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Series of Temples in Barsur: बारसूर के प्राचीन मंदिरों का इतिहास और वैभव, चंद्रादित्य मंदिर, मामा-भांजा मंदिर और भी कई मंदिरों में छिपे हैं राज

History of Temples in Barsur: छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा ज़िला अपनी आदिवासी संस्कृति और प्राकृतिक संपदा के साथ-साथ ऐतिहासिक धरोहरों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ स्थित बारसूर (Barsur) एक ऐसा नगर है जिसे कभी छिंदक नागवंश की राजधानी होने का गौरव प्राप्त था। 10वीं से 13वीं शताब्दी के बीच यह क्षेत्र धार्मिक और स्थापत्य गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था। कहा जाता है कि बारसूर में उस समय 147 मंदिर और 147 तालाब हुआ करते थे। यद्यपि समय और आक्रमणों की मार से अधिकांश संरचनाएँ नष्ट हो गईं, लेकिन आज भी यहाँ के कुछ मंदिर उस स्वर्णिम युग की गवाही देते हैं और हमें उस काल की कला, आस्था और शिल्पकला का दर्शन कराते हैं।

Series of Temples in Barsur: बारसूर के प्राचीन मंदिरों का इतिहास और वैभव, चंद्रादित्य मंदिर, मामा-भांजा मंदिर और भी कई मंदिरों में छिपे हैं राज
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By Chirag Sahu

History of Temples in Barsur: छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा ज़िला अपनी आदिवासी संस्कृति और प्राकृतिक संपदा के साथ-साथ ऐतिहासिक धरोहरों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ स्थित बारसूर (Barsur) एक ऐसा नगर है जिसे कभी छिंदक नागवंश की राजधानी होने का गौरव प्राप्त था। 10वीं से 13वीं शताब्दी के बीच यह क्षेत्र धार्मिक और स्थापत्य गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था। कहा जाता है कि बारसूर में उस समय 147 मंदिर और 147 तालाब हुआ करते थे। यद्यपि समय और आक्रमणों की मार से अधिकांश संरचनाएँ नष्ट हो गईं, लेकिन आज भी यहाँ के कुछ मंदिर उस स्वर्णिम युग की गवाही देते हैं और हमें उस काल की कला, आस्था और शिल्पकला का दर्शन कराते हैं।

Chandraditya Temple – चंद्रादित्य मंदिर

चंद्रादित्य मंदिर बारसूर का सबसे महत्वपूर्ण मंदिर माना जाता है। इसका निर्माण 1060 से 1070 ईस्वी के बीच छिंदक नागवंश के महामंडलेश्वर चंद्रादित्य ने कराया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और एक ऊँचे मंच पर बना हुआ है। मंदिर से जुड़ा विशाल मंडप और दीवारों पर की गई नक्काशियाँ उस समय की कलात्मक उत्कृष्टता को दर्शाती हैं। यहाँ देवी-देवताओं, विष्णु अवतारों और शिव-पार्वती की मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। इसके पास ही चंद्रादित्य द्वारा खुदवाया गया तालाब है, जो उस युग के उन्नत नगर नियोजन और जल प्रबंधन की झलक प्रस्तुत करता है। स्थापत्य शैली में नागर और द्रविड़ दोनों का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है, जो इसे वास्तुकला का एक अनोखा उदाहरण बनाता है। यह मंदिर एक विशाल तालाब के बीच स्थित है।

Mama-Bhanja Temple – मामा-भांजा मंदिर

बारसूर का मामा-भांजा मंदिर अपनी अनूठी कहानी और स्थापत्य के कारण चर्चित है। इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ और यह शिव मंदिर है। लोककथाओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण एक मामा और उसका भांजा मिलकर कर रहे थे। निर्माण के दौरान किसी विवाद में भांजे की मृत्यु हो गई और उसकी स्मृति में मामा ने मंदिर के शिखर पर उसका सिर स्थापित करवा दिया। यही कारण है कि इसे मामा-भांजा मंदिर कहा जाता है। स्थापत्य दृष्टि से यह पंचरथ शैली में निर्मित है और इसका शिखर नागर शैली की छाप लिए हुए है। गर्भगृह और दीवारों पर उकेरी गई मूर्तियाँ अब भी इस मंदिर की ऐतिहासिक महत्ता को जीवित रखती हैं।

Battisa Temple – बत्तिसा मंदिर

बत्तिसा मंदिर बारसूर की स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसका निर्माण लगभग 1109 ईस्वी में हुआ और यह भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर की विशेषता है कि इसमें दो गर्भगृह बनाए गए हैं और इसके मंडप को 32 स्तंभों का सहारा है। इन्हीं स्तंभों के कारण इसका नाम “बत्तिसा मंदिर” पड़ा। यहां शिवलिंग पत्थर का बना हुआ है और यह मैकेनिकल सिस्टम पर टिका हुआ है यानी शिवलिंग को घूमने पर यह गोल घूम जाती है। मंदिर में तीन दिशाओं से प्रवेश द्वार हैं, जो इसकी योजना को और भी विशिष्ट बनाते हैं। हालाँकि इसका शिखर अब खंडित है, लेकिन शेष संरचना आज भी प्राचीन स्थापत्य की भव्यता को दर्शाती है और इसे पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र बनाती है। यह राज्य संरक्षित स्मारक है।

Ganesh Temple – गणेश मंदिर

बारसूर का गणेश मंदिर धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पूजनीय है। इसका निर्माण 11वीं से 12वीं शताब्दी के बीच हुआ था। इस मंदिर में भगवान गणेश की दो विशाल प्रतिमाएँ स्थापित हैं, जिनमें से एक की ऊँचाई लगभग आठ फीट है। इतनी बड़ी गणेश प्रतिमाएँ प्राचीन काल में दुर्लभ मानी जाती थीं। स्थानीय मान्यता है कि यहाँ दर्शन करने से सभी विघ्न दूर हो जाते हैं, इसलिए आज भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। गणेश मंदिर की यह विशेषता इसे अन्य मंदिरों से अलग पहचान देती है।

Chandi Temple – चंडी मंदिर

बारसूर का चंडी मंदिर शक्ति उपासना का प्रमुख केंद्र माना जाता था। इसका निर्माण मध्यकालीन कालखंड में नागवंशी शासकों द्वारा कराया गया और इसे देवी चंडी को समर्पित किया गया। मंदिर के गर्भगृह और दीवारों पर शक्ति स्वरूपों की नक्काशी की गई थी, जिनमें से कई आज खंडित अवस्था में हैं। इसके बावजूद इन मूर्तियों से उस काल की कलात्मकता और धार्मिक महत्व का अनुमान लगाया जा सकता है। यह मंदिर आज खंडहर की स्थिति में है, लेकिन इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता बनी हुई है।

Dholkal Ganesh – ढोलकल गणेश

बारसूर से लगभग 13–15 किलोमीटर दूर, दंतेवाड़ा की पहाड़ियों में स्थित है ढोलकल गणेश प्रतिमा। समुद्र तल से लगभग 3000 फीट की ऊँचाई पर यह प्रतिमा स्थापित है।

माना जाता है कि इसका निर्माण 1023 ईस्वी में नागवंशी राजा कश्यप ने करवाया था। प्रतिमा काले पत्थर की बनी हुई है और अत्यंत आकर्षक है। कुछ समय पूर्व यह प्रतिमा खाई में गिरकर क्षतिग्रस्त हो गई थी, लेकिन बाद में इसे स्थानीय लोगों और प्रशासन की मदद से फिर से उसी स्थान पर स्थापित कर दिया गया। आज यह धार्मिक आस्था के साथ-साथ रोमांचक ट्रैकिंग के लिए भी प्रसिद्ध स्थल है।

वर्तमान स्थिति और पहुंच

आज बारसूर के अधिकांश मंदिर खंडहर में बदल चुके हैं, लेकिन कुछ प्रमुख मंदिर जैसे चंद्रादित्य, मामा-भांजा, बत्तिसा और गणेश मंदिर अब भी सुरक्षित हैं। पुरातत्व विभाग इनके संरक्षण का कार्य कर रहा है और इन्हें पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। जगदलपुर और दंतेवाड़ा से बारसूर तक सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है, जिसके चलते यह स्थान पर्यटकों और श्रद्धालुओं दोनों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है।

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