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Film Aandhi Unknown Facts: भावनाओं का ज्वार 'आंधी', जिसे इंदिरा सरकार ने बैन कराया था

Film Aandhi Unknown Facts: कश्मीर के अनंतनाग जिले में मौजूद आठवीं सदी के गौरवशाली अतीत की गाथा कहता मार्तंड सूर्य मंदिर। इस उजाड़ खंडहर के बीच दरकती परछाईं के बीच टहलते फिल्म के नायक संजीव कुमार और नायिका सुचित्रा सेन।

Film Aandhi Unknown Facts: भावनाओं का ज्वार ‘आंधी’, जिसे इंदिरा सरकार ने बैन कराया था
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By NPG News

कृति तिवारी की टिप्पणी

Film Aandhi Unknown Facts: भावनाओं की 'आंधी' कश्मीर के अनंतनाग जिले की आठवीं सदी के गौरवशाली अतीत की गाथा कहता मार्तंड सूर्य मंदिर। इस उजाड़ खंडहर में दरकती परछाईं के बीच टहलते फिल्म के नायक संजीव कुमार और नायिका सुचित्रा सेन। बिना कुछ कहे, बिना कुछ बोले, एक-दूसरे को देखते हुए हमकदम होते हैं। बालों में कनपटी पर आई चांदी को देख चढ़ते-उतरते मनोभाव। बेइरादा खंडहर के बीच पत्थरों में उसके और अपने अतीत को महसूस करते, टहलते सुचित्रा सेन और संजीव कुमार। पार्श्व में बजती हुई सितार की मधुर धुन धीरे-धीरे गीत के मुखड़े पर आती है, 'तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं... तेरे बिना ज़िंदगी भी लेकिन ज़िंदगी तो नहीं...।' संजीव कुमार और सुचित्रा सेन नौ साल लंबे अंतराल के बाद मिल रहे हैं। उनके चेहरे पर उभरते मनोभावों में उनकी जीवंत अदाकारी देखते ही बनती है। उनकी भावनाओं में जो विरोधाभास और दुख-सुख के अहसास हैं, उन्हें गुलजार का जादुई शब्द मिलता है। पंचम की धुन पर लता-किशोर के आवाज की पाकीजा खनक फिल्म संगीत का नया इतिहास रचते हैं। पंचम ने इस गीत की धुन को दुर्गा पूजा महोत्सव के लिए तैयार किया था। जिसके बोल थे- जेते जेते पाथे होलो देरी। लेकिन जब 'आंधी' के लिए उन्हें कुछ अलग धुन देनी थी, तो यही धुन उन्होंने गुलजार को दी, जिस पर गुलजार ने ये ऐतिहासिक गीत लिख दिया। इस गाने में संगीत की लय ऐसी है कि गाने के बीच में पंचम दा किसी तरह की रुकावट नहीं चाहते थे। लेकिन गुलजार के आगे उन्हें झुकना पड़ा। गीत के बीच नायक-नायिका के संवाद को गुलजार ने ऐसे शब्द दिए कि उनकी खूबसूरती और बढ़ गई । जेके कहता है- `ये बेलें नहीं हैं, अरबी में आयतें लिखी हैं। इन्हें दिन में देखना, रात में नहीं दिखतीं'। आरती के होठों पर दर्द और दुख घुलकर बोल फूटते हैं– `कहां आ पाऊंगी दिन में?' जेके जवाब में कहता है-`ये चांद रात में देखना, ये दिन में नहीं निकलता। बीच में अमावस आ जाती है। वैसे तो अमावस 15 दिनों की होती है, लेकिन इस बार...! डबडबायी आंखों से जेके की आंख में डूबती हुई आरती अधूरा वाक्य पूरा करती है- नौ बरस लंबी थी न..?' खूबसूरत गाने के बीच ये बातें उनके भावनाओं की आंधी और भी तेज कर देती है। फिल्म के दो और गीत भी इतने ही खूबसूरत हैं। इन्हें भी कश्मीर की वादियों में फिल्माया गया है। 'तुम आ गए हो नूर आ गया है..' और 'इस मोड़ से जाते हैं..' गाने को गुलजार ने इस तरीके से पर्दे पर उतारा है कि लोगों को आज भी इसे देखकर और सुनकर लगता है कि जैसे उनकी ही जिंदगी कैमरे की रील पर चल रही है। लोगों के दिलों में आज भी ये खूबसूरत गीत गूंजते हैं और वे भावों में डूबने-उतरने लगते हैं। आज से 48 साल पहले आई 'आंधी' अपने समय से आगे की फिल्म थी। जिन्होंने भी ये फिल्म देखी है उनके जेहन में आज भी संजीव कुमार और सुचित्रा सेन की बेमिसाल अदाकारी जज्ब है। अब भी अगर आप ये फिल्म देखते हैं तो 48 साल पहले की सियासी करवट की हर कड़ी आंखों के सामने फिल्म के रील की तरह ही आती जाती है।


कमर्शियल और आर्ट फिल्मों के बीच की गिराई दीवार

'आंधी' 13 फरवरी, 1975 को रिलीज हुई थी। लेकिन भारतीय सिनेमा में सचमुच की आंधी साबित हुई इस फिल्म में भावनाओं का ऐसा ज्वार है, जो आज भी देखने वालों को आंधी की तरह अपने साथ बहाकर ले जाता है। 'आंधी' की गिनती हिंदी सिनेमा की क्लासिक्स में होती है। लेकिन आमतौर पर जैसा हर ऐसी फिल्मों के साथ होता है, वितरकों को ये फिल्म की सही कीमत समझ नहीं आई। कमर्शियल और आर्ट फिल्मों के बीच की दीवार गिराती 'आंधी' जब पर्दे पर आई तो दर्शकों ने इसे हाथोंहाथ लिया। फिल्म मशहूर साहित्यकार कमलेश्वर के लिखे उपन्यास 'काली आंधी' पर आधारित इस फिल्म की पटकथा और संवाद गुलजार ने लिखे और डायरेक्शन करते हुए उनके साथ पूरा न्याय भी किया।

इंदिरा सरकार ने लगाया था बैन

लेकिन फिल्म अपने नाम की तरह कई तरह की 'आंधी' लेकर आई थी। फिल्म को प्रचार देने के लिए कुछ वितरकों ने इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और फिरोज की प्रेम कहानी बताकर कई जगह पोस्टर भी चिपकवा दिए। जिनमें लिखा था कि 'परदे पर देखिए अपनी प्रधानमंत्री को'। एक अखबार में विज्ञापन भी छप गया कि 'आंधी' आजाद भारत की एक महान महिला नेता की कहानी है। जिसके बाद दिल्ली और मुंबई से लेकर पूरे देश में इस फिल्म को लेकर बवाल मच गया। गुजरात में चुनाव होने वाले थे, लिहाजा इंदिरा गांधी ने अपने सूचना और प्रसारण मंत्री इंद्र कुमार गुजराल के साथ ये फिल्म देखी भी। फिल्म के कुछ सीन्स में सुचित्रा सेन शराब और सिगरेट पीते नजर आ रही थीं। उनके हाव-भाव और लुक इंदिरा गांधी जैसे ही थे। नतीजा ये हुआ कि सरकार ने फिल्म के 20 हफ्ते चलने के बाद 'आंधी' पर बैन लगा दिया। इस तरह फिल्म सिल्वर जुबली नहीं मनाने से चूक गई। फिल्म में कुछ फेरबदल किए गए कुछ सीन्स भी काटे गए। इमरजेंसी के बाद सरकार बदल गई और जब कुर्सी पर जनता पार्टी की सरकार बैठी तो उसने 'आंधी' पर लगा बैन हटा दिया। साथ ही ये फिल्म दूरदर्शन पर भी दिखाई गई।


'आंधी' से उजड़ा 'बसेरा'

'आंधी' की शूटिंग के दौरान गुलजार और राखी अलग हुए और उनका बसेरा उजड़ गया। 16 साल की उम्र में बंगाली फिल्म निर्देशक और पत्रकार अजय बिस्वास से शादी के बाद राखी ने गुलजार को जिंदगी का हमसफर बनाया। लेकिन फिल्म की शूटिंग के बाद एक रात संजीव कुमार और सुचित्रा सेन के बीच हुए विवाद में गुलजार बीच में आ गए। यहीं राखी और गुलजार के बीच तकरार इस हद तक बढ़ी कि जिस घर का नाम उन्होंने 'बसेरा' रखा था, वो उजड़ गया।

ये है कहानी

'आंधी' पॉलिटिकल ड्रामा फिल्म है। जिसमें सुचित्रा सेन यानी आरती की कहानी है, जो बहुत महत्वाकांक्षी है। संजीव कुमार यानी जेके एक होटल मैनेजर है। एक दिन उसकी जिंदगी में राजनेता की शराबी बेटी आरती आती है। एक छोटे से समारोह में दोनों शादी कर लेते हैं। लेकिन सफलता के लिए आरती सामाजिक, राजनीतिक, पारिवारिक, व्यक्तिगत जीवन दांव पर लगा देती है। अपने पति और बेटी से किनारा कर लेती है। सालों बाद जेके और आरती फिर से मिलते हैं। अलगाव के बावजूद दोनों के बीच का प्रेम और अहसास नहीं मरता। वे एक-दूसरे के करीब आते हैं। लेकिन अपने कैरियर को देखते हुए आरती अपने मनोभावों और प्रेम का गला घोंट देती है। आरती देवी के किरदार में खादी साड़ी और आंखों पर चश्मे में सुचित्रा सेन कई सीन्स में वाकई इंदिरा गांधी सी नजर आती हैं। फिल्म में उनकी लोकप्रियता ही निशाने पर है। फिल्मफेयर अवॉर्ड में ये फिल्म पांच श्रेणियों में नामांकित हुई। लेकिन बेहतरीन अभिनय के लिए संजीव कुमार को पुरस्कार भी मिला और अभिनेत्री सुचित्रा सेन भी कई पुरस्कारों से नवाजी गई।

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