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Ahoi Ashtami ka Mahatav: अहोई अष्टमी के दिन इस कुंड में जरुर करें स्नान, मिलेगा संतान, जानिए इस दिन का महत्व और कथा

Ahoi Ashtami ka Mahatav: अहोई अष्टमी कार्तिक मास की अष्टमी को मनाते है, जानते है इस दिन का महत्व

Ahoi Ashtami ka Mahatav: अहोई अष्टमी  के दिन इस कुंड में जरुर करें स्नान, मिलेगा संतान, जानिए इस दिन का महत्व और कथा
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By Shanti Suman

Ahoi Ashtami ka Mahatav: अहोई अष्टमी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली अष्टमी को अहोई अष्टमी कहा जाता है। इस साल यह अष्टमी ५ नवंबर के दिन स्त्रियां अपनी संतान की दीर्घायु और स्वास्थ्य के लिए व्रत कर अहोई माता का पूजन करती है। लेकिन क्या ये जानते है कि जिन दंपतियों को संतान नहीं होती है अहोई अष्टमी व्रत उनके लिए भी बहुत उपयोगी है।

अहोई अष्टमी में राधाकुंड का महत्व

अहोई अष्टमी के शुभ दिन राधाकुंडा में डुबकी लगाना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। जिन जोड़ों को गर्भ धारण करने में समस्याएं हैं, वो राधा रानी से आशीर्वाद मांगने के लिए यहां आती हैं। ऐसा माना जाता है कि अहो अष्टमी के शुभ दिन राधाकुंड टैंक में एक पवित्र डुबकी जोड़ों को एक बच्चे को गर्भ धारण करने में मदद करता है। इसी मान्यता के अनुसार हजारों जोड़े हर साल यहां आते हैं और राधा कुंड में एक साथ पवित्र डुबकी लगाते हैं।

ऐसा माना जाता है कि राधाकुण्ड में स्नान करने से निसंतान स्त्रियों को संतान की प्राप्ति होती है। राधाकुण्ड में स्नान अर्धरात्रि समय यानी निशिता समय के समय किया जाता है। इसलिए स्नान रात आधी रात के दौरान शुरू होता है और रात भर जारी रहता है। स्नान करने के बाद यहां राधाकुण्ड पर कच्चा सफेद कद्दू यानी पेठा चढ़ाने का विधान है। देवी के इस भोग को यहां कुष्मांडा कहा जाता है। कुष्मांडा का भोग लगाने के लिए उसे लाल कपड़े में लपेट कर दिया जाता है। जल्द ही गर्भ धारण करने के लिए देवी राधा रानी के आशीर्वाद की तलाश करने के लिए, जोड़े पानी के टैंक में खड़े होने के बाद पूजा करते हैं और कुष्मांडा, सफेद कच्चा कद्दू चढ़ाते हैं जिसे प्रसिद्ध रूप से पेठा कहा जाता है। लाल कपड़े के साथ इसे सजाने के बाद कुष्मांडा की पेशकश की जाती है।

अहोई अष्टमी मुहूर्त विधि

शुभ मुहुर्त- कार्तिक कृष्ण पक्ष में चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी को मनायी जानी चाहिए, इसलिए 5 नवंबर को अहोई अष्टमी मनायी जाएगी। सायं - 5ः46 से 7ः02बजे तक विशेष मुहुर्त

इस दिन राधाकुण्ड में स्नान पति-पत्नी दोनों एक साथ करते है। पति या पत्नी में से किसी एक के स्नान करने से संतान प्राप्ति का आशिर्वाद नहीं मिलता है। संतान प्राप्ति के लिए स्नान को अर्धरात्रि में श्रेष्ठ माना गया है। रात्रि में स्नान करते समय पति-पत्नी दोनों साथ डुबकी लगाएं। राधाकुण्ड में स्नान करने के बाद कृष्ण कुण्ड में स्नान करना आवश्यक है। अन्यथा स्नान का लाभ नहीं मिलता है। स्नान के बाद सफेद कद्दू या पेठे के भोग राधा रानी को लगाएं। कुण्ड में स्नान करते समय साबुन-शैम्पू आदि का प्रयोग न करें। स्नान के बाद तौलिया आदि से शरीर न साफ करें। स्नान के बाद दान अवश्य करें।सुबह को जल्दी उठने और स्नानादि दैनिक कार्यों से निपटने के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है। यह व्रत पूरी तरह से निर्जल होता है। शाम को अहोई अष्टमी की पूजा की जाती है। अहोई माता का चित्र बनाया जाता है विधि विधान से उनका पूजन करें। अहोई माता से प्रार्थना करें कि उनकी कृपा दृष्टि आपकी सभी संतान पर बनी रहे। पौराणिक कथा के अनुसार अहोई माता बच्चों की सुरक्षा करती है। इसलिए माताएं इनकी पूजा अर्चना करती है।

अहोई अष्टमी की कथा

कथा ऐसा माना जाता है कि अरिष्टासुर नाम का राक्षस गाय के बछड़े का रूप धरके श्रीकृष्ण से युद्ध करने आया था। राक्षस होने के कारण उसका वध करना आवश्यक था। श्रीकृष्ण ने ऐसा ही किया। गाय के रूप में आएं राक्षस का वध करने के कारण श्रीकृष्ण को गौ हत्या का पाप लगा। जिस कारण राधारानी ने उन्हें उस पाप से मुक्ति के लिए इसलिए श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से कुंड खोदा और उसमें स्नान किया। इसे श्याम कुंड का नाम दिया गया। राधा रानी हमेशा कृष्ण के साथ रहती है इसलिए राधा जी ने श्याम कुंड के बगल में अपने कंगन से एक और कुंड खोदा और उसमें स्नान किया। इसे राधा कुंड का नाम दिया गया। इसके बाद इसका उल्लेख ब्रह्म पुराण व गर्ग संहिता के गिर्राज खंड में मिलता है कि श्री कृष्ण ने राधा जी को यह वरदान दिया कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी की अर्धरात्रि में जो भी यहां स्नान करेगा उसे पुत्र की प्राप्ति होगी। तभी से इस विशेष तिथि पर पुत्र प्राप्ति की इच्छा से दंपति राधाकुंड में स्नान कर राधा रानी से आशीर्वाद लेते है। जिन दंपतियों की पुत्र प्राप्ति की इच्छा राधा रानी पूरी करती है। वो राधाकुण्ड में स्नान कर ब्रज की अधिष्ठात्री देवी श्री राधा रानी सरकार का धन्यवाद करते है।

अहोई माता की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुार बहुत समय पहले एक साहूकार हुआ करता था। उसके सात पुत्र और एक पुत्री थी। दीपावली पर्व नजदीक था। साहूकार के घर की साफ सफाई होनी थी। जिसके लिए रंग आदि का कार्य चल रहा था। इस कार्य के लिए साहुकार की पुत्री जंगल में गई और मिट्टी लाने के लिए उसने कुदाल से मिट्टी खोद ली। मिट्टी खोदते समय कुदाल स्याह के बच्चे को लग गई, जिससे उसकी मौत हो गई। तब ही स्याह ने साहूकार के पूरे परिवार को संतान शोक श्राप दे दिया। जिसके बाद साहूकार के सभी सभी पौत्रों का भी निधन हो गया।

इससे साहूकार के सभी सात बेटों की बहुएं परेशान हो गई। साहूकार की बहुएं और पुत्री मंदिर में गई और वहां पर अपना दुख देवी के सामने रखा। कहा जाता है कि तभी वहां एक संत आए, जिन्होंने सातों बहुओं को अष्टमी का व्रत रखने के लिए कहा। इन सभी ने पूरी श्रद्धा के साथ अहोई माता का व्रत किया। जिससे स्याह का क्रोध शांत हो गया और उनके खुश होते ही उसने अपना श्राप वापस ले लिया। इस प्रकार साहूकार के सभी सातों पुत्रों व पुत्री की सभी संतान जीवित हो गई।




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