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Takht-e-Taus singhasan ka itihas: कोहिनूर हीरे और 1150 किलो सोने से सजा मयूर सिंहासन, जानिए कैसे 7 साल की मेहनत का, एक झटके में हुआ अंत...

Takht-e-Taus singhasan ka itihas: भारतीय इतिहास की धरोहरों में ताजमहल का नाम सबसे ऊपर आता है, लेकिन मुगल काल में एक ऐसी कलाकृति का भी निर्माण किया गया था, जिसकी कीमत ताजमहल से भी दोगुनी थी, वह था 'तख्त-ए-ताऊस' यानी मयूर सिंहासन(Peacock Throne)। आइए जानते हैं इसके बारे में पूरी जानकारी...

Takht-e-Taus singhasan ka itihas: कोहिनूर हीरे और 1150 किलो सोने से सजा मयूर सिंहासन, जानिए कैसे 7 साल की मेहनत का, एक झटके में हुआ अंत...
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By Chirag Sahu

Takht-e-Taus singhasan ka itihas: भारतीय इतिहास की धरोहरों में ताजमहल का नाम सबसे ऊपर आता है, लेकिन मुगल काल में एक ऐसी कलाकृति का भी निर्माण किया गया था, जिसकी कीमत ताजमहल से भी दोगुनी थी, वह था 'तख्त-ए-ताऊस' यानी मयूर सिंहासन(Peacock Throne)। यह सिंहासन मुगल साम्राज्य की बेहिसाब दौलत का सबूत था और दुनिया के सबसे नायाब हीरे इस सिंहासन में जड़े गए थे। आज यह सिंहासन हमारे बीच नहीं है, लेकिन इसकी भव्यता और इसके विनाश की कहानी इतिहास के पन्नों में दर्ज है।यह मानव इतिहास में निर्मित सबसे कीमती और शानदार सिंहासनों में से एक था। आइए जानते है इसके बनने से लेकर समाप्त होने तक की कहानी।

7 साल की मेहनत के बाद तैयार हुआ सिंहासन

मुगल बादशाह शाहजहां को वास्तुकला का महान संरक्षक माना जाता है। इसने 1628 में गद्दी संभालते ही एक ऐसे सिंहासन का सपना देखा जो दुनिया का सबसे नायाब सिंहासन हो। इस सपने को हकीकत में बदलने के लिए शाही सुनारों के प्रमुख सईद गिलानी के नेतृत्व में हजारों कारीगरों ने दिन-रात काम किया।

7 साल की कड़ी मेहनत के बाद 1635 में यह अद्भुत सिंहासन बनकर तैयार हुई। ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार उस समय ताजमहल को बनाने में लगभग 50 लाख रुपये खर्च हुए थे, जबकि तख्त-ए-ताऊस की लागत एक करोड़ रुपये से अधिक थी। इसमें लगभग 1150 किलो शुद्ध सोना और 26,733 बेशकीमती रत्न जड़े गए थे।

हीरों से भरा हुआ सिंहासन और नाचते हुए मोर का रहस्य

इस सिंहासन का नाम 'तख्त-ए-ताऊस' पड़ने के पीछे इसकी अनूठी बनावट थी। इसके पिछले हिस्से में दो नाचते हुए मोर बने थे, जो रत्नों से जड़े थे। फारसी में मोर को 'ताऊस' कहा जाता है, इसलिए इसे यह नाम मिला। सिंहासन एक पलंग के आकार का था और 6 भारी सोने के पायों पर टिका था। इसके ऊपर एक छत्र था, जिसे 12 पन्ना (Emerald) रत्न के स्तंभों पर खड़ा किया गया था। सिंहासन में विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा, अकबर शाह हीरा और तैमूर रूबी जैसे नायाब रत्न जड़े हुए थे। मोरों के सीने पर लाल माणिक लगे थे और उनकी सुंदर पूंछ नीलम व अन्य रंगीन पत्थरों से बनी थी। ये सिंहासन 6 फीट लंबा और 4 फीट चौड़ा था।

फिर हुआ नादिर शाह का आक्रमण

18वीं शताब्दी के बाद मुगल साम्राज्य कमजोर होने लगा था। 1739 में फारस यानी ईरान के शासक नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण किया। उस समय दिल्ली की गद्दी पर मोहम्मद शाह रंगीला बैठे थे। ये नादिर शाह की ताकतवर सेना के सामने टिक नहीं सके। करनाल के युद्ध में मुगलों को हराने के बाद नादिर शाह ने दिल्ली में प्रवेश किया।

22 मार्च 1739 की सुबह नादिर शाह ने लाल किले से युद्ध का आदेश दे दिया। दिल्ली का चांदनी चौक और पुरानी दिल्ली वाले इलाके में लगभग 30 हजार निर्दोष लोग मारे गए। मुहम्मद शाह हमेशा भोग–विलासिता में डूबा रहता था, उसे अपने राज्य और प्रजा की कोई चिंता नहीं रहती थी। परिणाम ये हुआ कि जान बचाने के लिए मोहम्मद शाह रंगीला ने शाही खजाने की चाबियां नादिर शाह को सौंप दीं और रहम की भीख मांगने लगा।

सिंहासन का रहस्यमयी अंत

नादिर शाह जब दिल्ली से वापस लौटा तो वह अपने साथ 70 करोड़ रुपये की संपत्ति, कोहिनूर हीरा और मुगलों की शान तख्त-ए-ताऊस भी ले गया। यह लूट इतनी विशाल थी कि नादिर शाह ने ईरान पहुंचकर अपनी प्रजा का तीन साल का कर (Tax) माफ कर दिया। सोचने वाली बात है कि जिस सिंहासन को बनाने में मुगलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, वह एक झटके में गलत शासक की वजह से दूसरों के हाथों में चला गया। फिर 1747 में नादिर शाह की हत्या उसके ही अंगरक्षकों ने कर दी। नादिर शाह की मौत के बाद तख्त-ए-ताऊस का क्या हुआ? यह आज भी एक रहस्य है।

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