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Ujjain me ghumne ke Famous jagah: उज्जैन में घूमने के प्रमुख पर्यटन स्थल, महाकाल दर्शन के बाद में यहां नहीं गए तो समझ लेना यात्रा अधूरी..

Ujjain me ghumne ke Famous jagah: उज्जैन भारत की सबसे प्राचीन और पवित्र नगरियों में से एक है जिसे प्राचीन काल में अवंतिका के नाम से जाना जाता था। यह स्थान एक तीर्थस्थल के साथ साथ कला और शिक्षा का मुख्य केंद्र है। क्षिप्रा नदी के पावन तट पर बसा यह नगर भगवान शिव की आराधना का मुख्य स्थान माना जाता है। आइए जानते हैं उज्जैन में घूमने के प्रमुख पर्यटन स्थल,...

Ujjain me ghumne ke Famous jagah: उज्जैन में घूमने के प्रमुख पर्यटन स्थल, महाकाल दर्शन के बाद में यहां नहीं गए तो समझ लेना यात्रा अधूरी..
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By Chirag Sahu

Ujjain me ghumne ke Famous jagah: उज्जैन भारत की सबसे प्राचीन और पवित्र नगरियों में से एक है जिसे प्राचीन काल में अवंतिका के नाम से जाना जाता था। यह स्थान एक तीर्थस्थल के साथ साथ कला और शिक्षा का मुख्य केंद्र है। क्षिप्रा नदी के पावन तट पर बसा यह नगर भगवान शिव की आराधना का मुख्य स्थान माना जाता है। उज्जैन का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। यह स्थान मौर्य तथा गुप्त साम्राज्य के राजाओं का महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्र रह चुका है। हिंदू धर्म में मोक्ष प्रदान करने वाले सप्त पुरियों में से एक होने के कारण उज्जैन का धार्मिक महत्व काफी ज्यादा है। अगर आप भी उज्जैन घूमने का प्लान बना रहे हैं और बाबा महाकाल के दर्शन के साथ-साथ अन्य जगहों को भी घूमना चाहते हैं तो यह लेख आपके लिए ही है। हम आपको उज्जैन के कुछ ऐसे दर्शनीय स्थलों के बारे में बताने वाले हैं जहां एक बार आपको जाना बहुत जरूरी है।

महाकालेश्वर मंदिर(Mahakaleshwar Jyotirlinga)

महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन, भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। रुद्र सागर झील के किनारे स्थित यह मंदिर विश्वभर में प्रसिद्ध है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जहां बाकी के सभी 11 ज्योतिर्लिंग उत्तर या पूर्व दिशा की ओर है तो वही महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग दक्षिणमुखी है, जो यमराज की दिशा मानी जाती है। इसी वजह से यहां महादेव को महाकाल के नाम से जाना जाता है जो मृत्यु और समय से भी परे है। मंदिर परिसर में तीन खंड हैं और सबसे ऊपरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर लिंगम स्थित है, जो केवल नागपंचमी के दिन ही दर्शन के लिए खुलता है। महाकाल भगवान की भस्म आरती के दर्शन करना एक अलग ही अनुभव प्रदान करता है।

काल भैरव मंदिर, उज्जैन (Kal Bhairav Temple)

काल भैरव का मंदिर उज्जैन का एक अनोखा और रहस्यमय मंदिर है, जो भगवान शिव के रौद्र रूप को समर्पित है। यह मंदिर अपनी अनूठी परंपरा के लिए विश्वप्रसिद्ध है, जहां भक्तजन भगवान को मदिरा/शराब का भोग लगाते हैं। यह देश का एकमात्र मंदिर है जहां इस प्रकार की पूजा की जाती है। काल भैरव को महाकाल का सेनापति माना जाता है जो नगर की रक्षा करते हैं और नकारात्मक शक्तियों से लोगों की सुरक्षा करते हैं। तंत्र साधना में इस स्थान का विशेष महत्व है और अनेक साधक यहां साधना करने आते हैं। महाकालेश्वर के दर्शन के बाद काल भैरव का दर्शन करना काफी शुभ माना जाता है।

हरसिद्धि माता मंदिर, उज्जैन(Harsiddhi Shakti Peeth)

उज्जैन का हरसिद्धि माता मंदिर भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर क्षिप्रा नदी के निकट स्थित है और माना जाता है कि यहां माता सती की कोहनी गिरी थी। यह मंदिर राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी का मंदिर है और उन्होंने ही इस मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है और गर्भगृह में तीन देवियों की प्रतिमाएं स्थापित हैं। मुख्य मूर्ति गहरे लाल रंग की है जिनके दर्शन मात्र से सारे कष्ट दूर हो जाते है।

मंगलनाथ मंदिर, उज्जैन(Mangalnath Temple)

उज्जैन का मंगलनाथ मंदिर अत्यंत महत्वपूर्ण मंदिर है। इसका ज्योतिष शास्त्र में विशेष स्थान है। मत्स्य पुराण के अनुसार मंगल ग्रह का जन्म इसी स्थान पर हुआ था। यह मंदिर क्षिप्रा नदी के किनारे एक सुंदर स्थान पर स्थित है। ज्योतिष शास्त्र में मंगल दोष को अत्यंत हानिकारक माना जाता है और इसके निवारण के लिए लोग दूर-दूर से यहां आते हैं। मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है जिसे मंगलनाथ के नाम से जाना जाता है। यह भारत का एकमात्र मंगल ग्रह का मंदिर है जहां लोग अपनी मांगलिक दोष की शांति के लिए पूजा पाठ करवाने आते हैं।

चिंतामन गणेश मंदिर, उज्जैन(Chintaman Ganesh Temple)

उज्जैन के सबसे प्राचीन मंदिरों में चिंतामन गणेश मंदिर का नाम जरूर आता है। इसे 11वीं-12वीं शताब्दी में परमार वंश के शासनकाल में बनाया गया था। मंदिर का नाम चिंतामन इसलिए है क्योंकि भगवान गणेश यहां भक्तों की सभी चिंताओं को दूर करते हैं। मंदिर में स्थापित गणेश जी की मूर्ति स्वयंभू मानी जाती है, यानी यह स्वयं प्रकट हुई है। यह खूबी इस मंदिर को अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली बनाता है।

श्रीकृष्ण की पाठशाला– सांदीपनि आश्रम(Sandipani Ashram)

सांदीपनि आश्रम उज्जैन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है। महाभारत काल में इसी स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा ने गुरु सांदीपनि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की थी। जैसा कि हमने पहले भी बताया कि यह स्थान प्राचीन भारत में शिक्षा का एक प्रतिष्ठित केंद्र था जहां राजकुमारों और विद्वानों को शिक्षा दी जाती थी। आश्रम परिसर में गोमती कुंड है जो एक पवित्र जलाशय है साथ ही कुंडेश्वर महादेव नाम का एक प्राचीन शिवलिंग भी है।

गोपाल मंदिर, उज्जैन(Gopal Mandir)

भगवान कृष्ण को समर्पित यह गोपाल मंदिर एक भव्य और सुंदर मंदिर है। 19वीं शताब्दी में मराठा सम्राट दौलत राव शिंदे की पत्नी बायाजी बाई शिंदे ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर में मराठा स्थापत्य कला का एक अद्भुत नमूना देखने को मिलता है।

गढ़कालिका माता मंदिर(Gadkalika Temple)

गढ़कालिका मंदिर माता काली को समर्पित एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यहां माता सती का ऊपरी होंठ गिरा था जिसके वजह से इसे भी 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। इस मंदिर का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि महाकवि कालिदास ने यहां माता गढ़कालिका की आराधना की थी और उनकी कृपा से ही उन्हें ज्ञान का अपार भंडार प्राप्त हुआ था इसलिए यह मंदिर छात्रों और विद्वानों में अत्यंत लोकप्रिय है।

बड़े गणेश जी का मंदिर(Bade Ganeshji Ka Mandir)

बड़े गणेश जी का मंदिर अपनी विशाल गणेश प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है। यह मूर्ति आठ मीटर से अधिक ऊंची है और विश्व की सबसे बड़ी और सुंदर गणेश प्रतिमाओं में से एक मानी जाती है।

चौबीस खंबा माता मंदिर(Chaubis Khamba Temple)

उज्जैन के प्राचीन मंदिरों में इस मंदिर का नाम भी शामिल है। इसे लगभग 9वीं शताब्दी में बनाया गया था। इस मंदिर में चौबीस खंभे होने की वजह से इसे यह नाम मिला है। आज इस मंदिर का प्रवेश द्वार एक अवशेष के रूप में खड़ा हुआ है परंतु पुराने समय में यह महाकाल वन का भव्य प्रवेश द्वार हुआ करता था। इस मंदिर से राजा विक्रमादित्य और सिंहासन बत्तीसी की प्रसिद्ध कहानी जुड़ी हुई है। मंदिर के द्वार के दोनों ओर महामाया और महालया देवी की मूर्तियां स्थापित हैं।

भर्तृहरि गुफा, उज्जैन(Bhartrihari Caves)

यह प्राचीन गुफा राजा भर्तृहरि की है जिन्होंने अपना राजपाठ छोड़कर दृढ़ संकल्प के साथ 12 वर्षों तक कठोर तप किया था।किवदंतियों के अनुसार राजा भर्तृहरि, विक्रमादित्य के बड़े भाई थे। यह गुफा शिप्रा नदी के किनारे और प्रसिद्ध गढ़कालिका मंदिर के पास स्थित है। गुफा में कई छोटे-छोटे कमरे और संकरे मार्ग है जहाँ साधना के दौरान धुनी जलाई जाती है। नाथ संप्रदाय के साधु आज भी यहाँ निवास करते हैं। राजा भर्तृहरि की तीन महत्वपूर्ण रचनाएँ श्रृंगार शतक, नीति शतक और वैराग्य शतक आज भी साहित्यकारों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई है।

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