Nalanda University Ka Itihas: नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास; 600 वर्षों तक विश्व को ज्ञान देने वाला यह केंद्र कैसे बना बख्तियार खिलजी के विनाश का शिकार, जानिए नालंदा विश्वविद्यालय की गौरवशाली गाथा
Nalanda University Ka Itihas: प्राचीन भारत के इतिहास में नालंदा विश्वविद्यालय को शिक्षा के सबसे प्रतिष्ठित केंद्रों में गिना जाता है। यह स्थान मात्र भारत ही नहीं, बल्कि समस्त विश्व में बौद्धिक चेतना और ज्ञान का प्रतीक बन चुका था।

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Nalanda University Ka Itihas: प्राचीन भारत के इतिहास में नालंदा विश्वविद्यालय को शिक्षा के सबसे प्रतिष्ठित केंद्रों में गिना जाता है। यह स्थान मात्र भारत ही नहीं, बल्कि समस्त विश्व में बौद्धिक चेतना और ज्ञान का प्रतीक बन चुका था। कहा जाता है कि इस विश्वविद्यालय में एक साथ 10,000 से अधिक छात्र अध्ययन करते थे और देश-विदेश से आए 2,500 से अधिक आचार्य उन्हें विभिन्न विषयों की शिक्षा प्रदान करते थे। यह परिसर 600 वर्षों तक विद्या का भव्य केंद्र बना रहा।
गुप्त काल में हुई थी स्थापना, हर्षवर्धन और पाल शासकों ने दिया संरक्षण
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त वंश के प्रसिद्ध सम्राट कुमारगुप्त प्रथम द्वारा 425 से 470 ईस्वी के बीच की गई थी। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद भी यह संस्थान हर्षवर्धन और पाल वंश जैसे शक्तिशाली राजाओं के शासनकाल में फला-फूला। इन शासकों ने इसे संरक्षण और आर्थिक सहायता देकर शिक्षा की ज्योति को जलाए रखा। नालंदा, उस युग में भी एक ऐसा केंद्र था जहाँ तिब्बत, चीन, जापान, कोरिया, मंगोलिया और फारस जैसे देशों से विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करने आया करते थे।
पुस्तकालय और वास्तु: 9 मंज़िल की लाइब्रेरी में थे 3 लाख से अधिक ग्रंथ
नालंदा विश्वविद्यालय का सबसे अद्भुत पहलू इसका विशाल पुस्तकालय था, जिसे "धर्मगंज" कहा जाता था। यह नौ मंज़िला भवन तीन प्रमुख भागों में विभाजित था: रत्नसागर, रत्नोदधी और रत्नरंजक। कहा जाता है कि इस पुस्तकालय में लगभग तीन लाख से भी अधिक दुर्लभ पांडुलिपियाँ और ग्रंथ रखे गए थे। इसके अतिरिक्त परिसर में सात विशाल हॉल और 300 से अधिक अध्ययन कक्ष थे। छात्रों और शिक्षकों के निवास हेतु पृथक सुविधाएं उपलब्ध थीं।
विविध विषयों की शिक्षा
प्राचीन नालंदा में सिर्फ धार्मिक या बौद्ध शिक्षा ही नहीं दी जाती थी, बल्कि साहित्य, दर्शन, गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, वास्तु, भाषा विज्ञान, इतिहास और अर्थशास्त्र जैसे विषयों की भी गहन शिक्षा दी जाती थी। यहाँ के शिक्षक अपने समय के महान विद्वान थे और उनके द्वारा लिखित ग्रंथों को विश्वभर में सम्मान प्राप्त था। पुस्तकालय में इन विषयों से संबंधित असंख्य हस्तलिखित ग्रंथ संरक्षित थे।
बख्तियार खिलजी का हमला: नालंदा की बर्बादी की कहानी
1200 ईस्वी के आसपास तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने बंगाल और बिहार पर अपना वर्चस्व स्थापित करने हेतु भीषण आक्रमण किया। इतिहासकारों के अनुसार, खिलजी की सेना ने नालंदा विश्वविद्यालय पर धावा बोला, वहाँ के बौद्ध भिक्षुओं की हत्या की और पुस्तकालय सहित पूरे परिसर को आग के हवाले कर दिया। यह आग इतनी भयानक थी कि ग्रंथों में कई महीनों तक धुआं उठता रहा। इस विध्वंस ने एक समृद्ध ज्ञान की परंपरा को समाप्त कर दिया, जिसकी भरपाई आज तक नहीं हो सकी है।
नालंदा का पुनर्जीवन
21वीं सदी में भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय को पुनः जीवित करने का बीड़ा उठाया। 17 देशों के सहयोग से एक नया अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, नालंदा के प्राचीन खंडहरों से कुछ दूरी पर राजगीर की तलहटी में स्थापित किया गया है। यह नया परिसर एक ग्रीन कैंपस है, जिसमें सौर ऊर्जा और जल संरक्षण जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग होता है। यह संस्थान फिर से विश्व शिक्षा मानचित्र पर भारत की गौरवशाली पहचान को स्थापित करने की दिशा में अग्रसर है।
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास हमें यह सिखाता है कि ज्ञान और शिक्षा की शक्ति किसी भी समाज की रीढ़ होती है। नालंदा का पतन यह भी दर्शाता है कि जब शिक्षा संस्थानों को नष्ट किया जाता है, तो एक समृद्ध संस्कृति और सभ्यता भी ढह जाती है। वर्तमान समय में नालंदा का पुनर्निर्माण न केवल अतीत की विरासत को सहेजने की पहल है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश भी देता है कि भारत फिर से विश्वगुरु बनने की दिशा में अग्रसर है।
