ कहलाने लगी। डोंगरगढ़ का इतिहास मध्य प्रदेश के उज्जैन से जुड़ा है। इसे वैभवशाली कामाख्या नगरी के रूप में जाना जाता था। मां बम्लेश्वरी को मध्य प्रदेश के उज्जयनी के प्रतापी राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी भी कहा जाता है। इतिहासकारों ने इस क्षेत्र को कल्चुरि काल का पाया है। मंदिर की अधिष्ठात्री देवी मां बगलामुखी हैं। उन्हें मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है। उन्हें यहां मां बम्लेश्वरी के रूप में पूजा जाता है। यहां की मूर्तिकला पर गोंड़ संस्कृति का पर्याप्त प्रभाव दिखता है। गोंड़ राजाओं के किले के प्रमाण भी यहां मिलते हैं।

राजा वीरसेन ने की मंदिर की स्थापना

किवदंती है कि करीब 2200 साल पहले यहां राजा वीरसेन का शासन था। वह प्रजापालक राजा थे, सभी उनका बहुत सम्‍मान करते थे। लेकिन एक दु:ख था उन्‍हें कि उनके कोई संतान नहीं थी। पंडितों के बताए अनुसार उन्‍होंने पुत्र रत्‍न की प्राप्ति के लिए शिवजी और मां दुर्गा की उपासना की। साथ ही अपने नगर में मां बम्‍लेश्‍वरी के मंदिर की स्‍थापना करवाई। इसके बाद उन्‍हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। उनके पुत्र हुए कामसेन जो कि राजा की ही तरह प्रजा के प्रिय राजा बने।

3 किलो सोने से सजा दरबार

इसी साल मार्च महीने में ऊपर पहाड़ी पर स्थित मां बम्लेश्वरी मंदिर गर्भगृह को स्वर्ण पत्तल से सुसज्जित किया गया है। जयपुर से आये 20 कारीगरों ने 16 दिनों में इस काम को पूरा किया। जिसमें करीब 3 किलो सोना लगा है। साथ ही आकृति को उभार देने के कार्य एम्बुजिंग वर्क हेतु इम्पोर्टेंट सेरेमिक कोटेड पेंट का उपयोग किया गया है। कलाकृतियों के निर्माण हेतु राजस्थानी कला का उपयोग किया गया है। जिसके बाद माता रानी का दरबार और गर्भगृह दिव्य दिखाई देता है।

बहुत कुछ है देखने लायक

मां बम्लेश्वरी के दरबार पहुंचने वालों को यहां और भी बहुत कुछ देखने को मिलता है। पर्यटन के लिहाज से पहाड़ी के नीचे छीरपानी जलाशय है। जहां बोटिंग होती है। भक्तों की सुविधा के लिए रोपवे भी है। डोंगरगढ़ की पहाड़ी से लगी दूसरी पहाड़ी में जैन धार्मिक स्थल चंद्रगिरि और प्रज्ञागिरि है। यहां अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन भी होता है।

ऐसे पहुंचें डोंगरगढ़

राजधानी रायपुर से 105 किलोमीटर दूर है डोंगरगढ़। जिला मुख्यालय राजनांदगांव से सड़क मार्ग से डोंगरगढ़ की दूरी 35 किलोमीटर है। यहां रेल और सड़क दोनों मार्गों से आसानी से पहुंचा जा सकता है। हावड़ा-मुंबई रेलमार्ग से भी जुड़े डोंगरगढ़ में हर साल चैत्र और क्वांर नवरात्रि पर सभी प्रमुख ट्रेनों को यहां स्टापेज दी जाती है।

Sanjeet Kumar

संजीत कुमार: छत्‍तीसगढ़ में 23 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। उत्‍कृष्‍ट संसदीय रिपोर्टिंग के लिए 2018 में छत्‍तीसगढ़ विधानसभा से पुरस्‍कृत। सांध्‍य दैनिक अग्रदूत से पत्रकारिता की शुरुआत करने के बाद हरिभूमि, पत्रिका और नईदुनिया में सिटी चीफ और स्‍टेट ब्‍यूरो चीफ के पद पर काम किया। वर्तमान में NPG.News में कार्यरत। पंड़‍ित रविशंकर विवि से लोक प्रशासन में एमए और पत्रकारिता (बीजेएमसी) की डिग्री।

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