Samvidhan Nirman Me Chhattisgarh ka Yogdan: छत्तीसगढ़ के इन लोगों ने भारत के संविधान में दिया है अपना महत्वपूर्ण योगदान,जानिए गौरवशाली इतिहास..
Samvidhan Nirman Me Chhattisgarh ka Yogdan: संविधान निर्माण की प्रक्रिया मे छत्तीसगढ़ से पंडित रविशंकर शुक्ल, बैरिस्टर छेदीलाल और घनश्याम सिंह गुप्त शामिल थे। जानिए पूरा डिटेल.....

Samvidhan Nirman Me Chhattisgarh ka Yogdan: भारत में अंग्रेजों के 200 साल के शासन के बाद और क्रांतिकारियों के विद्रोह के फल स्वरुप भारत को 1947 में आजादी मिली। आजादी मिलने के बाद भारत को व्यवस्थित रूप से चलने के लिए हमें एक संविधान की जरूरत थी। जिसे संविधान सभा और भीमराव अंबेडकर द्वारा 2 साल 11 माह और 18 दिन में बनाया गया और 26 जनवरी 1950 को देश को समर्पित किया गया।
संविधान निर्माण की प्रक्रिया मे छत्तीसगढ़ से पंडित रविशंकर शुक्ल, बैरिस्टर छेदीलाल और घनश्याम सिंह गुप्त शामिल थे। साथ ही देसी रियासतों का प्रतिनिधित्व पंडित किशोरी मोहन त्रिपाठी, रायगढ़ के रघुराज सिंह देव और कांकेर के रामप्रसाद पोटाई शामिल हुए। संविधान को बनाने के लिए भी कई समितियां बनाई गई थी और इन समितियां में संविधान के निर्माण के लिए छत्तीसगढ़ के लोगों का भी योगदान रहा है। इस लेख में हम इन्हीं लोगों के बारे में जानेंगे।
पंडित रविशंकर शुक्ल
संविधान सभा में राजभाषा के रूप में हिंदी को दर्जा दिलाने के लिए पंडित रविशंकर शुक्ल का विशेष योगदान बताया जाता है। वे मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री बनने से पहले ही संविधान सभा में हिंदी को राजभाषा के रूप में दर्जा दिलाने के लिए संघर्षरत थे। 13 सितंबर 1949 का वह दिन आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है जब शुक्ल जी ने संविधान सभा में हिंदी के पक्ष में जोरदार भाषण दिया था। उनके तर्कों में इतनी शक्ति थी कि संविधान के अनुच्छेद 343 में हिंदी को संघ की राजभाषा और देवनागरी को लिपि के रूप में मान्यता मिली। उन्होंने शिक्षा को समवर्ती सूची में शामिल कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
घनश्याम सिंह गुप्त
दुर्ग जिले के घनश्याम सिंह गुप्त का नाम संविधान के इतिहास मे गर्व से लिया जाता है। वे न केवल संविधान सभा के सदस्य थे बल्कि संविधान के हिंदी अनुवाद समिति के अध्यक्ष भी थे। उनका काम अंग्रेजी में लिखे गए संविधान के प्रत्येक शब्द को हिंदी में अनुवादित करना था। यह संविधान में लिखें कठोर कानूनी शब्दों को आम जनता के लिए सरल भाषा में लिखना था। 1950 को संविधान का हिंदी प्रारूप पूरी तरह से तैयार हो गया।
किशोरी मोहन त्रिपाठी
रायगढ़ जिले से आने वाले पंडित किशोरी मोहन त्रिपाठी संविधान सभा के सबसे युवा सदस्यों में से एक थे। ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्य के रूप में उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। त्रिपाठी जी ने महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को संविधान में साकार करने का प्रयास किया। पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता दिलाने में उनकी भूमिका अमूल्य है। बाल श्रम के विरुद्ध कड़े प्रावधान और महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए त्रिपाठी जी ने संविधान सभा में जोरदार कार्य किया।
रामप्रसाद पोटाई
कांकेर जिले के कन्हारपुरी गांव के रामप्रसाद पोटाई, कांकेर रियासत के प्रतिनिधि के रूप में संविधान सभा में पहुंचे थे। उनकी उपस्थिति आदिवासी समाज के लिए काफी महत्वपूर्ण थी। पोटाई जी ने डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के साथ मिलकर अनुसूचित जाति और जनजाति के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उनके प्रयासों से संविधान में आदिवासी समाज के लिए विशेष सुरक्षा के प्रावधान शामिल किए गए। 1950 में वे कांकेर के प्रथम मनोनीत सांसद बने और आदिवासी समाज की आवाज को संसद में पहुंचाया।
बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल
बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल का जन्म वर्ष 1886 में बिलासपुर जिले के अकलतरा नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम ठाकुर पचकोड़ सिंह था। छेदीलाल ने प्रारंभिक शिक्षा के बाद उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैंड का रुख किया और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अपनी विधि की पढ़ाई पूरी की।
बिलासपुर क्षेत्र में उन्होंने रामलीला मंच के जरिए लोककला को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ा। हिंदी, अंग्रेज़ी, उर्दू और संस्कृत भाषा पर उनकी गहरी पकड़ थी। यही भाषाई दक्षता उन्हें भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण व्यक्तित्व बनाती है।
