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Pali Shiv Mandir: 1200 साल पुराने पाली के शिव मंदिर का इतिहास, सांस्कृतिक इतिहास और स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना

Pali Shiv Mandir: छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहरों में पाली का शिव मंदिर काफी विशेष महत्व रखता है। लगभग 1200 वर्ष पहले निर्मित यह प्राचीन मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और आज भी श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है। सावन के महीने और महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर यहां भारी संख्या में भक्ति पहुंचते हैं जिससे यह स्थान धार्मिक उत्साह और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बन जाता है।

Pali Shiv Mandir: 1200 साल पुराने पाली के शिव मंदिर का इतिहास, सांस्कृतिक इतिहास और स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना
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By Chirag Sahu

Pali Shiv Mandir: छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहरों में पाली का शिव मंदिर काफी विशेष महत्व रखता है। लगभग 1200 वर्ष पहले निर्मित यह प्राचीन मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और आज भी श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है। सावन के महीने और महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर यहां भारी संख्या में भक्ति पहुंचते हैं जिससे यह स्थान धार्मिक उत्साह और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बन जाता है।

कहां स्थित है यह मंदिर

कोरबा जिले का एक प्रमुख कस्बा है– पाली। यह कोरबा से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग 130 पर स्थित है। मंदिर नौकोनिहा तालाब के पश्चिमी किनारे पर बसा हुआ है और इसका दृश्य दूर से ही मन मोह लेता है। यहां तक पहुंचाने के लिए सड़क मार्ग सबसे सुविधाजनक है। जबकि नजदीकी रेलवे स्टेशन कोरबा और बिलासपुर है। रायपुर एयरपोर्ट से मंदिर लगभग 200 किलोमीटर दूर पड़ता है।

मंदिर से जुड़े कुछ ऐतिहासिक तथ्य

इस मंदिर का निर्माण बाण वंश के शासक विक्रमादित्य द्वितीय के द्वारा हुआ है जिन्होंने इसे 9वीं शताब्दी (870–900 ईस्वी) के बीच बनवाया था। इस समय यह क्षेत्र दक्षिण कौशल के नाम से जाना जाता था। मंदिर से मिले काफी प्राचीन शिलालेख और स्थापत्य शैली यह बताती है कि यहां धार्मिक आस्था के साथ-साथ कला और संस्कृति का भी विशेष महत्व था। फिर कुछ समय बीतने के बाद 11वीं शताब्दी में कलचुरी वंश के शासक जाजल्लदेव प्रथम ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। ऐसा भी माना जाता है कि राजा ने युद्ध विजय के बाद इस मंदिर का निर्माण करवाया जिस वजह से इस मंदिर को विजय के प्रतिक के तौर पर भी देखा जाता है।

मंदिर की स्थापत्य शैली

वास्तुकला की दृष्टि से यह मंदिर नागर शैली में निर्मित एक सुंदर उदाहरण है। लाल बलुए पत्थर से निर्मित यह मंदिर आकार में भले ही बहुत बड़ा नहीं हो परंतु इसमें की गई बारीक नक्काशियां और शिल्पकला इसे काफी खास बनाती है। पांच स्तरों वाले आधार पर निर्मित यह पूर्व मुखी मंदिर लगभग 20 से 25 फीट ऊंचा है। गर्भ गृह में तीन शिवलिंग विद्यमान है जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है। इस तरह का अद्वितीय स्वरूप अन्य मंदिरों में शायद ही देखने को मिलता है। इन तीनों शिवलिंग से जुड़ी एक लोककथा भी है कि युद्ध के दौरान जब अन्य दो मंदिर ध्वस्त हो गए तो वहां के शिवलिंग को भी एक ही मंदिर में स्थापित कर दिया गया।

मंदिर की बाहरी दीवारों पर नजर डालें तो हमें देवी देवताओं पौराणिक कथाओं और नृत्य करती स्त्रियों की उत्कृष्ट नक्काशी दिखाई पड़ती है। यह मूर्तियां न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि प्राचीन शिल्पकला का जीवंत प्रमाण भी प्रस्तुत करती हैं। मंदिर से सटे 9 किनारो वाले विशाल तालाब इसकी सुंदरता को और बढ़ा देता है और साथ ही यह जल संरक्षण के प्राचीन ज्ञान का भी प्रतीक है।

मंदिर से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं

धार्मिक दृष्टि से पाली शिव मंदिर शिव भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र स्थल है। सावन सोमवार को यहां जलाभिषेक करने के लिए दूर-दराज से कांवड़िए पहुंचते हैं। महाशिवरात्रि पर यहां आयोजित पाली महोत्सव धार्मिक अनुष्ठानों के साथ लोक नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए काफी प्रसिद्ध है और यह स्थल उत्सवमय वातावरण में बदल जाता है।

पर्यटन की दृष्टि से भी है खास

पर्यटन की दृष्टि से भी यह स्थल बेहद खास है, पाली शिव मंदिर के साथ ही पास में स्थित चैतुरगढ़ का किला पर्यटकों के लिए आकर्षक यात्रा सर्किट तैयार करते हैं। यह स्थान श्रद्धालुओं और पर्यटकों दोनों को मंत्रमुग्ध कर देता है। अंततः कहा जा सकता है कि पाली का शिव मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ की प्राचीन संस्कृति इतिहास और कला का अनमोल खजाना है। यह धरोहर समय की कसौटी पर खरी उतरते हुए आज भी आस्था और गर्व के साथ खड़ी हुई है। वर्तमान में यह मंदिर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है हालांकि इसके आसपास पर्यावरणीय सुरक्षा की और भी जरूरत महसूस होती है।

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