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आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कैसे करे: बहुत चमत्कारी है ये स्तोत्र, सफलता के लिए इस दिन से शुरू करें पाठ

aditya hridaya stotra आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कैसे करे: बहुत चमत्कारी है ये स्तोत्र, सफलता के लिए इस दिन से शुरू करें पाठ

आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कैसे करे aditya hridaya stotra
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Aditya Hridaya Stotra

By Shanti Suman

aditya hridaya stotra

आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ: सूर्य को धर्म ग्रंथों में सभी देवों के प्रमुख स्थान मिला है। सूर्य की पूजा से व्यक्ति अपने जीवन के हर क्षेत्र में विजय प्राप्त करता है। लोग सूर्य को जल अर्पित करने के लिए नदियों में स्नान करते हैं, मंत्रों का उच्चारण करते हैं।

आदित्यहृदय स्तोत्र का महत्व और प्रभाव साधारणतः हिंदू धर्म में मान्यता प्राप्त है। यह स्तोत्र सूर्य देव की प्राप्ति, प्रसन्नता, और शक्ति के लिए प्रार्थना करता है और इसे पढ़ने से मान्यता है कि जीवन में अनेक समस्याओं का समाधान होता है।

आदित्यहृदय स्तोत्र का प्राचीन काल से ही उपासना एवं पाठ किया जाता रहा है। इसका महत्व और प्रभाव आज भी अद्वितीय है। यह स्तोत्र अगस्त्य ऋषि द्वारा लिखा गया है और श्रीराम ने इसे सुनकर रावण को पराजित किया था।

आदित्यहृदय स्तोत्र के पाठ के द्वारा माना जाता है कि सूर्य देव की कृपा से मानव जीवन में सफलता, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र सूर्य देव को प्रसन्न करने के साथ ही विभिन्न शत्रुओं और अशुभ ग्रहों के प्रभाव को भी दूर करता है।

आदित्यहृदय स्तोत्र के नियमित पाठ से मनुष्य को मानसिक स्थिति में स्थिरता, हृदय रोगों का निवारण, और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त, यह स्तोत्र जीवन में समृद्धि और विजय की प्राप्ति में सहायक होता है।

संक्षेप में कहें तो, आदित्यहृदय स्तोत्र का नियमित पाठ करने से सूर्य देव की कृपा प्राप्ति होती है और जीवन में समस्त समस्याओं का समाधान होता है। यह स्तोत्र आत्मविश्वास, सकारात्मकता, और समृद्धि का स्रोत है जो हर व्यक्ति को अपने जीवन में उन्नति की ओर ले जाता है।

आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ

मकर संक्रांति या किसी भी संक्रांति के दिन आदित्य स्तोत्र का पाठ करने का महत्व अत्यंत उच्च माना जाता है। यह एक प्राचीन परंपरा है जिसमें सूर्य भगवान की पूजा और स्तुति का महत्व बताया जाता है। इस दिन का चयन सूर्य की ऊर्जा के महत्व को दर्शाता है, जो हमारे जीवन में ऊर्जा और प्रेरणा का स्रोत है।

आदित्य स्तोत्र का पाठ करने से हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होता है। यह हमें संतुलित और ऊर्जावान बनाता है, हमारी सोच को सकारात्मक दिशा में प्रेरित करता है और हमें समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त करने की प्रेरणा देता है।

आदित्य हृदय स्तोत्र का नियमित पाठ करने से हमें अज्ञात से लाभ मिलता है। यह हमें मानसिक शांति और आत्मविश्वास प्रदान करता है, जिससे हम सभी कार्यों में प्रफुल्लित होते हैं।

आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से हमें नौकरी में पदोन्नति, धन की प्राप्ति, आनंद और सफलता मिलती है। यह हमारी सभी मनोकामनाओं को पूरा करता है और हमें जीवन में आनंद की अनुभूति कराता है।

इसलिए, मकर संक्रांति के दिन या किसी भी संक्रांति के दिन आदित्य स्तोत्र का पाठ करना हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और विजय की अनुभूति के लिए एक अच्छा और शुभ तरीका है। इससे हमारी जीवन में समृद्धि, सुख, और सफलता की ऊर्जा भर जाती है।

आदित्य ह्दय स्तोत्र का संपूर्ण पाठ...

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्‌ । रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्‌ ॥1॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्‌ । उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम्‌ । येन सर्वानरीन्‌ वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्‌ । जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्‌ ॥4॥

सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम्‌ । चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्‌ ॥5॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्‌ । पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्‌ ॥6॥

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: । एष देवासुरगणांल्लोकान्‌ पाति गभस्तिभि: ॥7॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥

पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: । वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥9॥

आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान्‌ । सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥

हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान्‌ । तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्‌ ॥11॥

हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: । अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥12॥

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: । घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥

आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:। कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥14॥

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: । तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्‌ नमोऽस्तु ते ॥15॥

नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: । ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥16॥

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: । नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥17॥

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: । नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे । भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने । कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥

तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे । नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥

नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: । पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: । एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्‌ ॥23॥

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च । यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च । कीर्तयन्‌ पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम्‌ । एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥

अस्मिन्‌ क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि । एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्‌ ॥27॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्‌ तदा ॥ धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान्‌ ॥28॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्‌ । त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्‌ ॥29॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम्‌ । सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्‌ ॥30॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: । निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥

।।सम्पूर्ण ।।

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