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Kirari ka kasht stambh Shakti: इस स्तंभ से मिलती है प्राचीन काल के प्रशासनिक व्यवस्था की जानकारी, जानिए किरारी के काष्ठ स्तंभ का इतिहास

Kirari ka kasht stambh Shakti: छत्तीसगढ़ की धरती पर आज भी ऐसी अनेक ऐतिहासिक परतें छिपी हुई है जो समय-समय पर लोगों के सामने आती है। इस लेख में हम किरारी के काष्ठ स्तंभ के बारे में आज तक हुई सभी रिसर्च की जानकारी देने वाले हैं।

Kirari ka kasht stambh Shakti: इस स्तंभ से मिलती है प्राचीन काल के प्रशासनिक व्यवस्था की जानकारी, जानिए किरारी के काष्ठ स्तंभ का इतिहास
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By Chirag Sahu

Kirari ka kasht stambh Shakti: छत्तीसगढ़ की धरती पर आज भी ऐसी अनेक ऐतिहासिक परतें छिपी हुई है जो समय-समय पर लोगों के सामने आती है। किरारी के काष्ठ स्तंभ की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। इस लकड़ी के स्तंभ में कई ऐसी चीजें उकेरीं गई है जो प्राचीन काल की प्रशासनिक व्यवस्था की जानकारी देती है। यह स्तंभ आज भी शोधकर्ताओं के बीच शोध का विषय बना हुआ है। इस स्तंभ के प्राप्त होने से हमें पूर्वजों के प्रशासनिक कुशलता का प्रमाण मिलता है। इस लेख में हम इस स्तंभ के बारे में आज तक हुई सभी रिसर्च की जानकारी देने वाले हैं।

स्तंभ के खोज की अद्भुत कहानी

सन 1921 में किरारी गांव और आसपास के इलाके में भयंकर अकाल वह सूखा पड़ा था। गांव में एक हीराबंध नाम का तालाब मौजूद था जो आज भी मौजूद है। अकाल की वजह से यह तालाब भी पूरी तरह से सूख चुका था। किसानों ने इस विपत्ति के संकट में तालाब की खुदाई करने की सोची कि कहीं कुछ पानी की बूंदे निकल आए। जब वे तालाब की मिट्टी खोद रहे थे, तभी उन्हें एक बड़ी लकड़ी मिली। पहले तो उन्हें लगा कि यह कोई साधारण लकड़ी का टुकड़ा होगा, लेकिन जब उन्होंने इसे बाहर निकाला तो पाया कि यह तो एक विशाल स्तंभ है। साल व बीजा लकड़ी से बने रहने की वजह से सैकड़ों वर्षों तक पानी में डूबे रहने के कारण भी यह स्तंभ सुरक्षित रहा।

लोगों ने देखा कि स्तंभ पर कुछ लिखा हुआ था और वह धीरे धीरे से नष्ट हो रहा था। ऐसे में गांव के एक समझदार पुरोहित लक्ष्मी प्रसाद उपाध्याय ने इस स्थिति की गंभीरता को समझा। और उन्होंने स्तंभ पर लिखे गए प्राचीन ब्राह्मी लिपि के शब्दों को अपने कागज पर उतार लिया। इस तरह उन्होंने 349 अक्षरों की प्रतिलिपि तैयार कर ली। यह कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण था क्योंकि बाद में जब स्तंभ का संरक्षण किया गया, तब तक उस पर केवल 20 से 22 अक्षर ही बचे थे।

बालपुर के एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद लोचन प्रसाद पांडे ने इस महत्वपूर्ण खोज की जानकारी तत्कालीन पुरातत्व विभाग के प्रमुख सर जॉन मार्शल को दी। उनके निर्देश पर इस स्तंभ को पुनः पानी में रखा गया ताकि और अधिक क्षति न हो। फिर रासायनिक उपचार के माध्यम से इसे संरक्षित करने का प्रयास किया गया और इसे नागपुर के संग्रहालय में भेज दिया गया। वर्तमान में यह स्तंभ महंत घासीदास मेमोरियल संग्रहालय, रायपुर में रखा गया है।

स्तंभ की बनावट

किरारी का यह स्तंभ बीजा-साल की लकड़ी से निर्मित है। छत्तीसगढ़ में इस लकड़ी का विशेष महत्व है क्योंकि यह पानी में बहुत लंबे समय तक टिकाऊ रहती है। स्तंभ की कुल ऊंचाई 13 फीट 9 इंच है, जो इसे काफी भव्य बनाती है। इसके ऊपरी हिस्से में 1 फीट 2 इंच ऊंचा कलश बना हुआ था, जो एक संकरी भाग के माध्यम से मुख्य स्तंभ से जुड़ा था। हालांकि बाद में संरक्षण और सुरक्षा के उद्देश्य से इस कलश वाले हिस्से को मुख्य स्तंभ से अलग कर दिया गया और आज यह अलग से संग्रहालय में रखा हुआ है।

कितना पुराना है यह स्तंभ

जब इस स्तंभ पर उकेरी गई लिपि का अध्ययन किया तो पाया कि यह 2री शताब्दी ईस्वी की है। यानी लगभग 200 ईसवी के आसपास इस स्तंभ को बनाया गया होगा। यह वह समय था जब दक्षिण भारत में सातवाहन वंश का शासन चल रहा था और उनका प्रभाव दक्षिण कोशल क्षेत्र यानी छत्तीसगढ़ तक फैला हुआ था। सातवाहन कालीन भाषा प्राकृत और लिपि ब्राह्मी है। साल लकड़ी का उपयोग करके इस स्तंभ को बनाना और उसे तालाब के बीचो-बीच स्थापित करवाना यह उस समय के लोगों की बौद्धिक क्षमता को बताती है साथ ही उन्हें साल व बीजा लकड़ी के गुण का भी पता था, जो कि पानी में लंबे समय तक सुरक्षित बनी रहती है।

अभिलेख का अध्ययन

इस महत्वपूर्ण खोज का सबसे पहला अध्ययन प्रसिद्ध पुरातत्वविद् डॉ हीरानंद शास्त्री ने किया। उन्होंने लक्ष्मी प्रसाद उपाध्याय द्वारा तैयार की गई प्रतिलिपि और स्तंभ पर बचे हुए अक्षरों का गहन अध्ययन किया। उनका शोधपूर्ण पाठ सन 1926 में एपिग्राफिका इंडिका नामक प्रतिष्ठित पत्रिका के 18वे खंड में प्रकाशित हुआ। इसके बाद सन 1961 में बालचंद जैन ने अपनी पुस्तक उत्कीर्ण लेख में इस अभिलेख का सार और पाठ प्रस्तुत किया। इनके प्रकाशित शोध पत्रों से पता चलता है कि यह स्तंभ उस समय की प्रशासनिक व्यवस्था की जानकारी देता है।

प्रशासनिक व्यवस्था का विवरण

किरारी के काष्ठ स्तंभ पर उकेरा गया अभिलेख सातवाहन कालीन प्रशासनिक व्यवस्था की एक झलक प्रस्तुत करता है। इसमें अनेक राजकीय पदाधिकारियों के नाम और उनके पदों का उल्लेख है जो तत्कालीन प्रशासनिक संरचना की विविधता को दर्शाता है। आज के समय में भी जब तालाब बनते हैं तो तालाबों के बीच में एक स्तंभ जरूर गाड़ा जाता है परंतु इस स्तंभ पर कुछ लिखा नहीं जाता। किरारी का यह काष्ठ स्तंभ काफी अनोखा है, जिसमें इन पदाधिकारीयो के नाम और उनके कार्यों का उल्लेख है।

  • नगर रक्षक – नगर की रक्षा करने वाला
  • सेना पति - सेना का प्रमुख
  • महासेनानी - सेनापतियों में प्रमुख
  • प्रतिहार - राजा का नीजी सचिव/द्वारपाल
  • गृहपति - राजमहल का 'प्रबंधक अधिकारी
  • गणक - खजांच्ची (Cashier)
  • रथिक - सारथी
  • लेखाहारिक - पत्रवाहक
  • पादमूलिक - मंदिर की रक्षा करने वाला अधिकारी
  • पलवीधिदपालक - मांस बाजार का अधिकारी
  • धावक - डाकिया
  • यानशालायुधागारिक - रथ और अश्व की रक्षा करने वाला अधिकारी
  • गोमाण्डलिक - गौशाला का प्रमुख
  • भंडारिक - भंडारगृह का प्रमुख अधिकारी
  • सौगंधक - इत्र का परिक्षण करने वाला अधिकारी
  • कुलपुत्रक - इंजिनीयर/अभियंता/राजमिस्त्री
  • महानासिका - भोजनालय प्रबंधक
  • हस्त्यरोह - हाथी पकड़‌ने वाला अधिकारी
  • हस्तिपक - हाशी गृह का प्रमुख अधिकारी
  • अश्वारोह - अश्व गृह का प्रमुख अधिकारी

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