Amar Nath Yatra Special: कब से शुरू हो रही है अमरनाथ यात्रा, जानिए बाबा बर्फानी की कथा और कैसे करें यात्रा
Amar Nath Yatra Special: अमरनाथ मंदिर धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है, जो दुनिया भर से भक्तों को आकर्षित करता है। पवित्र गुफा की सालाना यात्रा न केवल एक फिजिकल जर्नी है, बल्कि अपने स्व की खोज और भक्ति की आंतरिक खोज भी है। यह एक ऐसा अनुभव है, जो भगवान शिव और अमरनाथ मंदिर के आध्यात्मिक सार के साथ इस पवित्र तीर्थयात्रा पर जाने वालों के दिल और दिमाग पर हमेशा के लिए छा जाता है। इस बार अमरनाथ यात्रा 1 जुलाई 2023 से शुरू हो रही है। इस दिन शनि प्रदोष व्रत है। वहीं अमरनाथ यात्रा का समापन 31 अगस्त 2023 को सावन पूर्णिमा पर होगा। ये पूरी यात्रा 62 दिनों की होगी।
अमरनाथ यात्रा कैसे करें?
जम्मू और कश्मीर के हिमालय रेंज में स्थित अमरनाथ मंदिर में हर साल यहां लाखों की संख्या में भक्तजन भगवान शिव का आशीर्वाद लेने आते हैं। अमरनाथ गुफा तक की यह यात्रा भगवान शिव अमरनाथ गुफा की यात्रा न सिर्फ भगवान शिव के प्रकट होने का प्रतीक है, बल्कि शारीरिक सहनशक्ति की भी परीक्षा और एक गहरा आध्यात्मिक अनुभव भी है। आइए हम अमरनाथ मंदिर की रहस्यमय खूबसूरती और आध्यात्मिक महत्व के बारे में जानते हैं।
अमरनाथ यात्रा से जुड़ी खास बातें
अमरनाथ मंदिर की उत्पत्ति को हजारों साल पहले से जोड़कर देखा जाता है, जिसका उल्लेख प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने अमरनाथ की गुफा में ही पार्वती मां को अमरता के रहस्य के बारे में बताया था।
उनका देवी पार्वती के साथ एक खास बंधन जुड़ा था। इस मंदिर को 14वीं शताब्दी में प्रसिद्धि मिली, जब इसे एक मुस्लिम चरवाहे बूटा मलिक द्वारा फिर से खोजा गया। एक सपने से प्रेरित होकर उन्होंने इस पवित्र गुफा और भगवान शिव के बर्फीले लिंग की खोज की।
अमरनाथ यात्रा साल में एक बार होने वाली तीर्थयात्रा है। यह आम तौर पर जून से अगस्त के महीने के बीच होती है, जो हिंदू माह सावन में आता है। तीर्थयात्री पहलगाम या बालटाल में आधार शिविर से लगभग 46 किलोमीटर की कठिन यात्रा पर निकलते हैं, जिसमें खतरनाक इलाकों और अप्रत्याशित मौसम की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। इस यात्रा को इसलिए कठिन माना जाता है, क्योंकि इसमें खड़ी चढ़ाई और ऊबड़-खाबड़ रास्ते पड़ते हैं।
यात्रा के दौरान यात्रियों को कठिन ट्रेक पर ट्रेकिंग करनी पड़ती है, लोग मंत्र और भजन पढ़ते जाते हैं और भगवान शिव से आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करते हैं। इस रास्ते में बेहद हसीन लैंडस्केप देखने मिलते हैं, जिसमें बर्फ से ढके पहाड़, खूबसूरत घाटियां और कलकल बहती नदियां शामिल हैं।
अमरनाथ यात्रा का मुख्य आकर्षण अमरनाथ गुफा के अंदर पवित्र बर्फ से बने लिंग का दर्शन करना है। भक्तों का मानना है कि बर्फ का स्टैलेग्माइट चंद्रमा के घटने-बढ़ने के चरणों के साथ बढ़ता और कम होता है। यह एक ऐसी घटना है, जिसे लोग आश्चर्य के साथ जोड़कर देखते हैं। अमरनाथ गुफा के भीतर प्राकृतिक रूप से बने बर्फ की संरचनाएं हैं, जिससे यहां की खूबसूरती बढ़ जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग पूरी आस्था और भक्ति के साथ यात्रा पूरी करते हैं, उन्हें आध्यात्मिक मुक्ति और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
ऐसे जाये अमरनाथ गुफा
अमरनाथ गुफा का नजदीकी एयरपोर्ट श्रीनगर है, जो भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। एयरपोर्ट से पहलगाम या बालटाल बेस कैंप तक पहुंचने के लिए टैक्सी किराए पर लिया जा सकता है। यदि आप जम्मू से रोड ट्रिप कर रहे हैं, तो आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या पहलगाम या बालटाल के लिए बस ले सकते हैं। जम्मू से पहलगाम की यात्रा में लगभग 8 से 9 घंटे लग जाते हैं, जबकि जम्मू से बालटाल तक की यात्रा में लगभग 10 से 11 घंटे लगते हैं। अमरनाथ गुफा का नजदीकी रेलवे स्टेशन जम्मू तवी रेलवे स्टेशन है। यहां से आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या पहलगाम या बालटाल के लिए बस ले सकते हैं।
अमरनाथ गुफा का पारंपरिक और सबसे पॉपुलर रास्ता पहलगाम से होकर जाता है। पहलगाम से आप पैदल या टट्टू या पालकी किराए पर लेकर यात्रा शुरू कर सकते हैं। यह ट्रेक लगभग 46 किलोमीटर लंबा है और इसे पूरा होने में लगभग 2 से 3 दिन लगते हैं। यह सलाह दी जाती है कि भीड़ से बचने के लिए सुबह जल्दी शुरुआत कारण बेहतर है और बीच बीच में ब्रेक जरूर लेना चाहिए।
अमरनाथ गुफा तक पहुंचने का दूसरा रास्ता बालटाल से होकर जाता है। यह रास्ता छोटा है, लेकिन बहुत चैलेंजिंग है, क्योंकि इसमें खड़ी चढ़ाई और उबड़-खाबड़ इलाका शामिल है। बालटाल से अमरनाथ गुफा तक पहुंचने के लिए ट्रेकिंग कर सकते हैं या टट्टू किराये पर ले सकते हैं। बालटाल से ट्रेक लगभग 14 किलोमीटर लंबा है और एक दिन में पूरा किया जा सकता है।
जानिए अमरनाथ की कथा
इस कथा का नाम अमरकथा इसलिए है क्योंकि इसको सुनने से शिवधाम की प्राप्ति होती है ऐसा कहा गया है। कहा जाता है कि यह वह परम पवित्र कथा है जिसको सुनने वालों को अमरपद की प्राप्ति होती है तथा वे अमर हो जाते हैं। यह कथा श्री शंकर भगवान ने इसी गुफा में (अमरनाथ की गुफा में) भगवती पार्वतजी जी को सुनाई थी। इसी कथा को सुनकर ही श्री शुकदेव जी अमर हो गए थे। जब भगवान शंकर भगवती पार्वती को यह कथा सुना रहे थे तो वहां एक तोते का बच्चा भी इस परम पवित्र कथा को सुन रहा था और इसे सुनकर फिर उस तोते के बच्चे ने श्री शुकदेव स्वरूप को पाया था। ‘शुक’ को वैसे भी संस्कृत में ‘तोते’ को कहते हैं और इसी कारण से बाद में फिर मुनि शुकदेव के नाम से संसार में प्रसिद्ध हुए थे।
जैसा कि कहा जाता है कि शुकदेव जब नैमिषारण्य गए तो वहां ऋषियों-मुनियों ने उनका बड़ा आदर सत्कार किया और उनसे अमर कथा सुनाने का आग्रह किया और फिर क्या था ‘अभिमानी’ शुक ने अपनी तारीफ में पढ़े गए कसीदों से खुश होकर अमर कथा सुनानी आरंभ कर दी।
कहा जाता है कि जैसे ही कथा आरंभ हुई तो कैलाश पर्वत, क्षीर सागर और ब्रह्मलोक भी हिलने लगे। ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा समस्त देवता उस स्थल पर पहुंचे जहां पर अमर कथा चल रही थी। तब भगवान शंकर को स्मरण हुआ कि यदि इस कथा को सुनने वाले अमर हो गए तो पृथ्वी का संचालन बंद हो जाएगा और फिर देवताओं की प्रतिष्ठा में अंतर आ जाएगा। इसीलिए भगवान श्री शंकर क्रोध में आ गए और उन्होंने श्राप दिया कि जो इस कथा को सुनेगा वह अमर नहीं होगा परंतु वह शिव लोक अवश्य प्राप्त करेगा।