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School Bus Hamesha Pile Kyo Hote Hai: सभी देशों में स्कूल बस के रंग पीले ही क्यों होते है? इसके पीछे छिपी है गजब की साइंस...

School Bus Hamesha Pile Kyo Hote Hai: जब भी हम बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते हैं या रास्तों पर भी चलते हैं तो हमें पीले रंग के बस दिखाई देती है और हम समझ जाते हैं कि यह किसी स्कूल की बस है। आपके मन में कई बार ऐसे सवाल आए होंगे कि यह बस हमेशा पीले ही क्यों होते हैं? आइए जानते हैं...

School Bus Hamesha Pile Kyo Hote Hai: सभी देशों में स्कूल बस के रंग पीले ही क्यों होते है? इसके पीछे छिपी है गजब की साइंस...
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By Chirag Sahu

School Bus Hamesha Pile Kyo Hote Hai: जब भी हम बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते हैं या रास्तों पर भी चलते हैं तो हमें पीले रंग के बस दिखाई देती है और हम समझ जाते हैं कि यह किसी स्कूल की बस है। आपके मन में कई बार ऐसे सवाल आए होंगे कि यह बस हमेशा पीले ही क्यों होते हैं? स्कूल की बसे पहले के समय में पीले रंग की नहीं हुआ करती थी इन्हें किसी भी रंग में रंग दिया जाता था, परंतु अचानक ऐसा क्या हुआ की स्कूल बसों को पीले रंग में रंगना शुरू कर दिया गया। इस पीले रंग को चुनने के पीछे कई साइंटिफिक रिसर्च छुपा हुआ है। इस लेख में हम स्कूल बस के पीले होने के राज से पर्दा उठाने वाले हैं।

स्कूल बसों के लिए पीले रंग का चुनाव

20वीं सदी के शुरुआत में अमेरिका में स्कूल बसों की कोई खास पहचान नहीं थी। हर राज्य में अलग अलग रंग की बसें चलती थीं। इस वजह से सड़क पर इन्हें पहचानना मुश्किल हो जाता था और दुर्घटनाओं की संभावना भी ज्यादा रहती थी। उस समय कोलंबिया यूनिवर्सिटी में एक प्रोफेसर हुआ करते थे जिनका नाम था फ्रैंक साइर, उन्होंने इस समस्या को गंभीरता से लिया।

साल 1939 में प्रोफेसर साइर ने न्यूयॉर्क में एक राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया। इस सात दिन तक चली मीटिंग में देश भर के शिक्षक, परिवहन विभाग के अधिकारी शामिल हुए। सबका मकसद एक था कि स्कूल बसों को ज्यादा सुरक्षित और पहचानने में आसान बनाया जाए। सभी ने एक रंग का चुनाव किया, इस रंग को पहले नेशनल स्कूल बस क्रोम कहा जाता था लेकिन बाद में इसे नेशनल स्कूल बस ग्लॉसी येलो नाम दिया गया।

पीला रंग ही क्यों चुना गया?

इसके पीछे एक खास साइंस छिपी हुई है।हर रंग की अपनी एक खास तरंगदैर्ध्य होती है जिसे नैनोमीटर में मापा जाता है। जब हम रंगों की बात करते हैं तो लाल रंग की तरंगदैर्ध्य सबसे लंबी होती है करीब 650 नैनोमीटर। इसी वजह से लाल रंग सबसे दूर तक दिखाई देता है और इसीलिए ट्रैफिक लाइट में स्टॉप साइन के लिए लाल रंग इस्तेमाल किया जाता है। वहीं दूसरी तरफ पीले रंग की तरंगदैर्ध्य करीब 580 नैनोमीटर होती है जो लाल से थोड़ी कम है।

लाल रंग का तरंगदैर्ध्य अधिक होने के बावजूद पीले रंग को ही चुना गया, इसके पीछे भी साइंस है जिसे लैटरल पेरिफेरल विजन कहते हैं। यह हमारी आंखों की वो क्षमता है जिससे हम बिना सीधे देखे अपने आसपास की चीजों को अपनी साइड विजन से देख पाते हैं। रिसर्च में पाया गया कि पीले रंग की लैटरल पेरिफेरल विजन लाल रंग से 1.24 गुना ज्यादा बेहतर होती है। इसका मतलब है कि ड्राइवर द्वारा गाड़ी चलते समय सीधे देखे जाने पर भी साइड से आ रही पीले रंग की कोई भी चीज उसे साफ दिख जाएगी। लाल रंग को इसलिए भी नहीं चुना गया क्योंकि यह रुकने या खतरे को दर्शाता है, जिससे ड्राइवर को कन्फ्यूजन हो सकती है।

आंखों से जुड़ा विज्ञान

पीला रंग हमारी आंखों में मौजूद लाल और हरे दोनों तरह के फोटोरिसेप्टर सेल्स को एक साथ एक्टिवेट कर देता है। जिससे हमारे दिमाग को दोगुनी मात्रा में सिग्नल मिलते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि पीला रंग हमारे दिमाग तक पहुंचने वाले संकेतों की संख्या बढ़ा देता है और हमें पीला रंग बाकी रंगों की तुलना में कहीं ज्यादा जल्दी और तेजी से दिखाई देता है और यह प्रकाश को भी ज्यादा रिफ्लेक्ट नहीं करता है।

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